यह भी पढ़ें
अजब-गजब: उत्तर प्रदेश के इस गार्डन में मौजूद है समुद्र मंथन में निकला कल्पवृक्ष दरअसल अभियान शुरू होने से पहले और अब के आंकड़ों पर गौर करें तो साल 2016 से दिसंबर 2017 तक कुपोषित और अति कुपोषित बच्चों की संख्या घटने की जगह बढ़ गई। ऐसे में अभियान में हो रहे खर्च पर सवाल उठ रहे हैं। बजट के शोषण के लिए कुपोषण मिटाने का अभियान चल रहा है या फिर अभियान से जुड़े जिम्मेदारों के लिए बजट पोषण बन रहा है।
अजब-गजब: उत्तर प्रदेश के इस गार्डन में मौजूद है समुद्र मंथन में निकला कल्पवृक्ष दरअसल अभियान शुरू होने से पहले और अब के आंकड़ों पर गौर करें तो साल 2016 से दिसंबर 2017 तक कुपोषित और अति कुपोषित बच्चों की संख्या घटने की जगह बढ़ गई। ऐसे में अभियान में हो रहे खर्च पर सवाल उठ रहे हैं। बजट के शोषण के लिए कुपोषण मिटाने का अभियान चल रहा है या फिर अभियान से जुड़े जिम्मेदारों के लिए बजट पोषण बन रहा है।
बीते तीन वर्षों में जनपद में कुपोषण से निपटने का ये है डाटा वर्ष कुपोषित अति कुपोषित आंकड़े 2015-55616-14450 2016-56159-23831 2017-62017-20464 इस बारे में बात करते हुए जिला कार्यक्रम अधिकारी डॉ अनुपमा शांडिल्य ने कहा कि वजन के आधार पर बच्चों को अलग-अलग कैटेगरी में बांटा जाता है। यह अभियान निरंतर चल रहा है। जो बच्चे कुपोषण की श्रेणी में चिह्नित किये गए> वह दोबारा उस श्रेणी में नहीं आए। हम बेहतर प्रयास कर रहे हैं। इसके सकारात्मक परिणाम आ रहे हैं। जो आंकड़े हैं, वह वजन के आधार पर दर्ज किये गए हैं। जल्द ही इनमें अंतर नजर आएगा।
वर्ष 2016-17 में चार महीने तक चले इस अभियान में लगभग ढाई करोड़ रुपये खर्च किए गए थे। इस बजट में गर्भवती महिलाओं को आहार के साथ ही दवाएं उपलब्ध कराई जाती थीं। इस अभियान से पहले साल 2015 में जनपद में कुपोषित और अति कुपोषित बच्चों की संख्या लगभग 70 हजार के करीब थी। इसमें से 15 हजार बच्चे अति-कुपोषित की श्रेणी में चिह्नित किये गए। इस दौरान हौसला पोषण अभियान नहीं चल रहा था।
यहां बता दें कि देश के भविष्य को स्वस्थ बनाने के लिए भारत के सभी राज्यों में विभिन्न अभियान चलाए जा रहे हैं। गर्भवती माताओं को बेहतर आहार उपलब्ध कराने के साथ ही पांच वर्ष तक के बच्चों को स्वस्थ रखने के लिए सरकार हौसला पोषण योजना के साथ अन्य कई योजनाओं का संचालन कर रही है। सरकार की तमाम योजनाओं के बाद भी अनुमान के मुताबिक सफलता प्राप्त नहीं हो पा रही है। माता और शिशु के स्वास्थ्य को बेहतर रखने के लिए विशेष अभियान चलाया था। आंगनबाड़ी केंद्रों के माध्यम से जच्चा-बच्चा को दूध, दही, फल, अंडे के साथ ही अन्य पोषक आहार प्रदान किए गए थे।
कुपोषण मिटाने के दौरान जो आंकड़े विभाग के द्वारा दर्ज किए गए। उसमें सबसे ज्यादा अति कुपोषित बच्चे शहरी क्षेत्र में पाए गए। वर्ष 2015 में शहरी क्षेत्र में लगभग चार हजार बच्चे अति कुपोषित श्रेणी में थे, जबकि वर्ष 2016 में छह हजार और वर्ष दिसंबर 2017 में यह आंकड़ा साढ़े हजार तक पहुंच जाता है। कुपोषित बच्चों की संख्या का आंकड़ा इसका दोगुना दर्ज किया गया है।