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मुंबई

सख्त मां के बच्चे पढ़ाई और नौकरी में अच्छे

– देश- विदेश के कई शोध ने स्वीकारी कड़वी हकीकत- परविारों में सबसे ज्यादा बिगड़ रहे एकलौते बच्चे- बच्चों की ज्यादा तारीफ बना रही स्वार्थी और अहंकारी

मुंबईJan 02, 2022 / 09:16 pm

arun Kumar

सख्त मां के बच्चे पढ़ाई और नौकरी में अच्छे

सख्त मां के बच्चे पढ़ाई और नौकरी में अच्छे

अरुण कुमार
जयपुर. अगर आपकी मां बचपन में आप पर कुछ सख्त रहती है तो भविष्य में आपके सफल होने की सम्भावनाएं ज्यादा हैं। दुेश दुनिया की कई शोध इस बात पर अपनी मोहर लगाते हैं। हालांकि आधुनिक अभिभावक और मनोवैज्ञानिक सख्ती को जरूरी तो मानते हैं पर कहने और करने से हिचकते हैं।
शोध बताते हैं कि जिन बच्चो की मां सख्त होती है, वे उस समय मां के रवैये को भले ही पसंद नहीं करते लेकिन सफल होने के बाद हर मंच पर अपनी मां का शुक्रिया अदा करते हैं। जब वे मां या पिता बनते हैं तब उन्हेें एहसास होता है कि मां-बाप ने बचपन में उनके साथ जो सख्ती की थी उसकी बदौलत ही वे आज किसी मुकाम पर हैं। सख्ती का मतलब यह बिल्कुल नहीं है कि बच्चों को खाने-पीने, आने-जाने, खेलने-कूदने से रोका जाए बल्कि उन्हें सभी काम समय पर अनुशासित तरीके से करने को कहा जाता है।
यदि मां अपने बच्चों को होमवर्क समय से करने को कहती है या फिर उनकी ही चीजें सलीके से सही जगह रखने को कहती है तो साफ है कि मां आपको भविष्य के लिए तैयार कर रही है। आप भविष्य में हर चुनौती का सामना कर सफल हो पाएं… मां सिर्फ यही चाहती है।
बिगड़ रहे अकेले बच्चे
अमेरिका का एक शोध कहता है कि चीन में ‘एक परिवार, एक बच्चाÓ नीति के चलते परिवार में बच्चे लाड़-प्यार से बिगड़ रहे हैं। इटली, जर्मनी और कई यूरोपीय देशों में बच्चे तानाशाह बनने लगे। ऐसे बच्चे बेहद स्वार्थी हो जाते हैं और किसी तरह का जोखिम नहीं उठाना चाहते। मुंह से निकली हर बात पूरी न होने पर वे आक्रामक हो जाते हैं।
सच को बयां करते शोध
– इंगलैंड के एस्सेक्स विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एरिका रास्कोन ने भारतीय विज्ञानियो के साथ 13 से 14 साल के 15000 बच्चों पर छह साल तक शोध किया। परिणाम चौंकाने वाले रहे कि जो मां बच्चों को लेकर सख्त और सतर्क रहीं उनके बच्चों में आत्मविश्वास, निर्णयन क्षमता और अच्छी नौकरी की संभावनाएं ज्यादा पााई गईं।
– अमेरिका की राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी ने 565 बच्चों पर अध्ययन किया। डेढ़ साल के इस अध्यन में जिन बच्चों के माता-पिता उन्हें स्पेशल होने का एहसास कराते थे कि तुम मेरे लिए स्पेशल और श्रेष्ठ बच्चे हो, ऐसे 16 फीसदी बच्चे अन्य बच्चों की तुलना में स्वार्थी, अहंकारी और कम प्रतियोगी पाए गए।
केस 1
