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मुंबई

Maharastra Election : सत्ता वापसी की डगर कठिन, बेगानों के साथ लड़ाई अपनों से भी !

Maharastra Assembly Election-2019
महाराष्ट्र (Maharastra) के छह अंचलों में विधानसभा की 288 सीटों पर कैसी है चुनावी तस्वीर जानें-समझें यहां …
भाजपा (BJP) ने हरियाणा (Hariyana) से ज्यादा महाराष्ट्र में झोंक रखी है अपनी पूरी ताकत
जीतने के लिए विपक्षी कांग्रेस-एनसीपी (Congress and NCP) से बड़ा मुकाबला शिवसेना (ShivSena) से भी

मुंबईOct 19, 2019 / 11:43 pm

Rajesh Kumar Kasera

Maharastra Election : सत्ता वापसी की डगर कठिन, बेगानों के साथ लड़ाई अपनों से भी !

Maharastra Election : सत्ता वापसी की डगर कठिन, बेगानों के साथ लड़ाई अपनों से भी !

– राजेश कसेरा

मुंबई. देश में महाराष्ट्र (Maharastra) और हरियाणा (Haryana) के विधानसभा चुनाव (Assembly Election-2019) इन दिनों चरम पर हैं। दोनों ही प्रदेशों में भारतीय जनता पार्टी (BJP) सत्ता वापसी के लिए पूरा दम-खम लगा रही है। लेकिन, महाराष्ट्र चुनाव की चिंता भाजपा को हरियाणा से कहीं ज्यादा है। तभी तो पूरी ताकत झोंक रखी है और राष्ट्रीय नेताओं को चुनाव प्रबंधन (Election Management) के लिए हर मोर्चे पर लगा रखा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी (PM Modi) तक उम्मीद से कहीं ज्यादा ताबड़तोड़ रैलियां कर रहे हैं। वह इसलिए कि भाजपा को हरियाणा में राह आसान लग रही है, पर महाराष्ट्र में कठिन।यहां भाजपा की लड़ाई कांग्रेस और राकांपा के महागठबंधन के साथ सहयोगी शिवसेना से भी है, जो अंदरखाने भाजपा को पीछे धकेलने में जुटी है। महायुति के बावजूद शिवसेना (Shivsena) अपने बूते चुनाव मैदान में डटी है।
भाजपा से अलग घोषणा पत्र (Manifesto) जारी करने के साथ ही शिवसैनिक को मुख्यमंत्री (Chief Minister) बनाने के लिए हरसंभव दांव खेल रही हैं। यदि शिवसेना पिछली बार से ज्यादा सीटें लाने में सफल रहीं तो सरकार में बड़ी हिस्सेदारी के लिए ताल ठोंक देगी। इस आशंका को टालने के लिए ही भाजपा अकेले ही पूर्ण बहुमत के आंकड़े तक पहुंचने के लिए साम-दाम-दंड-भेद सब अपना रही है। भाजपा 150 सीटों पर खुद लड़ रही है तो 14 सीटों पर उनके चिह्न पर सहयोगी दल लड़ रहे हैं, वहीं शिवसेना 124 सीटों पर चुनाव लड़ रही है।
महाराष्ट्र में बसे 40 लाख से ज्यादा हिन्दी भाषी, उत्तर भारतीयों और प्रवासी राजस्थानियों के वोट के लिए राजस्थान, मध्यप्रदेश, गुजरात, उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे कई राज्यों से जिला स्तरीय नेताओं तक को मतदाताओं को रिझाने के लिए लगा रखा है। इधर, पार्टी के अंदरुनी संकटों और खींचतान से जूझ रही कांग्रेस और एनसीपी भी वर्चस्व और वजूद की लड़ाई मानकर महाराष्ट्र में सत्ता पाने के लिए सबकुछ झोंक रहेे हैं।
मौजूदा परिस्थितियां भले इनके खिलाफ हैं, पर महाराष्ट्र में ‘जिंदा’ रहने के लिए जीत ही अंतिम विकल्प है। 2014 के विधानसभा चुनाव में भाजपा को 122 सीटें मिली थीं। शिवसेना ने 63 सीटें जीतीं तो कांग्रेस और एनसीपी 42 और 41 सीटें हासिल कर सकीं। इस चुनाव में प्रदेश के छह अंचलों में 288 सीटों के लिए 21 अक्टूबर को हो रहे मतदान से पहले कैसी है ग्राउंड पर राजनीतिक तस्वीर जानिए पत्रिका से।
हर क्षेत्र के मुद्दे जुदा, राजनीतिक दलों की ताकतें भी


