जानकारों के अनुसार कई कारणों से कछुए जख्मी हो जाते हैं। यहां के अनुभवी डॉक्टर बेजुबानों को नई जिंदगी देते हैं। उपचार केंद्र में पानी की कई टंकियां बनाई गई हैं। प्रत्येक टंकी समुचित रूप से चौड़ी और गहरी है। इन टंकियों में हर समय खारे पानी की व्यवस्था रहती है। जख्मी कछुओं को उपचार केंद्र पहुंचाने वालों को प्रोत्साहन राशि भी दी जाती है।
इंसानी जरूरतें पूरी करने के लिए कछुओं की तस्करी बढ़ी है। बांग्लादेश, म्यांमार सहित भारत के पूर्वोत्तर राÓयों में लोग मानते हैं कि कछुआ के मांस से बनी शक्ति वर्धक दवाएं असरकारक होती हैं। ट्रैफिक इंडिया के अध्ययन के अनुसार भारत से सालाना 11 हजार कछुओं की तस्करी हो रही है। भारतीय वन्यजीव संस्थान की रिपोर्ट के अनुसार प्रदूषण, अवैध शिकार, मछली पकडऩे के जाल में फंसने आदि वजहों से कछुओं के जीवन पर खतरा बना रहता है।
कछुए नदी से मृत कार्बनिक पदार्थों एवं बीमार मछलियों की सफाई करने में अहम भूमिका निभाते हैं। ये जलीय पादपों एवं खरपतवारों को भी नियंत्रित करते हैं। जख्मी या बीमार कछुओं को स्वस्थ होने तक उपचार केंद्र में रखा जाता है। डॉक्टर इन कछुओं की देखभाल करते है। स्वस्थ होने के बाद कछुओं को उनके अधिवास में छोड़ दिया जाता है।
राहुल मराठे, क्षेत्रीय अधिकारी वन विभाग, डहाणू