नगर पालिका के समय वर्ष 2012 में चंबल से पीने का पानी लाने की कार्ययोजना बनी थी। वजह थी कि भूजल तेजी से नीचे जा रहा है, ऐसे में बोर ज्यादा गहराई तक होने, हर साल जल स्तर नीचे जाने से राइजर पाइप बढ़ाने, गर्मियों में मोटर खराब होने, बिजली का बिल अधिक आने और बकाए पर कनेक्शन काटने की धमकी के चलते चंबल से पानी लाने की कार्ययोजना बनी। 98 करोड़ से बढकऱ यह परियोजना अब 300 करोड़ की हो चुकी है। दो साल पहले वाइल्ड लाइफ बोर्ड से एनओसी के बाद जिला स्तर की सभी औपचारिकताएं भी एक वर्ष पूर्व पूरी हो चुकी हैं, लेकिन काम शुरू नहीं हो पा रहा है। ननि के अधिकारियों का कहना है कि प्रस्ताव राज्य स्तरीय साधिकार समिति को भेजा जा चुका है, टेंडर की प्रक्रिया वहीं से पूरी होनी है। इसके बाद की प्रक्रिया पर सब मौन हैं।
अटार घाट होकर मां कैलादेवी के दर्शन को महज 60 से 70 किमी की दूरी तय कर पहुंचा जा सकता है। मुरैना होकर यह दूरी करीब 200 किमी है। सबलगढ़, कैलारस, पहाडगढ़़, विजयपुर और वीरपुर क्षेत्र के हजारों परिवारों को रोटी-बेटी के रिश्ते राजस्थान से हैं। बरसात के दिनों में स्टीमर से जान जोखिम में डालकर यात्रा होती है, लेकिन यहां पक्का पुल का निर्माण नहीं हो पा रहा है। जबकि उसैदघाट के साथ ही करीब 10 साल पहले इसके लिए बजट मंजूर किया गया था। यह पुल दो राज्यों को केवल आवागमन से ही नहीं जोड़ेगा बल्कि व्यापारिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण होगा। सबलगढ़ से अटारघाट होकर जयपुर की दूरी 225 किमी है। मुरैना होकर यह दूरी 300 किमी से अधिक हो जाती है।
नैरोगेज को ब्रॉडगेज में तब्दील करने का काम तो चल रहा है, लेकिन उसकी गति धीमी है। यह मुद्दा प्रभात झा और नरेंद्र सिंह तोमर ने ग्वालियर से श्योपुर तक नैरोगेज से यात्रा करके उठाया था। 187.53 किलोमीटर लंबी बॉडगेज परियोजना में जमीन अधिग्रहण की धीमी गति बड़ा मुद्दा है। एक करोड़ रुपए से ज्यादा की राशि सरकार जिला प्रशासन को दे चुकी है। 2912.96 करोड़ रुपए के इस प्रोजेक्ट में जमीन अधिग्रहण का काम अपेक्षित गति से नहीं हो पा रहा है। इस प्रोजेक्ट को गति प्रदान करने की बात भाजपा प्रत्याशी ने कही है, लेकिन इसका जवाब नहीं है कि अब तक भी उनके ही सांसद थे फिर अपेक्षित गति क्यों नहीं मिली।
सबलगढ़ के रामपुर पहाड़ी क्षेत्र में दो दर्जन गांवों के लोग बारिश थमते ही जल संकट से जूझने लगते हैं। सबलगढ़ की ग्राम पंचायत बामसौली, रामपुर, जलालगढ़, गोबरा, बेरखेड़ा, सिमरौदा-किरार, सालई, धरसोला, सराय, सलमपुर, रुनघान-खालसा और सेमना में गंभीर पेयजल और सिंचाई संकट है। कैलारस जनपद में डुंगरावली, गोल्हारी, विभूति, देवरी और मामचौन में सिंचाई और पेयजल दोनों ही संकट हैं।