महाराष्ट्र के हर अंचल मुद्दे एक दूसरे से अलग हैं। भाजपा ने चुनाव में अनुच्छेद-370 और पाकिस्तान समेत राष्ट्रवाद जैसे मुद्दों के सहारे सत्ता वापसी के सपने संजो रखे हैं। पर, उत्तर महाराष्ट्र में कृषि संकट और प्याज की गिरती कीमतों से लोग परेशान हैं तो विदर्भ में किसानों की आत्महत्या बड़ा मसला है। मराठवाड़ा में पेयजल की कमी व बेरोजगारी संकटकारी है तो कोंकण-मुंबई अंचल में आर्थिक मंदी, पीएमसी बैंक घोटाला और आरे के जंगलों को काटना प्रभावशाली मुद्दे हैं। मुद्दों की तरह ही इन अंचलों में हर राजनीतिक दलों की ताकतें भी अलग-अलग हैं।
उत्तर महाराष्ट्र : कभी था कांग्रेस का अभेद गढ़


अंचल में विधानसभा की 35 सीटें आती हैं। कभी यह अंचल कांग्रेस का अभेद दुर्ग था, लेकिन पिछले चुनाव में भाजपा और शिवसेना ने यह गढ़ ढहा दिया। मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के करीबी गिरीश महाजन यहां से कांग्रेस का सूपड़ा साफ होने का दावा कर रहे हैं तो एकनाथ खड़से भाजपा का प्रमुख चेहरा हैं। उनकी बेटी रोहणी खड़से चुनावी मैदान में हैं। एनसीपी के दिग्गज नेता और ओबीसी चेहरा छगन भुजबल भी यहां मैदान में हैं। कृषि संकट, प्याज की गिरती कीमतें, सूखा और वन अधिकार अधिनियम जैसे मुद्दे इस क्षेत्र में हावी हैं। 2014 के चुनाव में भाजपा ने 14, शिवसेना और कांग्रेस ने 7-7 तो एनसीपी ने 5 सीटें जीती थीं।अन्य के खाते में दो सीटें गई थीं।
विदर्भ : गड़करी और फडणवीस का गृह क्षेत्र


एक समय विदर्भ पर कांग्रेस का राज हुआ करता था। दिवगंत प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के आपातकाल लगाने के बावजूद यहां के लोग कांग्रेस से जुड़ रहे। भाजपा को अपनी जमीन मजबूत करने के लिए यहां काफी संघर्ष करना पड़ा। विदर्भ को अलग राज्य बनाने की मांग भी लंबे समय से हो रही है। किसानों की आत्महत्या और सिंचाई परियोजनाएं ज्वलंत मुद्दा है। बारिश की कमी और खराब उत्पादन के चलते किसानों के आत्महत्या के मामले लगातार सामने आ रहे हैं और महाराष्ट्र में सर्वाधिक भी। दलित समुदाय की बड़ी आबादी है और जीत-हार में उनकी अहम भूमिका होती है। केन्द्रीय मंत्री नितिन गड़करी और मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणवीस का यह गृह क्षेत्र है। फडणवीस खुद नागपुर दक्षिण-पश्चिम सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। वहीं कांग्रेस का क्षेत्र में चेहरा कहे जाने वाले नाना पटोले सकोली सीट से चुनाव में उतरे हैं। 2014 के विधानसभा चुनाव में विदर्भ की 63 सीटों में भाजपा 44 सीटें जीतीं। शिवसेना को 4, कांग्रेस को 10, एनसीपी को एक और अन्य को 4 सीटें मिलीं।
मराठवाड़ा: दिग्गजों का गढ़ रहा है यह इलाका


