बैनर : फैंटम प्रोडक्शंस, बालाजी मोशन पिक्चर्स
निर्माता : शोभा कपूर, एकता कपूर, समीर नायर, अमान गिल, विकास बहल, विक्रमादित्य मोटवानी, अनुराग कश्यम
निर्देशक : अभिषेक चौबे
जोनर : थ्रिलर
संगीतकार : अमित त्रिवेदी
गीतकार : बाबू हाबी, शाहिद माल्या, भानु प्रताप, दिलजीत दोसांझ, कणिका कपूर, अमित त्रिवेदी, विशाल डडलानी
स्टारकास्ट : शाहिद कपूर, अलिया भट्ट, करीना कपूर खान, दिलजीत दोसांझ, सतीश कौशिक
रेटिंग: 2.5/5
रोहित तिवारी/ मुंबई ब्यूरो। बी-टाउन के जाने-माने निर्देशक अभिषेक चौबे ने शुरू से ही विवादों में रही ‘उड़ता पंजाब’ में सिर्फ पंजाब ही नहीं, बल्कि देशभर में फल-फूल रही ड्रग्स जैसी जघन्य समस्या की ओर दर्शकों का ध्यान आकर्षित करने के लिए भरसक प्रयास किया है। उन्होंने अपने निर्देशन में हर संभव कोशिश की है कि इससे ऑडियंस को ड्रग्स के प्रति जागरूक होने का एक अच्छा मौका मिलेगा। अब सवाल यह है कि क्या वो अपने निर्देशन में सफल रहे? इसकर फैसला दर्शक शुक्रवार को ही कर देंगे।
कहानी…
पूरी फिल्म की कहानी शुरू से ही तीन भागों में चलती है। फिल्म शुरू होती है पंजाब के फेमस सिंगर टॉमी सिंह (शाहिद कपूर) से, जो ड्रग्स का आदी होता है और उसी की लत में वह तरह-तरह के कंसट्र्स करता है। साथ ही उसके कई फैंस उसी की वजह से ड्रग्स की चपेट में आ जाते हैं। टॉमी सिंह तायाजी (सतीश कौशिक) के लिए काम करता है, जो पंजाब में आए दिन टॉमी के बलबूते म्यूजिक कंसट्र्स कराता रहता है। वहीं दूसरी तरफ कुमारी पिंकी (आलिया भट्ट) पंजाब के एक सुल्तानपुरा गांव में वहां के रसूखदारों के यहां खेती करती है और एक दिन उसके हाथ 3 किलो का ड्रग्स का पैकेट लग जाता है, जिसे बेचने के लिए वह वहां के डीलरों से डील करने जाती है। लेकिन वह डर की वजह से सारा कोकीन एक कुएं में फेंक देती है, जिसकी वजह से डीलरों का करोड़ों का नुकसान हो जाता है और वे लोग पिंकी को जबरन ड्रग्स दे-देकर बारी-बारी अपनी हवस का शिकार बनाते रहते हैं।
इसके विपरीत पंजाब पुलिस में कार्यरत सरताज सिंह (दिलजीत दोसांझ) वहां के सिस्टम के तहत ही ड्रग्स तस्करी में माफियाओं का साथ देता रहता है। फिर एक दिन उसका छोटा भाई बल्ली ड्रग्स का अधिक डोज लेने की वजह से अस्पताल पहुंच जाता है, जिसका ईलाज डॉ. प्रीति साहनी (करीना कपूर खान) करती हैं और उन्हें पता चल जाता है कि बल्ली पिछले कई दिनों से कोकीन ले रहा है। डॉ. प्रीति यह बात सरताज को बताती हैं, तो सरताज की आंखें खुल जाती हैं और फिर दोनों मिलकर ड्रग्स माफियाओं के खिलाफ सबूत जुटाने में जुट जाते हैं। फिर पंजाब में इलेक्शन करीब आते ही टॉमी सिंह जबरन गिरफ्तार कर लिया जाता है और वहीं पुलिस स्टेशन में उसकी मुलाकात कई ऐसे बच्चों से होती है, जो ड्रग्स की चपेट में आकर अपनी मां तक का खून कर डालते हैं और टॉमी के गानों को सुनते हुए ही वे बच्चे ड्रग्स का सेवन किया करते थे। बस, वहीं से टॉमी सिंह की आंखों पर पड़ा पर्दा उठ जाता है।
इधर, एक दिन रात के अंधेरे में पिंकी ड्रग्स माफियाओं की गिरफ्त से भाग निकलती है और टॉमी सिंह की इच्छा के बगैर आयोजित हो रहे म्यूजिक कंसर्ट के पास पहुंच जाती है और वहीं पर एक सूनसान जगह पर छिप जाती है। इधर, टॉमी भी वैसी परफॉर्मेंस नही देता, जैसी हमेशा से देता आ रहा था। लोग गुस्से में आ जाते हैं और टॉमी को मारने के लिए तैयार हो जाते हैं। किसी तरह टॉमी वहां से भाग निकलता है और वहीं सूनसान जगह पर पिंकी के पास जाकर छिप जाता है। लेकिन एक बार फिर पिंकी माफियाओं की गिरफ्त में आ जाती है। यही से कहानी में ट्विस्ट आता है और कहानी क्लाइमेक्स की ओर बढ़ती है।
