जबलपुर। कोकिला व्रत आषाढ़ मास की पूर्णिमा तिथि (19 जुलाई) को किया जाता है। इस व्रत को सौभाग्यशाली महिलाएं करती है। कोकिला व्रत को जिस स्त्री को करना हो, उस स्त्री को प्रात: सूर्योदय से पूर्व उठना और स्नान करना चाहिए। इसके बाद ही उसे स्वयं को सुगंधित इत्र लगाना चाहिए। यह नियम इस दिन से प्रारंभ करतेे हुए उपवासक को अगले आठ दिनों तक करना चाहिए। इसके बाद उबटन लगाकर प्रात:काल में भगवान भास्कर की पूजा करनी चाहिए।
व्रत कथा
एक बार दक्ष प्रजापति ने बहुत बड़ा यज्ञ किया। उस यज्ञ में समस्त देवताओं को आमंत्रित किया गया। परन्तु भगवान शिव जो रिश्ते में उनके दामाद लगते थे, उन्हें नहीं बुलाया गया। यह बात जब प्रजापति की पुत्री देवी सती को मालूम हुई तो देवी ने भगवान शंकर से मायके जाने का आग्रह किया।
शंकरजी ने बहुत समझाया कि बिना बुलाये नहीं जाना चाहिए। किन्तु सती ने एक न मानी और मायके चली गई। मायके में देवी सती का बहुत अपमान हुआ, जिसे देवी सती सहन नहीं कर सकीं। अपने पति का अपमान सहन न हो पाने के कारण वह अग्नि में भस्म हो गई।
उधर, भगवान शंकर को जब यह समाचार मिला तो उन्होंने क्रोधित होकर यज्ञ विध्वंस करने के लिए वीरभद्र नामक गण को भेजा। वीरभद्र ने दक्ष के यज्ञ को खंडित कर तमाम देवताओं को अंग-भंग करके भगा दिया। इस विप्लव से आक्रांत होकर भगवान विष्णु शंकरजी के पास गए तथा देवों को पूर्ववत रूप में बनाने को कहा।
इस पर भगवान पशुपति ने देवताओं को फिर से पहले का रूप दे दिया, परन्तु वे अपनी आज्ञा का उल्लंघन करने वाली सती को क्षमा न कर सके। उन्हें दस हजार वर्ष तक कोकिला-पक्षी बनकर विचरण करने का श्राप दे दिया। तभी से देवी सती कोकिला रूप में दस हजार वर्षों तक नन्दन वन में रही हैं। इसके बाद देवी ने माता पार्वती के रूप में जन्म लिया। आषाढ़ मास में एक मास तक व्रत करने पर देवी सती को भगवान शिव पति के रूप में वापस मिले थे।
व्रत महत्व
भारत में न केवल देवी-देवताओं का पूजन किया जाता है, बल्कि वृक्षों की पूजा और पशु-पक्षियों की पूजा करने की परम्परा हमारे यहां बहुत ही पुरानी है। हिन्दू धर्म में गाय को माता के समान आदर दिया जाता है। उसी की श्रेणी में कोकिला व्रत आता है। इस दिन व्रतधारी महिलाओं के लिए कोयल के दर्शन या उसका स्वर कान में पडना अति शुभ बताया गया है।
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