पहले कर चुके हैं अध्ययन गौरतलब है कि 2010 में रेलवे की ही पहल पर बीजू डॉमनिक ने सेंट्रल रेलवे के किलर प्वाइंट्स पर 100 घंटे से ज्यादा रिसर्च किया था। बीजू ने वडाला में एक किमी की दूरी पर एक प्रयोग किया था। इस जगह पर एक वर्ष में 40 लोगों की जान जाती थी। जब बीजू ने इस स्थान पर कार्य किया तो पहले छह महीने में नौ लोगों की मौत हुई। इसके बाद वाले छह महीने में सिर्फ एक मौत हुई। बेहद सफल प्रयोग के चलते बीजू रातोंरात स्टार बन गए। इस कामयाबी के लिए उन्हें देश-विदेश की माडिया ने सराहा।
पत्रिका की पहल का नतीजा लोकल ट्रेन हादसों में हर साल तकरीबन 3000 लोगों की मौत होती है। इतने ही लोगों का अंग-भंग भी होता है। लोकल यात्रियों और आम लोगों की सुरक्षा से जुड़े मुद्दे को पत्रिका ने गंभीरता से उठाया। जनहित से जुड़ी पत्रिका की मुहिम का न सिर्फ रेल मंत्री पीयूष गोयल ने समर्थन किया बल्कि वेस्टर्न और सेंट्रल रेलवे के प्रशासन को आदेश भी दिया कि लोगों की जान बचाने के लिए ठोस उपाय करें। इसके बाद रेल प्रशासन की ओर से कई उपायों की घोषणा की गई है।
नौ साल बाद याद आए बीजू वडाला एक्सपेरीमेंट की रिपोर्ट बीजू डॉमनिक ने 2010 में सौंपी थी लेकिन, रेलवे ने उनके बताए उपायों को ठंडे बस्ते में डाल दिया था। लोकल हादसे रोकने के उपाय करने का आदेश जब गोयल ने दिया, तब रेल प्रशासन को नौ साल बाद बीजू की याद आई। उन्हें ठाणे-मुंब्रा के बीच रेलवे ट्रैक पर होनेवाले हादसों को रोकने से जुड़े उपाय सुझाने का जिम्मा सौंपा गया। यही रिपोर्ट डॉमनिक ने शुक्रवार को डीआरएम जैन को सौंपी है।