वर्ष 2008-09 से सहकारी शक्कर कारखाना बंद है। इसके 1250 कर्मचारियों के परिवारों के अलावा 5000 से अधिक गन्ना उत्पादक किसानों के सामने भी संकट खड़ा हुआ। लोकसभा चुनाव 2014 में भाजपा उम्मीदवार अनूप मिश्रा ने अपनी पहली ही चर्चा में शक्कर कारखाने को चालू कराना अपनी प्राथमिकता बताई थी, लेकिन अपेक्षित प्रयास नहीं हो पाए, जबकि कैलारस का सहकारी शक्कर कारखाना इस अंचल में रोजगार का बड़ा माध्यम था। यहां 1250 लोगों को तो प्रत्यक्ष तौर पर नौकरी मिली हुई थी। इसके सहारे आसपास चाय, नाश्ता एवं अन्य जरूरी सामान की दुकानों को भी सहारा मिलता था। पांच हजार किसान सीधे जुड़े थे। उनके साथ ट्रैक्टर से खेती करने वाले, माल ढोने वाले एवं अन्य कारणोंं से लोगों को काम मिला हुआ था, लेकिन शक्कर कारखाना बंद हो जाने के बाद सात हजार से ज्यादा परिवारों के सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया।
मुरैना जिले से सबलगढ़, कैलारस तहसील व पहाडगढ़़ विकासखंड को शामिल कर नए जिले के गठन के लिए दो साल से आंदोलन जारी है। श्योपुर जिले की विजयपुर और वीरपुर तहसीलोंं को भी इसमें शामिल करने का प्रस्ताव है। संघर्ष समिति ने इसके व्यावहारिक एवं तकनीकी पहलुओं को सामने रखकर इसका प्रस्ताव राष्ट्रपति तक भेजा है। आबादी, क्षेत्रफल और व्यावहारिकता से इसके हक में माहौल बनता है, लेकिन राजनीतिक पहल के बिना यह संभव नहीं है। इस मुद्दे पर कोई भी दल नहीं बोल रहा है। हालांकि पूर्व विधायक सुरेश चौधरी ने इस मुद्दे को विधानसभा में उठाया था, लेकिन सरकार ने सहमति नहीं दी थी।
बीहड़ समतलीकरण पर प्रस्ताव दफन
चंबल संभाग में करीब डेढ़ लाख हेक्टेयर में बीहड़ है। अक्टूबर 2016 में केंद्रीय कृषि मंत्री राधामोहन सिंह ने पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री और भाजपा के वर्तमान प्रत्याशी नरेंद्र सिंह तोमर के साथ मुरैना का दौरा किया था। 7.55 करोड़ रुपए की लागत से प्रदेश की पहली शहद शोधन इकाई की आधारशिला रखने के साथ ही 1100 करोड़ रुपए बीहड़ समतलीकरण योजना में देने की बात कही थी, लेकिन अब इस मुद्दे पर कोई चर्चा नहीं हो रही है, जबकि बीहड़ों के समतलीकरण से पर्याप्त मात्रा में कृषि योग्य भूमि निकल सकती है।
उच्च शिक्षा के लिए पशु चिकित्सा महाविद्यालय की दरकार है, लेकिन इस पर कोई भी राजनीतिक दल चर्चा नहीं करना चाहता है। युवा समाजसेवी डॉ. योगेंद्र सिंह मावई कहते हैं कि यहां बेटेनरी कॉलेज क्षेत्र और समय की मांग है। पॉलीटेक्निक कॉलेज का उन्नयन कर इसमें इंजीनियरिंग का डिग्री कोर्स संचालित हो सकता है। यहां दंत चिकित्सा महाविद्यालय की भी संभावनाएं हैं। यह सब महाविद्यालय ग्वालियर, गुना, शिवपुरी, अशोकनगर तक नहीं हैं। वर्तमान में स्कूल शिक्षा के लिहाज से तो मुरैना में ठीक इंतजाम है, लेकिन उच्च शिक्षा के लिए युवाओं को ग्वालियर, आगरा एवं अन्य बड़े नगरों में जाना पड़ता है, लेकिन इन मुद्दों पर राजनीतिक दल भी बात नहीं कर रहे और उम्मीदवारों का भी कोई विजन सामने नहीं आया है।