चर्चित ब्लागर शिप्रा त्रिवेदी कहती हैं कि मेरी मां हमेशा से ही एक सख्त अभिभावक थी…अभी भी है, जबकि मैं खुद मां हूं। मां के पास हमारी हर उस मांग को नकारने का हक था जो उसे सही नहीं लगती थी। मां जरूरत से ज्यादा स्पष्टीकरण भी नहीं देती थी हमें, कई बार तो… बस कह दिया तो कह दिया होता था। वो मां के जैसे प्यार भी बहुत करती थी लेकिन सख्ती से भी नहीं हिचकती थी। बचपन में लगता था कि वो सब जानबूझकर मना कर देती थी, पर अब जब मैं खुद एक मां हूं एहसास होता है कि हम गलत थे। उनकी सख्ती की वजह से ही आज उनके बच्चे सफल हैं।
केस 2
मेरा सब कुछ मां की बदौतल
महाराष्ट्र के पूर्व चिकित्सा शिक्षा निदेशक डॉ. तात्याराव लहाने कहते हैं कि मेरी हर सफलता का श्रेय मां को जाता है। मां का सपना था कि मैं पढ़-लिख कर अफसर बनूं। पिता के निधन के बाद घर के हालात ऐसे नहीं थे कि दो जून की रोटी का इंतजाम हो पाता। मैंने मजदूरी की लेकिन मां की सख्ती और प्रेरणा से पढ़ाई करता रहा। 1985 में महाराष्ट्र राज्य लोक सेवा आयोग में चयन हुआ और मैं महाराष्ट्र का मेडिकल एजुकेशन डायरेक्टर बना। मेरी किडनी खराब हुईं तो मां ने किडनी देकर दूसरा जीवन दिया। मां बच्चों के लिए क्या-क्या नहीं करती, लेकिन अफसोस कि बच्चे इसे नहीं समझ पाते।
बच्चे बन रहे घर के बॉस
अहमदाबाद के बाल मनोवैज्ञानिक चिन्मय देसाई कहते हैं कि आजकल के बच्चे घर में बॉस बन रहे हैं। बच्चों के हिसाब से माता-पिता काम एडजस्ट कर रहे हैं। बच्चों की फरमाइश पर घर में खाना बन रहा है। बच्चों की पसंद पर घूमना- टहलना हो रहा है। इस तरह की पेरेंटिंग कहीं न कहीं अभिभावकों को कमजोर कर रही है और बच्चे बॉस बन रहे हैं।
अशिक्षित मां के बच्चे भी सफल
एशिया के सबसे बड़े सिविल हास्पिटल के मनोचिकित्सक डॉ. रमाशंकर यादव कहते हैं कि बच्चे के लिए मां से बड़ा कोई काउंसर नहीं है। यह जरूरी नहीं है कि मां शिक्षित ही हो। बच्चों के हाव-भाव या सही गलत समझने वाली अशिक्षित मां के बच्चे भी आगे रहते हैं। मां शिक्षित है तो फर्क इतना पड़ता है कि वह पढ़ाई में बच्चों की मदद कर देती है।
गलती पर बच्चे को रोकें जरूर
देखा जाता है कि जब परिवार का कोई सदस्य बच्चे को कुछ सिखाने के लिए फटकार लगता है तो दूसरा पारिवारिक सदस्य बच्चे की गलती को नजरअंदाज कर डांटने वाले को ही रोकता है। इससे बच्चे को बल मिलता है और फिर से गलती दोहराने की कोशिश करता है।
– डॉ. रमाशंकर यादव, मनोचिकित्सक मेंटल हॉस्पिटल, अहमदाबाद
प्यार की जगह पैसा गलत

पैसे के पीछे लोग इस कदर पागल है कि बच्चे सेकेंड्री हो रहे हैं। अभिभावकों को भ्रम है कि वे बच्चों की हर कमी पैसों से पूरी कर देंगे। माता-पिता का प्यार बच्चों में गहरे तक असर करता है इसे पालना घर या नैनी नहीं दे सकते। माना कि पैसा जरूरी है लेकिन बच्चे ही लायक न बने तो पैसे भी किस काम के।
– डॉ. हरीश शेट्टी, चर्चित मनोचिकित्सक, मुंबई

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