विदित हो कि अनेक वर्षों से झोपड़पट्टी में रहने वाले नागरिक ऊंचे टॉवर में रहने का सपना देख रहे थे। इसे हकीकत में तब्दील करने के लिए सन 2006 में आकृति डेवलपर्स को इसके पुनर्विकास के लिए चुना गया। यहां 550 में से 176 नागरिक अपात्र हैं, जबकि 384 लीगल पाए गए। साथ ही 3 साल में पूरी तरह से इमारत खड़ा करने का वादा भी किया गया था। तब शुरुआती दौर में बिल्डर को ओर से 6000 प्रतिमाह और कुछ डिपॉजिट राशि दी गई थी। कुछ वर्षों तक तो रकम समय पर दी गई, लेकिन बाद में बकाया की रकम देने में डेवलपर टाल-मटोल करने लगा, जिससे घर का किराया नागरिक को खुद की जेब से देने को मजबूर होना पड़ा। इस मामले में जहां शास्त्री नगर के रहिवासी बेघर हो गए, वहीं डेवलपर्स मालामाल हो गए।
उल्लेखनीय है कि16 साल होने के बावजूद एसआरए के कानों पर जूं तक नहीं रेंग रही है और जो इमारत तैयार है, उनकी हालत भी खस्ता बताई जा रही है। लीकेज की समस्या भी जस की तस बनी हुई है। रहिवासियों की मानें तो बिल्डर की ओर से अवैध रूप से कुछ घूसखोरों को फ्लैट बेचे गए हैं। वहां के नागरिकों का कहना है कि बाथरूम का पानी नीचे वाले फ्लैट में गिरता है। साथ ही 13 मंजिल इमारत में लिफ्ट की समस्या भी बनी हुई है। हर तरफ से इमारत जर्जर हो रही है और ड्रेनेज का गंदा पानी भी बहता रहता है। इस बाबत एसआरएके इंजीनियर उदय मराठे की शिकायत की गई, लेकिन डेवलपर और मराठे की मिली भगत के चलते यह काम अधर में लटका हुआ है।
हमने रहवासियों के साथ में कोई धोखाधड़ी नहीं की है। समय से उनको किराया भी दिया गया और शिकायत मिलने पर उनके रहने की व्यवस्था भी सुचारू रूप से की गई। जबकि अति जर्जर इमारत में रह रहे लोगों को अन्य बिल्डिंगों में शिफ्ट भी किया गया। हालांकि निर्मित इमारतों में आई दिक्कतों को सुलझाया जा रहा है।
– राजेश बबलादी, बिल्डर, आकृति डेवलपर