नई दिल्ली: इस फ्राइडे रिलीज हुई है सैफ अली खान की लाल कप्तान फिल्म। जिसे डायरेक्ट किया है नवदीप सिंह ने। फिल्म हमें बताती है कि अंत सबका होना है। लेकिन फिल्म हमें ये समझाने में इतना ज्यादा टाइम ले लेती है लगता है कि ये फिल्म कब अंत होगी। लाल कप्तान आधारित है उस कहानी पर जब 1764 में हुए बक्सर युद्ध के लगभग 25 साल बाद पूरे भारतवर्ष में अफरा तफरी मची हुई थी रुहेले, मराठे, नवाब, निजाम सब आपस में बुरी तरह से लड़ रहे थे।
ऐसे में एक इंसान गोसाई (सैफ अली खान) बक्सर युद्ध के असफल होने का कारण एक धोखेबाज नवाब रहमत खान (मानव विज) को मानता आया है, जिसके धोखे के कारण एक बाप और बेटे को फांसी पर चढ़ा दिया गया। इसी का बदला गोसाई रहमत खान से लेना चाहता है। फिल्म का संस्पेस एकदम आखिर में जाकर खुलता है, तब तक ऑडियंस फिल्म से ऊब चुकी होती है और फीका क्लाइमैक्स देखकर आपको और ज्यादा निराशा हाथ लगती है। फिल्म में एक खबरी (दीपक डोबरियाल) भी है, जो पैसों के लिए गंध सूंघकर जासूसी करता है। वहीं, एक मिस्ट्री वुमन (जोया हुसैन) भी है, जिसकी अपनी ट्रैजिडी है।
निर्देशक नवदीप सही मायने में हॉलीवुड स्टाइल की फिल्म बनाना चाहते थे जिसमें काफी हद तक वह सफल भी रहे हैं जिस तरह का शॉट लेने का अंदाज उनका है वह वाकई तारीफ-ए-काबिल है मगर बड़ी स्टारकास्ट, ग्रैंड प्रोडक्शन वैल्यू, अच्छा डिस्ट्रीब्यूशन इन सब पर पानी फेर देता है नवदीप का स्क्रब डिपार्टमेंट। फिल्म काफी सुस्त है झटके-झटके लेकर फिल्म आगे बढ़ती है।
बात करें एक्टर्स की एक्टिंग की तो सैफ अली खान नागा साधु के किरदार में कमाल का परफॉर्मेंस करते नजर आते हैं। वहीं नेगेटिव रोल प्ले कर रहे नवाब विज भी अपनी एक्टिंग से छाप छोड़ते हैं। दीपक डोबरियाल कमाल के एक्टर हैं। इस फिल्म में जब-जब वो स्क्रीन पर आते हैं तब-तब चेहरे पर मुस्कान दे जाते हैं। जोया हुसैन और सिमोन सिंह भी अपने अपने किरदार के साथ इंसाफ करती हैं।
स्कारकास्ट ने अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ी है फिल्म इतनी उबाऊ है कि आपको किरदार भी उबाऊ लगने लगते हैं। फिल्म अगर थोड़ी फास्ट होती तो शायद ये थोड़ी प्रभावी होती। मैं इस फिल्म को दूंगी 5 में से 1.5 प्वाइंट।