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pravachan : भले जैन धर्म का साधु हूं, पर सर्व-धर्म संत भी हूं

अंधेरी पूर्व के शंखेश्वर पार्श्वनाथ जिनालय में चातुर्मास कर रहे जयप्रभ विजय महाराज
जीवन में पांच प्रकार के परिवर्तन लाने के बताए सूत्र

मुंबईOct 09, 2019 / 09:13 am

Binod Pandey

pravachan : भले जैन धर्म का साधु हूं, पर सर्व-धर्म संत भी हूं

pravachan : भले जैन धर्म का साधु हूं, पर सर्व-धर्म संत भी हूं

मुंबई. हर व्यक्ति व्यवहार, भाषा, स्वभाव, जीवन और हृदय जैसे पांच परिवर्तन जिन्दगी में ले आए तो समझ लेना कि चातुर्मास में ग्रहण किए प्रवचनों का सार्थक परिणाम आ गया। महावीर स्वामी के उपदेशों में जीवन और धर्म दोनों पर सीखने को मिलता है। यदि धर्म और आराधना को जीवन में उतार लें तो अहिंसा, प्रेम, करुणा, वात्सल्य और उत्साह का प्रवाह होता रहेगा। अंधेरी पूर्व में स्थित शंखेश्वर पार्श्वनाथ जिनालय में इन दिनों चातुर्मास कर रहे जयप्रभ विजय महाराज ने यह अनमोल वचन पत्रिका से बातचीत में कहे। उन्होंने कहा कि मनुष्यता के साथ जीवन जीना ही सबसे बड़ी उपलब्धि है। खुद को मानव मात्र का मित्र कहकर बोला कि यही मेरी पहचान भी है। भले जैन धर्म का साधु हूं, पर सर्व-धर्म का संत भी हूं। गुजरात में जन्मे जयप्रभ विजय महाराज ने 1982 में भावनगर के बोटाद गांव में दीक्षा ली। इसके बाद गुरु से सीखें ज्ञान को बांटना शुरु किया तो देश की कई जेलों में प्रवचनों से कैदियों की जीवन दिशा बदल दी। इतना ही नहीं प्रकृतिक आपदाओं में व्यक्तिगत निधि से मदद पहुंचाने का जो कार्य प्रारंभ किया, अनवरत जारी है।
पुण्योदय और पुरुषार्थ से बनता है साधु का आचरण

उन्होंने कहा कि पूर्व जन्म के पुण्योदय और वर्तमान में किए गए पुरुषार्थ से ही साधु का आचरण बनता है। मानव को सुधरने के लिए सत्संग के साथ चिंतन जरूरी है। सत्संग से भक्ति मिलती है तो चिंतन से दिशाबोध। युवा पीढ़ी बाहरी संस्कृति से सीख लेकर रास्ता भटक रही है। यदि परिवार का व्यवहार उनके साथ मैत्रीपूर्ण, पथ प्रदर्शन करने और उत्साहवर्द्धक देने वाला होगा तो वे भी संस्कृति के मूल्यों को स्वीकार कर लेंगे।
संतों की शरण में जाने से पहले उन्हें परखें

उन्होंने कहा कि किसी संत के आश्रय में जाने के पहले उनकी परख जरुर करें। सच्चा धर्म प्रवक्ता निर्विकार, निष्पाप, निर्लोभी, निरंकारी और निश्पृहि होता है। भक्ति और श्रद्धा रखें, लेकिन अंधभक्त नहीं बनें।

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