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मुंबई

कोरोना से पीड़ित पावरलूम वेंटिलेटर पर

सालाना 20 हजार करोड़ रुपए का टर्नओरव
प्रति दिन होता है तीन करोड़़ मीटर कपड़े का उत्पादन
पांच वर्ष पहले तक देश के कुल निर्यात में पांच प्रतिशत हिस्सेदारी थी, जो अब घटकर तीन प्रतिशत से भी कम हो गई

मुंबईApr 04, 2020 / 03:00 pm

Arun lal Yadav

कोरोना से पीड़ित पावरलूम वेंटिलेटर पर

कोरोना से पीड़ित पावरलूम वेंटिलेटर पर


पत्रिका टीम
भिवंडी. दुनिया भर में सूती (कॉटन) कपड़े के लिए पहचाना जाने वाला विश्व का सबसे बड़ा पावर लूम सेंटर भिवंडी कोरोना पीड़ित होकर वेंटिलेटर पर पहुंच गया है। कब इसकी सांस निकल जाए कहा नहीं जा सकता। भिवंडी को कारोबारी दुनिया में हिंदुस्तान का मैनचेस्टर भी कहा जाता है। पिछले कुछ वर्षों से इस उद्योग पर छाई मंदी से यह क्षेत्र लगभग बैठ गया है। जानकारों की माने तो अब तो यह उद्योग लगभग मृत्यु शैया पर आ चुका है।

पालवलूम उद्योग का सालाना 20 हजार करोड़ रुपए का टर्नओरव है। यहां पर तीन करोड़़ मीटर कपड़े का प्रति दिन उत्पादन होता है। पांच वर्ष पहले तक देश के कुल निर्यात में पांच प्रतिशत हिस्सेदारी थी, जो अब घटकर तीन प्रतिशत से भी कम हो गई है।

यह कृषि के बाद सबसे ज्यादा रोजगार देने वाला उद्योग है। भिवंडी शहर का एकमात्र काम पावरलूम होने के कारण हर छोटे-मोटे कारोबार सहित शहर की सारी आर्थिक गतिविधियां इस उद्योग से गर्भनाल की तरह जुड़ी हैं।

पावरलूम से चलता है शहर
जब पावरलूम चलता है, तो शहर चलता है। जब पावरलूम की धड़कन बंद होती है, तो इस शहर के धमनियों में खून की रफ्तार भी सुस्त पड़ जाती है। यही कारण है कि लूम बंद होने से शहर में होटल, पान टपरी से लेकर अस्पताल और मेडिकल स्टोर तक पर बंदी की काली छाया स्पष्ट तौर पर नजर आने लगती है।

पावरलूम बंद होने के कारण मजदूरों को खाना खिलाने वाली बिस्सीयां और छोटी-छोटी चाय के दुकानदारों के बीच अपने परिवार की चलाने की चिंता सता रही है। लॉक डाउन के चलते पावरलूम उद्योग का कपड़ा उत्पादन, बिक्री सब ठप्प है।

इतना ही नहीं इस कारोबार से कई छोटे उद्योग पूरी तरह से ठप्प हैं। इससे भीम चलाने वाले, वारपीन, ट्विस्टिंग, डबलिंग वाइनडिंग, फोल्डिंग, साइजिंग, प्रोसेस हाउस, ट्रांसपोर्टर और भीम भरने वालों सहित अन्य कई तरह के छोटे-छोटे जॉब वर्क्स के जुड़े लाखों मजदूरों की रोजी-रोटी एक झटके में लॉक होकर रह गई है।

पावरलूम को दफन कर देगा कोरोना
भिवंडी पावरलूम वीवर्स फेडरेशन के अध्यक्ष युसूफ हसन मोमिन ने बताया कि आज कोरोना वायरस के फैलाव को रोकने के चलते हुए लॉक डाउन के कारण पावरलूम बंद है। लेकिन वास्तविकता तो यह है कि यह उद्योग पिछले 3-4 सालों से मंदी नामक वायरस से भयंकर तौर पर संक्रमित है।

कभी आठ लाख से ऊपर पावरलूम इस शहर में चलते थे, पिछले दो-तीन सालों में घटकर इनकी संख्या पांच लाख के आस पास रह गई है। इतना ही नहीं मजदूरों की भी संख्या लगभग पांच लाख से घटकर ढाई लाख हो गई है। फिलहाल अर्थ व्यवस्था चरमराने के कारण उद्योग धंधे बैठ गए हैं। जिसे पूरी तरह दफन करने का काम कोरोना वायरस कर देगा।

