दुर्दिनों ने दी प्रेरणा इलेक्ट्रीशियन का काम करके 12 हजार रुपए मासिक कमाने वाले सचिन पाटील बताते हैं कि हमारी परिस्थिति बहुत खराब थी। मेरे पिता शराबी थे। मेरी मां मेरा पेट भरने के लिए लोगों से पांच रुपए लेकर उनकी राशन की लाइन में लगती थी। पर मेरी मां ने हमेशा याद रखा कि लोगों ने हमारे बुरे समय में बहुत मदद की। मेरी मां को आंगनवाड़ी में काम मिला। उन्हेंं 1500 रुपए मिलते थे। उन्होंने पांच सौ रुपए अपने लिए रख लिए और बाकी के पैसे हमारे आसपास के लोगों की मदद में लगा दिए। जब भी वो किसी की मदद करतीं तो उनके चेहरे पर आत्मसंतोष की चमक होती है।
भलाई का नहीं करते जिक्र पिछले वर्षों में उन्होंने सैकड़ों बच्चों के लिए अपना पेट छोटा किया लेकिन, वे कभी इसका जिक्र नहीं करती हैं। वहीं, शारदा शहाजी पाटील कहतीं हैं कि हर किसी का मन स्वाभिमान से भरा होता है। ऐसे में कोई अपना दुख किसी से कहने नहीं जाता। पर जब तक हम अपना दुख कहेंगे नहीं, तो उसका हल कैसे निकलेगा। ऐसे में मैंने सोचा एक मंदिर बनें, जहां लोग इक_ा हों और अपने दुख एक-दूसरे से बांटे। अगर हम इक_ा होकर दुख का बोझ उठाएंगे, तो दुख कम हो जाएगा।
खाते से पैसे निकाल खरीदा कम्प्यूटर एक बार सचिन अपने गांव गए वहांं पर बच्चे कम्प्यूटर सीखना चाहते थे। उन्होंने अपने खाते के सारे पैसे निकाल कर एक सैकेंड हैंड कम्प्यूटर खरीदा। इसके बाद उनका एक मित्र और सामने आया और उन्होंने भी एक कम्प्यूटर खरीद कर दिया। इस तरह सचिन स्कूल फीस से लेकर दवार्ई दिलाने और लोगों के घरों का राशन भराने तक का काम करते हंै।