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ठंडे पानी के लिए फ्रिज के मुकाबले मटके का पलड़ा भारी

पसंद: शीतल जल के लिए लोगों को पसंद आ रहा प्राकृतिक उपाय

मुंबईApr 04, 2019 / 06:06 pm

Devkumar Singodiya

राजस्थानी मटके

राजस्थानी मिट्टी के मटके की मांग

नवी मुंबई. आधुनिकता के इस दौर में अब मटका हर घरों की जरूरत बन गई है। हर्बल और नेचुरल चीजों के दौर में मटका गर्मी में लोगों की पसंद बनी है। शीतल जल के लिए लोग इस मिट्टी के घड़े को खूब पसंद कर रहे हैं। घरों में फ्रिज खाद्य सामग्री के रखने की वजह से जरूरत है, तो पेयजल के लिए मटके के विभिन्न वैरायटी बाजार में उतर चुके हैं, जिसे हर आय वर्ग के लोग खूब पसंद कर रहे हैं।
गर्मी की बढ़ती तपन के कारण लोगों को ठंडा पानी पीने की इच्छा बढऩे लगी है, लेकिन इस इच्छा की पूर्ति के समय यदि शीतल जल मिले तो प्यास सही मायने में बुझती है, अन्यथा प्यास और भड़क जाती है। किसी जमाने में गरीबों का फ्रिज माना जाने वाला मटका अब सबकी पसंद बना है। आधुनिक और महंगे फ्रिज रखने वाले लोग भी देशी मटके को खूब पसंद कर रहे हैं। गृहणियां बताती है कि नेचुरल चीजों का स्वाद परिवार में लोगों को भाता है, इस वजह से फ्रिज के होने के बावजूद वह देशी मटके को रखती हैं। इनमें राजस्थानी मिट्टी के मटके की खूब मांग रहती है।
मिट्टी के बने मटके की मांग गर्मियों में वैसे भी बढ़ जाता है, गरीबों के लिए तो यह मटका फ्रिज से कम नहीं होता। आर्थिक रूप से सम्पन्न लोग इसे आयुर्वेद के रूप में महत्व देते हैं।
नवी मुंबई परिक्षेत्र में मटका बेचने वालों की दुकानों में अभी तेजी है। सैकड़ों मटके प्रतिदिन बेचे जा रहे हैं। नवी मुंबई में पिछले कुछ दिनों से गर्मी का पारा चढ़ा है, इसलिए पानी को ठंडा करने का पारंपरिक तरीके से मटके का इस्तेमाल भी बढ़ रहा है। फ्रिज का ठंडा पानी चाहे जितना भी पिया जाए, परंतु उससे प्यास बुझाई नहीं जा सकती। साथ ही लोगों को ऐसी उमस में फ्रिज के ठंडे पानी से कभी-कभी लोगों को सर्दी और खांसी जैसी बीमारियों से जूझना पड़ता है। इसलिए परंपरागत रूप से पानी को ठंडा करने वाले मटके की मांग में वृद्धि हुई है।

राजस्थानी मटकों की खूब मांग
मुंबई समेत राजस्थान एवं गुजरात जैसे क्षेत्रों से नवी मुंबई एवं पनवेल शहर में प्रतिदिन लगभग हजारों मटके बिक्री के लिए आ रहे हैं। नवी मुंबई शहर में कई स्थानों पर नर्सरी हैं, जहां इस बड़े पैमाने पर मटके बेचे जा रहे हैं। मटके की खूबसूरती बढ़ाने के लिए गेरुआ और सुरमा रंग से रंगाई करके उसे और आकर्षक बनाया जाता है। साथ ही उसमें चमक लाने के लिए पॉलिश किया जाता है, उसमें अलग-अलग किस्म के नल लगाए जाते हैं और गोलाकार मटकों को रखने के लिए उसके निचले हिस्से में सीमेंट का पैर बनाकर उसे सजाया जाता है। उसके बाद इन मटकों को विक्रेता शहर में थ्री व्हीलर या अपने सिर पर एक बड़ी टोकरी में लेकर बेचने निकल पड़ते हैं।

रोजगार का बड़ा साधन बना
मटके की मांग से रोजगार के अवसर पैदा हुए हैं। घनसोली में विक्रेता सिकंदर गुप्ता ने कहा, पांच से 12 लीटर का मटका 200 से 400 रुपए में है। वाशी में विक्रेता मुन्ना कुमार ने कहा, पांच से 15 लीटर तक के वेरायटी में मटका उपलब्ध है। कीमत 180 से 400 रुपए तक है। लाल गेरुआ कलर के मटके की तुलना में सफेद मटका बेहतर है, इस का पानी काफी ठंड रहता है। वाशी, कोपर खैरने, घनसोली, ऐरोली, तुर्भे, नेरुल आदि जगहों पर मटके की मंाग है।

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