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मुंबई

Mumbai news Live : परमार्थ की साधना से कैसे हो जाती है वचन तीनों लोकों में मंगलकारी

श्रमण संघ के आचार्य शिव मुनि (Acharya Shiv Muni ) का मानना है कि भगवान ( Bhagwan ) के वचन तीनों लोकों में मंगलकारी ,कल्याणकारी होते हैं । क्योंकि उनकी वाणी में सत्य का बोध होता है, परमार्थ (Parmarth ) की साधना होती है। जबकि सांसारिक लोग अपनी देह (पुदगल को महत्व देते हैं, पद- प्रतिष्ठा और मान सम्मान को ज्यादा समझते हैं ,जबकि भगवान की वाणी में इनका कोई महत्व नहीं होता है।

मुंबईNov 07, 2019 / 01:22 pm

Binod Pandey

Mumbai news Live : परमार्थ की साधना से कैसे हो जाती है वचन तीनों लोकों में मंगलकारी

Mumbai news Live : परमार्थ की साधना से कैसे हो जाती है वचन तीनों लोकों में मंगलकारी

पुणे. शिव मुनि बुधवार को वर्धमान वर्षावास सभागार में अपने सांसारिक लोग पुद्गल पर अपना अधिकार जमाए बैठे हैं । छ काया के श्रम के द्वारा जो मकान, बंगला, गाड़ी, आभूषण ,वस्त्र आदि पर अधिकार जमाया और सभी को मेरे हैं ,मेरे हैं ,कहा यह सब नश्वर है। मुनि कहते हैं- तो फिर इन नाशवान वस्तुओं से मोह क्यों करें । यह सब रिश्ते नाते टूटने वाले हैं, यह जानते हैं फिर भी हमारा अनादि काल का मिथ्यात्व बना हुआ है, जिसका भगवान की वाणी में कोई उपयोग नहीं। मुनि ने कहा हमने इस देह के द्वारा जो अनादि काल से कर्म बांधे हैं, उन कर्मों को अपने स्वभाव में रह कर्मों की निर्जरा करनी होगी। उन्होंने बताया कि जब आत्मा अपने स्वभाव में स्थित रहती है तब कर्मों की निर्जरा होती है। इसके लिए अपनी आत्मा के स्वभाव में लौट आओ ,अब तक हमने पाठ ,जप, क्रिया, आदि बहुत किया लेकिन वह सब कर्ता भाव से किया । सभी से यही कहा मैंने किया, मैंने किया ,इससे भी ज्यादा किया तो शास्त्रार्थ करेंगे, किसी को हराने के लिए। इन वाद- विवादों का कोई अर्थ नहीं ,बस अपने को जानो, पहचानो और सांसारिक वस्तुओं से मोह छोड़ो

जिसे छोडऩा था पकड़े हुए बैठे हैं
आचार्य ने कहा जिसे हमें छोडऩा था ,उसे पकड़े हुए बैठे हैं और जिसे पकडऩा है उसे छोड़ रखा है ।यह समझ कर कि बाद में कर लेंगे और जिंदगी बीत जाती है और आत्मा का शब्द रह जाता है। वह लोग बड़े भाग्यशाली हैं जो आत्मा की निकटता पाने के लिए गंभीर ध्यान शिविर में बैठे हैं ,इससे अनादिकाल मिथ्यात्व टूटता है। उन्होंने कहा जब तक सत्य का बोध नहीं होगा शरीर बदलते रहेंगे।

आत्मार्थी बनो
शिवमुनि ने कहा जैन संतो की साधना आत्मार्थी बनने की दिशा में होती है ,बालों का लोच करवाना, नंगे पांव चलना, भिक्षा के द्वारा निर्वाह करना ,मीलों देशाटन करना। यह आत्मार्थी के लक्षण है। प्रत्येक जन को भी आत्मार्थी ही बनना चाहिए ।उन्होंने कहा जब देह और आत्मा भिन्न है ,तो देह से मोह कैसा, दृष्टाभाव आत्मा का गुण है उसे जानो।

केसीकुमार और राजाप्रदेशी के संवाद
केसीकुमार एवं राजाप्रदेशी के संवाद को आगे बढ़ाते हुए युवाचार्य महेंद्रऋषि ने बताया कि कैसी कुमार ने जब राजा प्रदेशी को मूढ़ और लकड़हारे की बुद्धि से भी गया बीता बताया तो राजा प्रदेशी ने श्रमण से सवाल किया कि इतने लोगों की परिषद के बीच उसे इस भाषा में मूढ़ कहना चाहिए ,तो कैसी श्रमण ने चार परिषदों की व्याख्या करते हुए कहा कि क्षत्रिय परिषद ,गाथापती परिषद ,ब्राह्मण परिषद तथा ऋषि परिषद। इन परिषदों की न्याय पद्धति के अनुसार ही तुम को इस वाणी से संबोधित किया है।

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