कहानी
्र्एसपी बन चुके चुलबुल पांडे (सलमान खान) एक नए शहर आते हैं। चुलबुल की एंट्री होती है, जहां वे तस्करी की जाने वाली युवतियों को छुड़ाते हैं। यहां से विलेन माफिया सरगना बाली (सुदीप किच्चा) सीन में आता है। यह निर्मम हत्यारा है लोगों को मारकर गाड़ देता है। दोनों एक दूसरे को देखकर चौंकते हंै। यहां से कहनी फ्लैश बैक में चली जाती है। दरोगा बनने से पहले चुलबूल पांडे के पहले प्यार खुशी (सई मांजरेकर) की एंट्री होती है। शादी की चर्चा प्रेम फिर बाली को खुशी से प्रेम होता है। पर खुशी को चुलबुल के प्रेम में देखकर बाली खुशी उसकी मौसी और मामा को मार देता है। चुलबुल को सजा हो जाती है। इसके बाद धाकड़ पांडे इंस्पेक्टर चुलबुल पांडे के रूप में सामने आता है। फिर इसके बाद वही होता है, जो हर मसाला फिल्म में हो सकता है।
ओवरऑल
फिल्म के निर्देशक प्रभूदेवा फिल्म को पकडऩे में विफल रहे हैं। फिल्म में एक के बाद एक सीन डालते रहे, जिनमें कोई साम्यता नहीं है। निर्देशक पिछली फिल्मों से आगे की कहानी कहने की हिम्मत नहीं दिखा पाए। वे नया जादू पैदा करने की बजाए, पिछली फिल्मों के जादू से फिल्म को खड़ा करने का प्रयास करते हैं, जिसके चलते यह फिल्म धड़ाम से गिर पड़ी है। कई सीन तो जस-के तस नजर आते हैं। डायलॉग पर किसी तरह का काम किया गया लगता नहीं है। “थप्पड़ से डर नहीं लगता साहब, प्यार से लगता है” डायलॉग से धूम मचाने वाली सोनाक्षी इस फिल्म में बेतुके डायलॉग बोलते नजर आती हैं। मख्खी बने अरबाज खान का भी कोई कमाल नजर नहीं आता। मार-पीट, पटका-पटकी के कुछ सीन लोगों को भा सकते हैं। दबंग की पिछली फिल्में अपने बेहतर डायलॉग के लिए जानी जाती हैं। इस फिल्म में एक भी डॉयलाग ऐसा नहीं है, जो सिनेमाघर से निकलने के बाद दर्शकों को लुभाए। फिल्म के गाने आकर्षक नहीं हैं, और बिना सोचे समझे फिल्म में प्लेस किए लगते हैं। इस फिल्म में सलमान खान पर भी उनका स्टारडम भारी पड़ा है, दूसरे कलाकारों का तो कोई अता-पता ही नहीं। कुल मिलाकर सलमान के हार्डकोर फैन भी इस फिल्म को पचाने में कठिनाई महसूस करेंगे।