कैसे बनता है एथेनॉल
एथेनॉल बायो-फ्यूल (जैव इंधन) है। यह अल्कोहल आधारित है। चीनी मिलें इसका उत्पादन ज्यादा करती हैं। सरकार ने अनाज से एथेनॉल बनाने की मंजूरी दी है। स्टार्च-शुगर के फर्मेंटेशन से यह तैयार होता है। कच्चा माल आसानी से उपलब्ध है। इसे बनाने की लागत कम है। कपास के डंठल, गेहूं के भूसे और बांस से भी एथेनॉल हासिल हो सकता है।
किसानों को फायदा
कृषि क्षेत्र के जानकार आरके मिश्रा ने बताया कि एथेनॉल का उत्पादन लक्ष्य के हिसाब से बढ़ा तो सबसे ज्यादा फायदा किसानों को होगा। गन्ने की खेती को प्रोत्साहन मिलेगा। गेहूं-मक्का की खेती का दायरा भी बढ़ेगा। कपास की लकड़ी अभी फेंकी या जलाई जाती है। उसकी भी कीमत मिलेगी। बांस की मांग बढ़ेगी, जिसका लाभ पूर्वोत्तर के लोगों को मिलेगा। कृषि क्षेत्र को कर रियायतें मिली हैं। इसे देखते हुए एथेनॉल के भाव में उछाल की उम्मीद नहीं है।
अभी 10 प्रतिशत मिलावट
देश के अधिकांश हिस्सों में अभी 10 प्रतिशत एथेनॉल मिश्रित पेट्रोल (इ-10) मिलता है। अगले चार साल यानी 2025 तक पेट्रोल में 20 प्रतिशत मिश्रण (इ-20) का लक्ष्य है। जानकारों का कहना है कि 100 प्रतिशत एथेनॉल (इ-100) चालित वाहनों की संख्या बढ़ी तो कृषि क्षेत्र की तस्वीर बदल सकती है। कच्चे तेल का आयात घटा तो लाखों करोड़ रुपए की विदेशी मुद्रा बचेगी।
ब्राजील पहले नंबर पर
दुनिया के कई देशों में जैव ईंधन का इस्तेमाल होता है। इस मामले में ब्राजील पहले नंबर पर है। स्पेन में एथेनॉल सबसे महंगा 140 रुपए लीटर जबकि थाइलैंड में सबसे सस्ता 51 रुपए लीटर है। अमरीका, फ्रांस और ब्राजील में इसका भाव 51.50 रुपए से 65 रुपए के बीच है।