कहानी आमिर (ईशान) और उसकी बहन तारा (मालविका) के इर्द-गिर्द घूमती है। मां-बाप की मौत के बाद आमिर तारा के घर रहता है, लेकिन तारा का शराबी पति नशे में दोनों भाई-बहन को पीटता है। इससे तंग आकर 13 साल की उम्र में आमिर तारा का घर छोड़कर चला जाता है। आमिर बड़ा आदमी बनना चाहता है। पैसे कमाने के चक्कर में वह ड्रग्स सप्लाई का काम ? करने लगता है, वहीं तारा भी पति का घर छोड़कर धोबी घाट पर काम करती है। नसीब एक बार फिर दोनों भाई-बहन को मिला देता है। दरअसल, आमिर के पीछे पुलिस पड़ी है और वह बचकर भागते हुए वहीं पहुंच जाता है, जहां उसकी बहन काम करती है। इस बीच दोनों भाई-बहन की जिंदगी में कई उतार-चढ़ाव आ चुके हैं। धोबी घाट पर अधेड़ उम्र का अक्षी (गौतम घोष) तारा पर बुरी नजर रखता है। एक दिन जब अक्षी तारा से जबरदस्ती करने लगता है तो वह बचाव में पत्थर से उसे मारती है। जानलेवा हमला करने के जुर्म में तारा को जेल भेज दिया जाता है, वहीं गंभीर घायल अक्षी को अस्पताल। यहीं से कहानी में नया ट्विस्ट आता है।
ईशान पहली ही फिल्म में अपने एक्टिंग टैलेंट से इम्प्रेस करने में कामयाब रहे हैं। उन्होंने किरदार को अच्छी तरह समझ कर जीने की कोशिश की है। हर दृश्य में वह अलग छाप छोड़ते नजर आए हैं। उनके हाव-भाव सीन की सिचुएशन के मुताबिक परफेक्ट लगे हैं। मालविका ने भी सशक्त ढंग से अपनी भूमिका निभाई है। तनिष्ठा चटर्जी के हिस्से करने को ज्यादा कुछ नहीं है। गौतम घोष, जी वी शारदा और शशांक शिंदे अपने कैरेक्टर में फिट हैं।
माजिद का कहानी कहने का अंदाज बेहतरीन है। दृश्यों का संयोजन भी खूबसूरत है। मुख्य किरदारों की जिंदगी के उतार-चढ़ाव को उन्होंने बखूबी दिखाया है, लेकिन ढीली स्क्रिप्ट और कई जगह तार्किकता की कमी फिल्म की रिदम बिगाड़ देती है।
पहला हाफ स्लो है। दूसरे हाफ में फिल्म को पेस मिलता है। ए. आर. रहमान का म्यूजिक बेअसर है। सिनेमैटोग्राफी आकर्षक है। अनिल मेहता ने झुग्गी बस्तियों को शानदार ढंग से शूट किया है। वहीं हसन की एडिटिंग डीसेंट है।
माजिद का कहानी कहने का अंदाज बेहतरीन है। दृश्यों का संयोजन भी खूबसूरत है। मुख्य किरदारों की जिंदगी के उतार-चढ़ाव को उन्होंने बखूबी दिखाया है, लेकिन ढीली स्क्रिप्ट और कई जगह तार्किकता की कमी फिल्म की रिदम बिगाड़ देती है।
पहला हाफ स्लो है। दूसरे हाफ में फिल्म को पेस मिलता है। ए. आर. रहमान का म्यूजिक बेअसर है। सिनेमैटोग्राफी आकर्षक है। अनिल मेहता ने झुग्गी बस्तियों को शानदार ढंग से शूट किया है। वहीं हसन की एडिटिंग डीसेंट है।