जिसे छोडऩा था पकड़े हुए बैठे हैं
आचार्य ने कहा जिसे हमें छोडऩा था ,उसे पकड़े हुए बैठे हैं और जिसे पकडऩा है उसे छोड़ रखा है ।यह समझ कर कि बाद में कर लेंगे और जिंदगी बीत जाती है और आत्मा का शब्द रह जाता है। वह लोग बड़े भाग्यशाली हैं जो आत्मा की निकटता पाने के लिए गंभीर ध्यान शिविर में बैठे हैं ,इससे अनादिकाल मिथ्यात्व टूटता है। उन्होंने कहा जब तक सत्य का बोध नहीं होगा शरीर बदलते रहेंगे।
आत्मार्थी बनो
शिवमुनि ने कहा जैन संतो की साधना आत्मार्थी बनने की दिशा में होती है ,बालों का लोच करवाना, नंगे पांव चलना, भिक्षा के द्वारा निर्वाह करना ,मीलों देशाटन करना। यह आत्मार्थी के लक्षण है। प्रत्येक जन को भी आत्मार्थी ही बनना चाहिए ।उन्होंने कहा जब देह और आत्मा भिन्न है ,तो देह से मोह कैसा, दृष्टाभाव आत्मा का गुण है उसे जानो।
केसीकुमार और राजाप्रदेशी के संवाद
केसीकुमार एवं राजाप्रदेशी के संवाद को आगे बढ़ाते हुए युवाचार्य महेंद्रऋषि ने बताया कि कैसी कुमार ने जब राजा प्रदेशी को मूढ़ और लकड़हारे की बुद्धि से भी गया बीता बताया तो राजा प्रदेशी ने श्रमण से सवाल किया कि इतने लोगों की परिषद के बीच उसे इस भाषा में मूढ़ कहना चाहिए ,तो कैसी श्रमण ने चार परिषदों की व्याख्या करते हुए कहा कि क्षत्रिय परिषद ,गाथापती परिषद ,ब्राह्मण परिषद तथा ऋषि परिषद। इन परिषदों की न्याय पद्धति के अनुसार ही तुम को इस वाणी से संबोधित किया है।