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ग्रहों की उच्चदशा में हुआ राम का जन्म

शिव संकल्प मानस सेवा ट्रस्ट की ओर से संगीतमय कथा कथावाचक रामानुज पांडेय ने सुनाई रामकथा

मुंबईApr 17, 2019 / 10:42 pm

Chandra Prakash sain

Mumbai news

ग्रहों की उच्चदशा में हुआ राम का जन्म


ठाणे. ठाणे में शिव संकल्प मानस सेवा ट्रस्ट की ओर से आयोजित संगीतमय श्रीराम कथा में गुरुकुल विद्या पीठ मनोरमा नगर ठाणे में अयोध्या से आये कथा वाचक पं. रामानुज पाण्डेय मानस भ्रमर ने भगवान श्रीराम के जन्म की कथा सुनाकर आए हुए भक्तों को भावविभोर कर दिया। उन्होंने कहा दशरथ ने पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ करने की ठानी। महाराज की आज्ञानुसार श्यामकर्ण घोड़ा चतुरंगिनी सेना के साथ छुड़वा दिया गया। महाराज दशरथ ने समस्त मनस्वी, तपस्वी, विद्वान ऋषि-मुनियों तथा वेदविज्ञ प्रकाण्ड पण्डितों को यज्ञ सम्पन्न कराने के लिये बुलावा भेज दिया।
निश्चित समय आने पर समस्त अभ्यागतों के साथ महाराज दशरथ अपने गुरु वशिष्ठ तथा अपने परम मित्र अंग देश के अधिपति लोभपाद के जामाता ऋ ंग ऋ षि को लेकर यज्ञ मण्डप में पधारे। इस प्रकार महान यज्ञ का विधिवत शुभारंभ किया गया। सम्पूर्ण वातावरण वेदों की ऋ चाओं के उच्च स्वर में पाठ से गूंजने तथा समिधा की सुगन्ध से महकने लगा। समस्त पण्डितों, ब्राह्मणों, ऋ षियों आदि को यथोचित धन-धान्य, गौ आदि भेंट कर के सादर विदा करने के साथ यज्ञ की समाप्ति हुई।
राजा दशरथ ने यज्ञ के प्रसाद खीर को अपने महल में ले जाकर अपनी तीनों रानियों में वितरित कर दिया। प्रसाद ग्रहण करने के परिणामस्वरूप तीनों रानियों ने गर्भधारण किया।
जब चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को पुनर्वसु नक्षत्र में सूर्य, मंगल शनि, वृहस्पति तथा शुक्र अपने-अपने उच्च स्थानों में विराजमान थे, कर्क लग्न का उदय होते ही महाराज दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या के गर्भ से एक शिशु का जन्म हुआ जो कि नील वर्ण अत्यन्त तेजोमय, परम कान्तिवान तथा अत्यंत सुंदर था। उस शिशु को देखने वाले देखते रह जाते थे। इसके पश्चात् शुभ नक्षत्रों और शुभ घड़ी में महारानी कैकेयी के एक तथा तीसरी रानी सुमित्रा के दो तेजस्वी पुत्रों का जन्म हुआ।
सम्पूर्ण राज्य में आनन्द मनाया जाने लगा। महाराज के चार पुत्रों के जन्म के उल्लास में गन्धर्व गान करने लगे और अप्सराएं नृत्य करने लगीं। देवता अपने विमानों में बैठ कर पुष्प वर्षा करने लगे।
महाराज ने उन्मुक्त हस्त से राजद्वार पर आए भाट, चारण तथा आशीर्वाद देने वाले ब्राह्मणों और याचकों को दान दक्षिणा दी। पुरस्कार में प्रजा-जनों को धन-धान्य तथा दरबारियों को रत्न,आभूषण प्रदान किए गए। चारों पुत्रों का नामकरण संस्कार महर्षि वशिष्ठ के द्वारा किया गया तथा उनके नाम रामचन्द्र, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न रखे गए।

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