तालाब पर दीपक जलाने की परंपरा
त्रिपुरारी पूर्णिमा के दिन बाणगंगा तालाब पर दीपक जलाने की परम्परा है, जिसका दृश्य काफी मनमोहक होता है। बाणगंगा तालाब का मालिकाना अधिकार गौंड सारस्वत ब्राह्मण मंदिर ट्रस्ट के पास है। इस तालाब को हेरिटेज का दर्जा दे देने के बाद अब इसकी देख रेख भारतीय पुरातत्व विभाग व मनपा करती है। गौंड सारस्वत ब्राह्मण मंदिर ट्रस्ट के सचिव शशांक गुलगुले ने बताया कि वैसे तो श्राद्ध के सभी दिनों में पिंडदानी विविध अनुष्ठान करते है मगर अमावस्या को पितृ श्राद्ध के लिये करीब 5 हजार पिंडदानी बाणगंगा तालाब के पास मुंडन कराकर तालाब में स्नान के बाद पिंडदान करेंगे।
बाल उतारने की भी है यहां व्यवस्था
इस दिन करीब 150 कारीगर भी बाल उतारने के लिए मौजूद रहेंगे। तालाब के पास श्राद्ध करने वालों के लिए अलग से व्यवस्था की गई है जिससे मुंडन कराने के बाद आटे की लोई के साथ मुंडन किया गया बाल ,चावल, फूल विसर्जन तालाब के एक किनारे पर ही एकत्र हो इसके लिए तालाब में अलग से जाली लगायी गई है। अश्विन शुक्ल पक्ष के 15 दिनों तक श्राद्ध करने वालों का यहां प्रतिदिन जमघट लगा रहता है। श्राद्ध पक्ष की सभी 15 तिथियां श्राद्ध को समर्पित है। स्वर्गीय पितरों की मृत्यु तिथि के अनुसार श्राद्ध की परम्परा है लेकिन हो सके तो पूरे 15 दिनों तक श्राद्ध करना चाहिए। श्राद्ध के दिन तर्पण व पिंडदान का विशेष महत्व होता है। तर्पण पितरों को याद करने का एक विधान है। इसमें देव,ऋषि ,यम व पितरों का नाम लेकर जौ, तिल ,चावल, उड़द के साथ जल लेकर तर्पण किया जाता है। इसी तरह पिंडदान में गेंहू ,चावल,जौ का आटा या पके चावल का उपयोग कर तालाब,जलाशय,नदी में अर्पित किया जाता है। पिंडदान करने के लिए सफेद वस्त्र धारण किया जाता है। पितृ पक्ष की अष्टमी और नवमी तिथि का विशेष महत्व होता है। क्योंकि दिवंगत पिता का श्राद्ध अष्टमी तिथि को तो माता का श्राद्ध नवमी तिथि को किया जाता है।