कपड़ा उद्योग को अंधे कुएं में धकेलेगा कोरोना

कोरोना से पीड़ित पावरलूम वेंटिलेटर पर

पावरलूम उद्योग का चेहरा माने जाने वाले पूर्व विधायक रशीद ताहिर मोमिन का कहना है कि खेती के बाद देश को सर्वाधिक रोजगार मुहैया कराने वाले असंगठित क्षेत्र पावरलूम की बर्बादी के पीछे यूं तो टेक्सटाइल नीति, बिजली दरों की बढ़ोतरी से लेकर तमाम तरह की वजहें बताई जाती हैं। लेकिन इन सबके साथ इस उद्योग को जीएसटी और नोटबंदी ने भी एक बड़ा झटका दिया। जिसके चलते बड़े निवेशकों ने इस धंधे से हाथ खींच लिया।

इसके साथ ही कॉर्पोरेट कल्चर लागू होने से पैसे की रोलिंग बंद होने और खर्च भी बढऩे से यह उद्योग तबाही के किनारे पर खड़ा था। अब कोरोना वायरस चलते लंबे लॉकडाउन ने इस उद्योग को अंधे कुएं में ढकेल दिया है। जहां से इसका निकलना असंभव सा दिखता है।

लॉक डाउन के बाद भी मुसीबत नहीं होगी कम
नवजीवन टेक्सटाइल के मालिक रूपेश अजित सरिया का कहना है कि लॉक डाउन समाप्त होने पर यहां फंसे मजदूर अपने गांव भाग जाएंगे। पावरलूम बंद होने के बावजूद न्यूनतम बिजली बिल के अलावा उस पर लगने वाले ब्याज सहित अन्य अधिभार शुल्क बोझ के रूप में आर्थिक कमर तोड़ देंगे। सरकार के आदेश के चलते लोगों को वेतन भी देना ही पड़ रहा है। ऐसे में पहले से ही घाटे की तरफ बढ़ा हुआ यह उद्योग लॉक डाउन के बाद भी और परेशानी में पड़ता दिख रहा है।

लाखों लोग होंगे बेरोजगारी और कुपोषण के शिकार
गौरव टेक्सटाइल के महावीर प्रसाद झंवर के बताते हैं कि इस बंदी से प्रत्यक्ष और अपरोक्ष रूप से जुड़े लाखों लोग बेरोजगारी और कुपोषण के शिकार हो रहे हैं। व्यापार के घाटे के चलते पहले ही लोग जेवर बेचकर या ब्याज पर पैसा लेकर बिजली बिल भर रहे थे। इसके बाद उनके समक्ष और भी विकट समस्या पैदा हो जाएगी।

बंदी के कारण मजदूरों का बुरा हाल है। बहुत से मजदूर पहले ही भाग चुके हैं, बचे हुए इतने डरे हुए हैं कि लॉक डाउन खुलते ही वे भी गांव भागेंगे। इसके बाद भी कारखाना चलाना मुश्किल हो जाएगा।

मदद के लिए सामने आए सरकार

कोरोना से पीड़ित पावरलूम वेंटिलेटर पर

मुंबई. हैंडलूम सिल्क मर्चेंट्स एसोसिएशन के अध्यक्ष राजकुमार केडिया ने पत्रिका से बात करते हुए कहा कि लॉक डाउन के चलते हम कोरोना से तो जरुर जीत जाएंगे, लेकिन आर्थिक मंदी के सामने हम हारते दिख रहे हैं।

उन्होंने ने बताया कि हहैंडलूम से जुड़े व्यापारियों के सामने कई परेशानियां हैं। बंद के दौरान भी उसे ऑफिस, कंपनी का किराया, कर्मचारियों की सैलरी के साथ बैंक इंट्रेस्ट, टैक्स आदि भरना ही है। उन्होने कहा कि नुकसान का सही-सही आंकड़ा फिलहाल बता पाना मुश्किल है।

यह नुकसान करोड़ों में जा सकता है। व्यापारी पांच प्रतिशत प्रॉफिट पर कारोबार करता है, पर अभी नुकसान 10 प्रतिशत का हो रहा है। अब इस मंदी से सरकार ही हमें उबार सकती है। सरकार को बैंक इंट्रेस्ट, जीएसटी व टैक्स में रियायत देकर कारोबार को दोबारा से खड़ा करने में सहयोग करना चाहिए।

कपड़ा बाजार को है लॉकडाउन खत्म होने का इन्तजार
मुंबई. कपड़ा बाजर सूनसान पड़ा हुआ है। इसे लॉकडाउन खत्म होने का इन्तजार है, पर हर कोई लॉकडाउन के बाद की स्थितियों से डरा हुआ है। जब बाजार खुलेगा, तब व्यापारियों को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। कपड़ा व्यवसायियों के संगठन भारत मर्चेंट्स चेंबर के सेक्रेटरी विनोद गुप्ता ने पत्रिका को बताया कि लॉकडाउन खत्म होने के बाद कपड़ा बाजार की स्थिति बेहद खराब होगी।

