पुण्योदय और पुरुषार्थ से बनता है साधु का आचरण उन्होंने कहा कि पूर्व जन्म के पुण्योदय और वर्तमान में किए गए पुरुषार्थ से ही साधु का आचरण बनता है। मानव को सुधरने के लिए सत्संग के साथ चिंतन जरूरी है। सत्संग से भक्ति मिलती है तो चिंतन से दिशाबोध। युवा पीढ़ी बाहरी संस्कृति से सीख लेकर रास्ता भटक रही है। यदि परिवार का व्यवहार उनके साथ मैत्रीपूर्ण, पथ प्रदर्शन करने और उत्साहवर्द्धक देने वाला होगा तो वे भी संस्कृति के मूल्यों को स्वीकार कर लेंगे।
संतों की शरण में जाने से पहले उन्हें परखें उन्होंने कहा कि किसी संत के आश्रय में जाने के पहले उनकी परख जरुर करें। सच्चा धर्म प्रवक्ता निर्विकार, निष्पाप, निर्लोभी, निरंकारी और निश्पृहि होता है। भक्ति और श्रद्धा रखें, लेकिन अंधभक्त नहीं बनें।