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Navratri 2022: 51 शक्तिपीठों में से महाराष्ट्र में स्थित है एक प्रमुख शक्तिपीठ, दो असुरों ने किया था इस मंदिर का निर्माण

आज नवरात्री का दूसरा दिन है। महाराष्ट्र में भी देवी के कई रूपों की पूजा होती है नवरात्रि के दौरान इन मंदिरों में दर्शनों के लिए भक्‍तों का तांता लगा रहता है। महाराष्ट्र में देवी को समर्पित कई मंदिर हैं, नवरात्रि उत्सव के दौरान, इन मंदिरों में बड़ी संख्या में भक्त आते हैं।

मुंबईSep 27, 2022 / 04:46 pm

Siddharth

Kolhapur Mahalaxmi Temple

आज नवरात्री का दूसरा दिन है। हिन्दू धर्म में शक्तिपीठ का विशेष महत्व है। हर शक्तिपीठ की अपनी एक कहानी है। महाराष्ट्र के कोल्हापुर का महालक्ष्मी मंदिर यह दुनिया के 51 शक्तिपीठों में से एक प्रमुख शक्तिपीठ है। इस साल नवरात्र के अवसर पर यहां रोजाना 2 से 3 लाख श्रद्धालुओं के आने की संभावना है। कोल्हापुर शहर में मौजूद यह शक्तिपीठ जम्बू द्वीपांतर्गत ‘शिव’ के इलाके में बसा हुआ है। देवी का यह मंदिर करीब 1700 से 1800 साल पुराना है। इस मंदिर में स्थित द्वारपालों की दो भव्य मूर्तियों को लेकर भी एक कहानी है। लोगों का कहना है कि ये मूर्तियां दो असुरों की हैं। पौराणिक कथा के मुताबिक, इन्ही असुरों ने सिर्फ एक रात में इस भव्य मंदिर का निर्माण किया था।
हालांकि, इस कहानी के अलावा भी एक कहानी है। कहा जाता है कि तैलन नाम के शख्स ने करीब वर्ष 1140 में देवी के सामने महाद्वार का निर्माण किया था। पुरातन लेखों के मुताबिक, इस मंदिर के पूर्व द्वार का निर्माण तत्कालीन सरदार दाभाडे ने किया था। वहीं देवी महालक्ष्मी के सामने गरुड़मंडप का निर्माण दाजी पंडित ने सन 1838 से 1842 के बीच में किया था। आदिलशाह के जमाने में देवी की मूर्ति को शहर के कपिल तीर्थ इलाके में रहने वाले एक पुजारी के घर में छिपाकर रखा गया था। कुछ समय बाद विजयादशमी के दिन देवी की मूर्ति को दोबारा मंदिर में विराजित किया गया था।
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इस मंदिर में और भी देवी-देवताओं के मंदिर: बता दें कि कोल्हापुर के महालक्ष्‍मी मंदिर को त्रिकुट मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। महालक्ष्मी मंदिर के भीतर और बाहर कई अन्य देवी- देवताओं के मंदिर भी स्थित हैं। इस मंदिर के प्रमुख गर्भगृह में करवीर वासिनी, आदिमाया, आदिशक्ति देवी महालक्ष्मी अर्थात अंबाबाई की काले पत्थर में बनाई सुंदर चतुर्भुज मूर्ति विराजित की गई है।
https://youtu.be/2Yp7L-JRSlw
मंदिर की विशेषता: माना जाता है कि देवी सती के इस स्थान पर तीन नेत्र गिरे थे। इस मंदिर में भगवती महालक्ष्मी का निवास माना जाता है। इस मंदिर की एक खासियत यह भी है कि साल में एक बार मंदिर में मौजूद देवी की प्रतिमा पर सूर्य की किरणें सीधे पड़ती हैं। पौराणिक कथा के मुताबिक, महालक्ष्मी अपने पति तिरुपति यानी विष्णु जी से रूठकर कोल्हापुर आई थीं। इसी वजह से तिरुपति देवस्थान से आया शाल उन्हें दीपावली के दिन पहनाया जाता है। यह भी कहा जाता है कि किसी भी शख्स की तिरुपति यात्रा तब तक पूरी नहीं होती है जब तक शख्स यहां आकर महालक्ष्मी की पूजा-अर्चना ना कर ले। यहां पर महालक्ष्मी को अंबाबाई नाम से भी जाना जाता है। हर साल दिवाली की रात मां की महाआरती की जाती है। मान्यता है कि यहां पर आने वाले हर भक्त की सारी मुराद पूरी होती है।
मंदिर की प्रचलित कथा: बता दें कि पौराणिक कथा के अनुसार, केशी नाम का एक राक्षस था जिसके बेटे का नाम कोल्हासुर था। कोल्हासुर ने देवताओं को बहुत परेशान कर रखा था। कोल्हासुर के अत्याचारों से तंग आकर सभी देवगणों ने देवी से प्रार्थना की थी। तब महालक्ष्मी ने दुर्गा का रूप धारण किया और ब्रह्मशस्त्र से कोल्हासुर का सिर धड़ से अलग कर दिया। लेकिन कोल्हासुर ने मरने से पहले देवी से एक वरदान मांगा। उसने कहा कि इस इलाके को करवीर और कोल्हासुर के नाम से जाना जाए। इसी वजह से मां को यहां पर करवीर महालक्ष्मी के नाम से जाना जाता है। बाद में इसका नाम कोल्हासुर से कोल्हापुर किया गया।

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