अभिनय…
शाहिद कपूर ने अपने अभिनय में कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखी। वे किरदार की तह तक जाते दिखाई दिए और उन्होंने अपने रोल को जीवंत करने का भरपूर प्रयास किया है। साथ ही आलिया भट्ट ने अभिनय में अपना शत-प्रतिशत दिया है और वे निर्देशक के दिशा-निदेश पर ही खुद को साबित करती नजर आईं, जिसमें वे सफल भी रहीं। करीना कपूर खान ने फिल्म में अपनी भूमिका दर्ज कराने के लिए हर संभव प्रयास किया है, लेकिन उनकी मौजूदगी लोगों को कुछ अखरती-सी नजर आई। दिलजीत दोसांझ ने अपने रोल को बखूबी निभाया है और वे एक पुलिस वाले के अभिनय में सटीक रहे और रोल को बखूबी निभाया है। इसके अलावा सतीश कौशिक ने भी फिल्म में अच्छा काम किया है। लेकिन यह पूरी फिल्म शाहिद और आलिया के इर्द-गिर्द घूमती है। पूरी फिल्म में भागम-भाग है। बात-बात में गालिया हैं। कभी-कभी ऐसा लगता है, जैसे यह फिल्म ड्रग्स पर नहीं गालियों पर बेस्ड है। नतीजन पूरी फिल्म में मनोरंजन पर गालियां भारी पड़ जाती हैं।
निर्देशन…
निर्देशक अभिषेक चौबे हमेशा ही अपने अलग अंदाज की कहानियों को दर्शकों के सामने परोसते आए हैं। इस बार उन्होंने देश-विदेश में अपने पैर पसार रहे ड्रग्स जैसे मुद्दे को फिल्म में दर्शाया है। साथ ही फिल्म की ओर लोगों को आकर्षित करने के लिए उन्होंने इसमें थ्रिलर का भी धमाकेदार तड़का लगाने की पूरी कोशिश की है। चौबे ने फिल्म के लिए काफी होमवर्क तो किया है, लेकिन कहीं-कहीं पर वे इसके वर्क में थोड़ा डगमगाते से दिखाई दिए। ड्रग्स जैसे मुद्दे को एक थ्रिलर अंदाज में पेश करने में उन्होंने वाकई में कुछ अलग कर दिखाने का पूरा प्रयास किया, जिसकी वजह से वे ऑडियंस की वाहवाही बटोरने में सफल रहे। फिॅल्म का फस्र्ट हॉफ तो ठीक रहा, लेकिन सैकंड हाफ में निर्देशक की स्क्रिप्ट डगमगाती-सी नजर आई। इसके अलावा निर्देशक की फिल्म 80 के दशक की याद दिलाती हुई नजर आई और उन्होंने फिल्म में जबर्दस्त गाली-गलौज का तड़का लगाने में भी कोई कोर-कसर बाकी नहीं रखी।
बहरहाल, ‘पंजाब के सारे गबरू लगाके टाइट हैं, अब लेडीज को ही कुछ करना होगा…’ और ‘जमीन बंजर तो औलाद भी बंजर…’ जैसे कुछ एक डायलॉग्स की तारीफ की जा सकती है। कुलमिलाकर, गाली-गलौज को कम कर यदि सिक्रप्ट पर और मेहनत की जाती, तो शायद यह फिल्म दिल को छू जाती। ऐसे विषय जब रुपहले पर्दे के लिए उठाए जाते हैं, तो उस पर उसके असर पर सबसे ज्यादा ध्यान रखा जाता है। थोड़ी-सी चूक से वह फिल्म असरदार सिनेमा होते-होते रह जाती है। समाज में बदलाव, असरदार सिनेमा से ही संभव है, लेकिन उसे दर्शकों के सामने किस तरह परोसना है…यह बात सबसे अहम होती है। इस मामले में उड़ता पंजाब पूरी तरह से फेल रही।
गीत-संगीत…
ऐसी गंभीर फिल्मों में गीत-संगीत कोई खास मायने नहीं रखता। चूंकि इसमें एक रॉकस्टार की दर्शाया गया है, ऐसे में संगीत का भी महत्व बढ़ जाता है। अमित त्रिवेदी का संगीत ठीक-ठाक है। हां, उतना भी उम्दा नहीं है कि फिल्म को सुपरहिट करा सके।
क्यों देखें…
फिल्म में कुछ हद तक सच्चाई परोसी गई है, लेकिन ड्रामा ज्यादा है। फिल्म ड्रग्स पर बेस्ड है, लेकिन इसकी स्क्रिप्ट इतनी कमजोर है कि यह दर्शकों पर असर नहीं छोड़ती। यदि हम यह कहें कि फिल्म ड्रग्स के प्रति जागरूकता कम जगाती है, बल्कि गाली देने की ट्रेनिंग ज्यादा देती है, तो गलत नहीं होगा। जो गाली-गलौज देने-सुनने के आदी हैं या शौकीन हैं, उनके लिए फिल्म परफेक्ट है। हां, यदि आप यह सोच कर देखने जा रहे हैं कि इसमें मनोरंजन होगा, तो आप गलत साबित होंगे। आगे आपकी जेब और आपकी मर्जी…!