खेती के साथ रोजगार जरूरी
ग्रामायण के प्रोजेक्ट employment प्रमुख विजय घुगे ने बताया कि छोटे कास्तकारों के सामने कई चुनौतियां होती हैं। केवल खेती से गृहस्थी नहीं चल सकती है। देसी गोवंश के पालन को प्रोत्सान की दिशा में संस्था 2015-16 से काम कर रही है। दो साल पहले उमरेड में हमने ग्रामीण महिलाओं को गोबर से खाद और गोमूत्र से अन्य उत्पाद बनाने की ट्रेनिंग दी। गाय पालन से दूध मिलता है। गोबर-गोमूत्र से भी अतिरिक्त आय हो रही है। खेती के लिए वित्तीय तंगी नहीं है।
हंसी-खुशी आगे आ रहीं महिलाएं
देसी गायें ज्यादा दूध नहीं देती हैं। जरूरत का दूध milk रख बाकी बेच देते हैं। एक गाय से रोजाना औसतन छह किलो गोबर मिलता है। इससे देसी खाद-केंचुआ खाद बनाई जाती है, जिसकी अच्छी कीमत मिलती है। गौरा, अगरबत्ती आदि भी बनाई जाती है। इन उत्पादों की भी बाजार में अच्छी मांग है। गोमूत्र से गोमूत्र आसव, पंचगव्य, टूथपेस्ट Toothpaste, शैंपू, फेस पाउडर, साबुन soap जैसे चार दर्जन उत्पाद बनाए जाते हैं। महिलाएं हंसी-खुशी यह काम कर रही हैं।
बिक्री में दिक्कत नहीं
घुगे ने बताया कि गाय के गोबर व गोमूत्र से तैयार उत्पादों की बिक्री में कोई दिक्कत नहीं है। पूजा सामग्री, जनरल स्टोर से लेकर बड़े मॉल्स में भी ये उत्पाद उपलब्ध हैं। नवरात्रि, दिवाली Diwaliजैसे त्योहारी अवसरों पर ज्यादा बिक्री होती है। पूजा-पाठ के लिए पूरे साल लोग इन्हें खरीदते हैं। कई विधवा महिलाएं सहजता से परिवार चला रही हैं।
पर्यावरण सुरक्षा
गौपालन में महिलाओं को स्वरोजगार देने के साथ संस्था पर्यावरण environment सुरक्षा पर भी काम कर रही है। उन्होंने बताया कि हमारे अभियान में शामिल महिलाएं व उनके परिवार घर-खेत में पेड़ भी लगाते हैं। गोबर की खाद से पेड़ दल्दी तैयार हो जाते हैं। इससे न सिर्फ गांवों में हरियाली आई है बल्कि पर्यावरण में प्रदूषण कम करने में भी मदद मिलेगी।