इस क्षेत्र में भी कभी कांग्रेस का राज था। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण इस क्षेत्र से चुनाव मैदान में उतरे हैं तो पूर्व सीएम विलासराव देशमुख के दो पुत्र अमित और धीरज देशमुख लातूर शहर और ग्रामीण सीट से चुनाव लड़ रहे हैं। प्रदेश का यह क्षेत्र सूखे के हालात के कारण चर्चाअों में रहता है। इस मानसून में यहां जमकर बारिश हुई। वर्ष 2016 में क्षेत्र के लातूर जिले में पानी की इतनी कमी हुई कि रेल से पानी भेजा गया। मराठा समुदाय के साथ मुस्लिमों की बड़ी आबादी इस अंचल में है। यही कारण रहा कि हाल में हुए आम चुनाव में औरंगाबाद लोकसभा सीट से एआइएमआइएम ने जीत दर्ज की। यहां चुनाव को सबसे बड़ा मुद्दा पेयजल की कमी, कृषि संकट और बेरोजगारी है। अधिकांश क्षेत्र सिर्फ कृषि पर आधारित है। 2014 के चुनाव में क्षेत्र की 46 सीटों में से भाजपा ने 15, शिवसेना ने 11, कांग्रेस ने 9, एनसीपी ने 8 और अन्य को 3 सीटें मिली थीं
पश्चिमी महाराष्ट्र : एनसीपी का किला ढहाने की जुगत में भाजपा


चीनी यानी शक्कर के गढ़ के तौर पर इस क्षेत्र की पहचान है। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) का सबसे मजबूत गढ़ भी यही है। सहकारी समितियों के जरिए चीनी मिलों को चलाने वाले नेता यहां राजनीति चलाते रहे हैं। 2019 के चुनाव में एनसीपी ने सभी चार संसदीय सीटें यहां से जीतीं। यही कारण रहा कि भाजपा ने क्षेत्र से एनसीपी के राजनीतिक सफाए के लिए उनके ही नेताओं को अपने साथ मिला लिया। इस बार चुनाव में भाजपा ने कांग्रेस और एनसीपी से आए मराठा नेताओं को अपनी पार्टी से टिकट दिया है। कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री सुशीलकुमार शिंदे, पृथ्वीराज चव्हाण और कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष बालासाहेब थोराट यहीं से हैं। इलाके के कोल्हापुर, सांगली, सतारा और पुणे में बाढ़ पीड़ितों को समय पर राहत की कमी बड़ा मुद्दा बना हुआ है। आर्थिक मंदी और उद्योगों को बंद होना भी सत्तारुढ़ भाजपा के लिए चिंता का बड़ा कारण है। 2014 में पश्चिम महाराष्ट्र की 70 विधानसभा सीटों में से भाजपा ने 24, शिवसेना ने 13, कांग्रेस ने 10, एनसीपी ने 19 और अन्य ने 4 सीटें हासिल कीं।

कोंकण : रत्नागिरी जिले में रिफाइनरी सबसे बड़ा मुद्दा


कोंकण अंचल में विधानसभा की 40 सीटें आती हैं। रायगढ़ और रत्नागिरी जैसे बड़े शहरों में भाजपा को इस बार एनसीपी से कड़ी टक्कर मिल रही है। क्षेत्र में नानार रिफाइनरी बड़ा चुनावी मुद्दा है। विपक्ष के विरोध के कारण भाजपा और शिवसेना बैकफुट पर हैं। आलम यह है कि शिवसेना तक रिफाइनरी के विरोध में विपक्षियों के साथ खड़ी है। भाजपा के लिए यहां प्रमुख चेहरा नारायण राणे हैं। पार्टी ने उनके बेटे नितेश राणे को क्षेत्र की कणकवली सीट से चुनाव में उतारा है। 2014 के चुनाव में इस अंचल से भाजपा को 10, शिवसेना को 15, कांग्रेस को एक, एनसीपी को 8 और अन्य को 6 सीटें मिली थीं।
मुंबई : पीएमसी बैंक घोटाला और आरे कॉलोनी बड़ा मुद्दा


मुंबई अंचल में विधानसभा की 34 सीटें आती हैं। यहां कांग्रेस और एनसीपी खराब बुनियादी ढांचे के संगीन आरोपों के साथ भाजपा और शिवसेना को हराने के लिए जोर लगा रही है तो पीएमसी बैंक घोटाला, इन्फ्रास्ट्रक्चर अपग्रेड, आरे कॉलोनी में हजारों पेड़ों का कटने के साथ ही विकास और आर्थिक मोर्चे के मुद्दे परेशानी का सबब बने हुए हैं। शिवसेना के युवा नेता आदित्य ठाकरे वर्ली से चुनाव मैदान में उतरे हैं। मुंबई में शिवसेना, भाजपा से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ रही है। 2014 के चुनाव में मुंबई में भाजपा ने 15, शिवसेना ने 14, कांग्रेस ने 5 सीटें जीती थीं। एनसीपी तो यहां खाता ही नहीं खोल पाई थी।

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