आत्मविश्वास से भरी सातवीं कक्षा में पढऩे वाली गायत्री कहती हैं, ये कोई बड़ा काम नहीं। मेरे बाल तो कुछ दिनों में आ जाएंगे। पर, मेरे बालों से जब किसी मरीज का जीवन सुधरेगा, उसका दर्द कम होगा तो मुझे खुशी होगी। मैंने यह फैसला कैंसर पीडि़तों के चेहरे पर मुस्कान लाने के लिए किया। पहले जो लोग मेरे निर्णय पर सवाल उठाते थे, अब वही तारीफ करते हैं।
गायत्री के पिता गजानन पूर्व सैनिक हैं। उन्होंने बताया, “मेरी मां को कैंसर था। रिटायरमेंट के बाद मैंने कैंसर पीडि़तों की मदद का बीड़ा उठाया। गायत्री उनकी पीड़ा बचपन से देखती आई है। पर, मैं नहीं जानता था कि उसके बचपन पर इसका सकारात्मक असर पड़ेगा। एक दिन गायत्री मुझसे बोली, पापा किरण दीदी (एक युवती, जिसने अपने बाल कैंसर मरीजों के लिए दान किए) की तरह अपने बाल दान करना चाहती हूं। मेरे लिए यह सपना सच होने जैसा था। मुझे लगा कि मेरी बेटी दूसरों का दर्द समझ गई है। बेटी की चाहत से मेरी आंखें नम हो गईं। मैंने कहा हां, जरूर…।”
कीमो से डरती थीं दादी
गायत्री ने बताया, “मैंने कई तरह के कैंसर मरीज देखे हैं। महिलाओं के लिए बाल कितने अहम हैं, यह मैं अपनी दादी से समझी। बाल झडऩे के डर से मेरी दादी कीमो के इंजेक्शन नहीं लगवाती थीं। वे सोचती थीं कि बिना बाल के वे कैसी लगेंगी।
आंटी के बाल झड़े