अगर 15 या 30 अप्रैल को लॉकडाउन खत्म होता है, तो कम से कम 6 महीने बाजार को वापस स्थिति में आने को लगेगा। मैन्युफैक्चर और ट्रेडर्स की लेन देन के लिए पैसे चाहिए, बाजार में पैसा है नहीं, तो व्यवसाय कैसे चलेगा। वहीं मजदूर ट्रेन शुरू होने का इन्तजार कर रहे हैं, ट्रेन शुरू होते ही वे सभी गांव चले जाएंगे।

इसके साथ ही कपड़ा बनाने वाली सभी मशीनें इलेक्टॉनिक हैं, उनको फिर से शुरू करने में काफी दिक्कतें होंगी। गुप्ता ने कहा कि अमेरिका यूरोप के देशों में भी कोरोना का संकट के चलते एक्सपोर्ट भी पूरी तरह से ठप्प है। उन्होंने कहा की नुकसान की कोई सीमा नहीं है, अब सरकार को ही कपड़ा बाजार को संकट से उबारना होगा।

सभी को करना होगा पेमेंट
हिन्दुस्तान चेंबर आफ कामर्स के अध्यक्ष हरीराम अग्रवाल ने कहा की बाजार खुलते ही सभी का पेमेंट करना होगा, मगर किसी के पास लिक्विडी नहीं है, जिससे गंभीर स्थिति का सामना करना होगा।

हिन्दुस्तान चेंबर आफ कामर्स के संरक्षक काशीनाथ गाडिय़ा ने कहा की कपड़ा बाजार को लेकर सरकार का रुख अच्छा रहा है। आर्थिक मंदी के कारण बाजार की हालत पहले से ही खराब है, अब लॉकडाउन के बाद बाजार की स्थिति और खराब हो जाएगी।

कपड़ा प्रोसेस हॉउस सबसे अधिक करीब 10 लाख भिवंडी में हैं। इसके अलावा मालेगांव, बुरहानपुर व इचलकरंजी में भी कपड़ा बनाया जाता है। कपड़ा प्रोसेस भी सीजन को देखकर किया जाता है। वर्तमान में गर्मी सीजन के हिसाब से कपड़ा बनाया जा रहा था।

इसके बाद विंटर सीजन के हिसाब से मोटे और डार्क रंग के कपडे बनाये जाते। फिलहाल सारा प्रोसेस बंद होने से गर्मी सीजन के कपड़े भी नहीं बन पाए हैं, जिससे बहुत बड़ा नुकसान हुआ है।

उल्हासनगर में बंद हो जाएंगे कई जींस पैंट कारखाना और गारमेंट की दुकान
उल्हासनगर. उल्हासनगर जींस कारखाने पिछले दो साल से कठिनाई से चल रहे थे। इनके बहुत से कारखाने बंद हो चुके हैं। यहां अब केवल जींस पैंट की सिलाई और धागा काटने का काम हो रहा था। जो इस लॉक डाउन के बाद पूरी तरह से बंद होने की कगार पर खड़ा है।

उल्हासनगर कैम्प पांच के रहवासी रमेश नागरानी बताते हैं कि उनका और उनके परिसर के लोगों का जींस का पैंट बनाने का कारखाना है। हमने जींस पैंट का धागा काटने के लिए मोहल्लों के औरतों को दिया था, लेकिन इस लॉक डाउन में लाखों रुपए का माल पूरी तरह लोगों के घरों में फंस गया है। अब चिंता है कि कहीं माल खराब न हो जाए। अगर ऑर्डर कैंसल हो गया तो हम पूरी तरह से बर्बाद हो जाएंगे।

उल्हासनगर कैंप पांच के रहवासी महेश मूलचंदानी बताते हैं कि लॉक डाउन की वजह से सभी कारीगरों को घर पर बैठा कर ही राशन की सामग्री देना पड़ रहा है। कारीगर गांव भाग गए हैं। कुछ जाने की फिराक में हैं, ऐसे में लॉक डाउन खत्म होने के बाद कारीगरों का मिलना मुश्किल हो जाएगा। मेरा मानना है कि इससे कई जींस गारमेंट के कारखाने हमेशा हमेशा के लिए बंद हो जाएंगे।

सबसे बड़ी समस्या कारखाना मालिकों के सामने आ रही है। उनके आर्डर भी अब कैंसिल हो रहे हैं। उल्हासनगर पांच में कई ऐसे कारखाने हैं, जिनका किराया 50 से 60 हजार है। इनके लिए अब किराया भरना ही बड़ी परेशानी है।

मुनीर अहमद मोमिन, विजय यादव, गंगाराम विश्वकर्मा और आनंद शुक्ल की रिपोर्ट

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