भाजपा को 2019 के विधानसभा चुनाव में पेसा पर जवाब देते नहीं बन रहा। भाजपा के अहेरी से उम्मीदवार अंबरीश राव आतराम ने बताया कि हमारा नजरिया स्पष्ट है, जहां आदिवासी बाहुल्य है वहां कोई पेसा खत्म नहीं कर सकते और जहां अन्य समाज का बाहुल्य है वहां आदिवासी हितों को ध्यान में रखते हुए फिर से निर्धारण करवा रहे हैं। यह प्रक्रिया है, जो समय लेती है।
कांग्रेस मसले पर संभलकर बोल रही है। अहेरी से कांग्रेस उम्मीदवार दीपक आतराम ने कहा, पेसा आदिवासी हितों की रक्षा करता है। हम विभाज की सियासत नहीं करते। भाजपा सरकार ने वादा किया था, लेकिन किया नहीं। कई गांव ऐसे हैं जहां समस्याएं हैं। यह सामाजिक मसला, जिसे निपटा लिया जाएगा।
प्रोवीजन ऑफ द पंचायत एक्सटेंशन शिड्यूल एरियाज एक्ट-1996 यानी पेसा एक्ट में आदिवासी गांवों को विशेषाधिकार प्राप्त हैं। सामाजिक कार्यकर्ता राकेश मालवीय के मुताबिक आदिवासी गांवों की पंचायत को विधानसभाओं के समान अधिकार हैं। एक बार पेसा गांव होने के बाद गैर आदिवासियों को राजनीतिक अवसर नहीं मिलते। वहां की ग्रामसभा में सभी आदिवासी फैसले करते हैं।
साल 2018 में छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव से एक साल पहले जशपुर में पेसा एक्ट की वकालत ने जोर पकड़ा। ओएनजीसी के रिटायर्ड अफसर और पूर्व आइएएस एचपी किंडो ने यहां पत्थलगड़ी आंदोलन शुरू किया। जशपुर वनक्षेत्र के गांवों में चारों ओर कब्जे वाले क्षेत्र को चिन्हित कर पत्थर गाड़े गए। इन पत्थरों पर पेसा एक्ट के तहत दिए अधिकारों की बात की गई। आंदोलन में आदिवासी गांवों में भारतीय संसद या विधानसभा से पारित कानून न लागू होने, गांव का भारत संघ का हिस्सा न होने जैसे शब्द लिखे थे। आंदोलन को रमन सरकार ने कुचल दिया, लेकिन जशपुर जिले की तीन विधानसभा सीटों में से भाजपा एक भी नहीं बचा पाई।