बेबी फूड उत्पाद कंपनियों की चांदी
मोटे अनाज से हेल्थ ड्रिंक, चिल्ला, इडली, टोस्ट, ब्रेड, बिस्किट, बेबी और हेल्दी फूड बड़ी मात्रा में बनाए जा रहे हैं। भारत में इस समय 4500 करोड़ रुपए से ऊपर का बेबी फूड कारोबार है। वर्ष 2020 में वैश्विक शिशु आहार बाजार 30.0 बिलियन डॉलर था जिसमें 2030 तक 6.1 फीसदी बढऩे की उम्मीद है।
गरीबों को गेहूं और चावल ही क्यों?
2018 में केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने मोटे अनाजों को “पोषक तत्वों” के रूप में घोषित किया लेकिन राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत देश के 88 करोड़ लोगों को 5 किलो गेहूं या चावल प्रति व्यक्ति प्रतिमाह वितरित किया जा रहा है। अगर इनको मोटा अनाज भी दिया जाए तो वे कुपोषण के साथ कई बीमारियों से बच सकेंगे।
पर्यावरण अनुकूल हैं मोटे अनाज
मोटे अनाज की अपेक्षा गेहूं और धान को उगाने में यूरिया का बहुत प्रयोग होता है। यूरिया जब विघटित होता है, तो नाइट्रस ऑक्साइड, नाइट्रेट, अमोनिया और अन्य तत्वों में बदल जाता है। नाइट्रस ऑक्साइड हवा में घुलकर सांस की गंभीर बीमारियां पैदा करती है और एसिड रेन का कारण भी बनती है।
आधा समय और आधे पानी में भी बेहतर उपज
गेंहू और धान की अपेक्षा मोटे आधा समय और अधा पानी लगता है। मोटे अनाज 70-100 दिन में तो गेहूं या चावल 120-150 दिन में तैयार होते हैं। इसी प्रकार मोटे अनाज को 350-500मिमी तो गेहूंँ या चावल को 600-1,200मिमी पानी की जरूरत होती है।
हरित क्रांति ने बिगाड़ दिया खेल
1960 के दशक में हरित क्रांति ने धान और गेहूं की फसल को बढ़ावा दिया लेकिन मोटे अनाजों से पल्ला झाड़ लिया। बीते चार दशक में चावल का उत्पादन 3.8 करोड़ से 8.6 करोड़ टन तो गेहूं 1.5 करोड़ टन से सात करोड़ टन हो गया जबकि मोटे अनाजों का उत्पादन 1.85 करोड़ टन से घटकर 1.8 करोड़ टन रह गया।
समर्थन मूल्य बढ़े तो बने बात
मंडी में कम मूल्य मिलने के कारण किसान मोटे अनाज की खेती से दूर हो गए हैं। मोटा अनाज असाध्य रोगों से बचाव करता है। समर्थन मूल्य बढ़े तो राजस्थान के किसान फिर से मोटा अनाज की पैदावार बढ़ा सकते हैं।
– नरेन्द्र यादव, अध्यक्ष, प्रगतिशील किसान मंच, आलीसर, चौमूं
प्रसंस्करण इकाईयों की जरूरत
हरित क्रांति के बाद सरकारों ने मोटे अनाज पर ध्यान नहीं दिया। पूरा फोकस गेहूं और धान पर रहा। समर्थन मूल्य कम होने के चलते मोटे अनाज की प्रसंस्करण इकाईयां राजस्थान में नहीं लग पाईं और किसान भी निराश होते गए।
– सुंडाराम वर्मा, राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त किसान, सीकर
हफ्ते में तीन दिन माटा अनाज खाएं
सप्ताह में तीन दिन ज्वार, बाजारा, जौ और गेहूं मिक्स रोटी से खाने से कैल्शीयम, प्रोटीन और आयरन आपको बीपी, शुगर और एलर्जी से बचाएगा। गेहूं की अपेक्षा मोटा अनाज सुपाच्य है इससे मेटाबोलिज्म भी सही रहता है।
– मेघावी गौतम, सीनियर डायटीशियन, जयपुर
कहां- कहां होता है उत्पादन?
ज्वार : मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश
बाजारा : राजस्थान, उत्तर प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र
जौ : राजस्थान, उत्तर प्रदेश
रागी : कर्नाटक, उत्तराखंड, झारखंड