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मुंबई

गौरा ए थारो ईसर रंग रंगीलो पर भाव-विभोर हो झूमी महिलाएं

साई लीला कॉम्प्लेक्स में हुआ आयोजन

मुंबईApr 08, 2019 / 06:17 pm

Devkumar Singodiya

गणगौर उत्सव

गणगौर उत्सव

उल्हासनगर. शहाड महारल गांव रोड स्थित साई लीला कॉम्प्लेक्स के प्रांगण में गणगौर पूजन हुआ, जिसमें लोकगीतों ने समां बांधा। राजस्थानी समाज की महिलाओं और कन्याओं ने…गौरा ए थारो ईसर रंग रंगीलो जैसे गीत गाकर गणगौर कार्यक्रम को यादगार बना दिया। श्याम परिवार से जुड़े गोविन्द सिंह राठौड़ ने बताया कि समाज की महिलाएं और कन्याओं की मौजूदगी में सबसे पहले गणगौर पूजन हुआ। उसके बाद सभी ने मिलकर गणगौर के गीत गाकर माहौल को भाव-भक्ति से भर दिया।
इस अवसर पर मंजू राजेश केडिया, कल्पना गोविन्द सिंह राठौड़, दिलराज नरेश शेखावत, राजकंवर गजेंद्र सिंह शेखावत, सुनीता गिरवर सिंह राठौड़, संजू राठौड़, उषा राठौड़, बबीता दादरवाल, लक्ष्मी गुप्ता, पंकज नवीन स्वामी आदि मौजूद थे।

राजस्थानी महिलाओं ने मनाया गणगौर उत्सव

कल्याण. कल्याण पश्चिम के पारनाका स्थित राजस्थान भवन में इसर की शादी धूमधाम से सम्पन्न हुई। गाजे-बाजे के साथ राजस्थानी वेश भूषा में शिव-पार्वती की शोभा यात्रा निकाली गई। फेरों की रस्म अदा हुई और खूब नाच-गाना हुआ। शोभा यात्रा में प्रमुख रूप से राजस्थान समाज की आशा लाहोटी,सविता राठी,शीतल लोया, सोनाली मंडरा, अनुराधा सारडा,अंजुसा काबरा,उर्मिला मालु, शोभा लाहोटी,राधिका अटल, कला अटल, किरण तोसमीवाल, वैशाली अटल, सुनीता बजाज, पूनम बजाज, ललिता अग्रवाल , मधुकांता अग्रवाल, कुसुम सोमाणी सहित बड़ी संख्या में महिलाएं मौजूद थीं। शोभा यात्रा द्वारकाधीश मंदिर से परनाका स्थित राजस्थान भवन में जाकर समाप्त हुआ। राजस्थान भवन में विधि विधान के साथ गणगौर उत्सव समापन हुआ। आशालाहोटी ने बताया कि हर साल यह उत्सव पारम्परिक रूप से राजस्थानी महिलाओं द्वारा मनाया जाता है और आज हल्दी और मेंहदी की रस्म की गई है। परंपरा के अनुसार मान्यता है कि चैत्र महीने में पार्वती जी मायके यानि पीहर आती हैं इसलिए इसर गोरजा के रूप में भगवान शिव और पार्वतीजी की सेवा की जाती है।
बताया जाता है कि गणगौर उत्सव के दौरान महिलाएं 16 दिन व्रत रहती हैं और लगातार प्रतिदिन यह उत्सव मनाया जाता है। सोनाली ने कहा कि मान्यता के अनुसार चैत्र माह में “गवरजा” यानि पार्वतीजी पीहर आती हैं इसलिए हम सब महिलाएं मिलकर लाड-प्यार के साथ उनकी सेवा करते हैं जो सनातन से हमारी परम्परा के रूप में चली आ रही है।

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