बेल्जियम की मूवी ‘एवरीबडीज फेमस!’ से प्रेरित डायरेक्टर अतुल मांजरेकर की फिल्म ‘फन्ने खां’ सपनों और उम्मीदों की कहानी है। इसमें नायक को अपने सपने को पूरा करने के लिए किसी भी हद तक जाते हुए दिखाया गया है। यह कहानी है प्रशांत शर्मा उर्फ फन्ने खां (अनिल) की, जो मोहम्मद रफी की तरह कामयाब सिंगर बनना चाहता था। उसका ख्वाब पूरा नहीं होता, लिहाजा वह बेटी लता (पीहू) को लता मंगेशकर बनाने के सपने देखने लगता है। प्लस साइज होने के कारण लता को बॉडी शेमिंग फेस भी करनी पड़ती है। कहानी में मोड़ तब आता है जब फन्ने खां व उसका दोस्त अधीर (राजकुमार) स्टार सिंगर बेबी सिंह (ऐश्वर्या) का किडनैप कर लेते हैं।
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एक्टिंग-डायरेक्शन
फिल्म में सपनों की उड़ान और पिता-पुत्री के रिश्ते को पिरोया है। फिल्म का प्लॉट अच्छा है, पर उसे स्क्रिप्ट व स्क्रीनप्ले में बेहतर ढंग से तब्दील करने में चूक हो गई। अनिल अपनी परफॉर्मेंस से फन्ने खां साबित हुए हैं। उन्होंने लोअर मिडिल क्लास शख्स का रोल बखूबी निभाया है, जिसे अपने सपने को पूरा करने का जुनून है। बेटी की भूमिका में पीहू ठीक लगी हैं। अनिल व पीहू के पिता-पुत्री की नोक-झोंक वाले कुछ सीन अच्छे बन पड़े हैं। ऐश्वर्या और राजकुमार का काम ठीक है, लेकिन उनके किरदार ढंग से नहीं लिखे गए। ‘अच्छे दिन’ को छोड़ दिया जाए तो इस म्यूजिकल फिल्म का गीत-संगीत कुछ खास नहीं है। सिनेमैटोग्राफी आकर्षक है।
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क्यों देखें
‘फन्ने खां’ अनिल की अच्छी परफॉर्मेंस पर कमजोर कहानी ने पानी फेर दिया। फिल्म में संगीत से लगाव और पिता-पुत्री के रिश्ते की कहानी है, पर इमोशंस के मामले में फीकी है। ऐसे में अगर आप अनिल के फैन हैं तो ही देखें ‘फन्ने खां’।