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मुंबई

पहले कैंसर को हराया, अब कैंसर पीडि़तों को दे रहीं सहारा

टाटा अस्पताल में देखा मरीजों का कष्टमय जीवन, उठाया जरूरतमंदों की सेवा का बीड़ा

मुंबईFeb 26, 2019 / 06:01 pm

Nitin Bhal

पहले कैंसर को हराया, अब कैंसर पीडि़तों को दे रहीं सहारा

पहले कैंसर को हराया, अब कैंसर पीडि़तों को दे रहीं सहारा

मुंबई. किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार, किसी दर्द मिल सके तो ले उधार… जीना इसी का नाम है… समाज में ऐसे लोग भी हैं जो इसी ध्येय वाक्य को अमल में लाकर जरूरतमंदों की सेवा में जुटे हैं। आज हम चर्चा कर रहे हैं 1987 बैच की क्लास वन अफसर रूबी आहलूवालिया की। जो कैंसर पीडि़तों के मुरझाए चेहरों पर मुस्कुराहट लाने की दिशा में काम कर रही हैं। वे सहज भाव से कहती हैं, जीवन किसी के दर्द को कम करने का नाम है। हम सभी का कर्तव्य है कि हम दुनिया के दुख को कम करें। ५५ वर्षीय आहलूवालिया अब तक मुंबई, अहमदाबाद, जयपुर, बीकानेर, वर्धा, कोलकाता, गोहाटी, बेंगलुरू और पुड्डुचरी के 1.80 लाख कैंसर पीडि़तों के जीवन को सरल बना चुकी हैं। फिलहाल रूबी की संस्था ‘संजीवनीÓ में 40 लोग स्थाई रूप से काम करते हैं। यह 40 ऐसे लोग हैं, जो कैंसर को झेल चुके हैं। इनके चयन के बारे में रूबी बताती हैं, इसके दो लाभ हैं। पहला तो यह कि इनका खुद का जीवन पटरी पर आ जाता है। दूसरा इन्हें लोगों का दर्द पता है। इसके चलते इनका काम इतना प्रभावशाली है कि कुछ मरीज कहते हैं कि संजीवनी के साथ जुड़ाव का अनुभव न सिर्फ अच्छा रहा बल्कि यहां आने के बाद उन्हें जीवन का सही अर्थ पता चला।
आहलूवालिया बतातीं हैं, 2009 में मेरे जीवन में कैंसर का भूचाल आया। पहले तो मुझे लगा कि मैं ही क्यों? पर जब मैं इलाज के लिए टाटा अस्पताल पहुंची तो मेरा दुख जाता रहा। खुद के मुकाबले यहां लोगों का जीवन ज्यादा कठिन नजर आया। टाटा अस्पताल में लंबी लाइन लगाने के बाद लोगों को डॉक्टर से पांच से 10 मिनट का समय मिलता है। ऐसे में जब वे बाहर आते हैं, तो उन्हें लगता है कि न वे अपनी बात डॉक्टर को ठीक से समझा पाए और न ही डॉक्टर की बात ठीक से समझ पाए।
धारा के विपरीत बढ़ाए कदम

रूबी ने देखा कि लोग बेहद परेशान होते हैं, वे समझ नहीं पाते कि क्या करें, कहां जाएं? तभी तय किया कि मैं इन लोगों की मदद करूंगी। जब मैंने अपने लोगों की राय ली तो मुझे समझाया गया कि आप गरीबों की आर्थिक सहायता करें। लोगों के विरोध को नजरअंदाज करते हुए मैंने छह महीने की छुट्टी ली और काम शुरू किया। इस तरह मुंबई में ‘संजीवनीÓ लाइफ बियांड कैंसर की नींव पड़ी। यह संस्था कैंसर पीडि़तों की हर संभव मदद करती है। इसमें सबसे पहले उनकी काउंसिलिंग की जाती है। संजीवनी एंजेल (40 लोगों की टीम) इस तरह से कार्य करते हैं ताकि लोगों के मन में कैंसर का जो भय है, वह निकल जाए।
10 लोगों की कोर टीम

रूबी के कार्य को देखते हुए उनके कई मित्र सामने आए और 10 लोगों की एक कोर टीम बनी। इन्हें फाउंडर मेंटर कहा जाता है। यह जरूरत पडऩे पर संजीवनी की मदद करते हैं। रूबी चार महीने का फुल टाइम ट्रेनिंग प्रोग्राम चलाती हैं। इसमें कैंसर केयर के विषय में ट्रेनिंग दी जाती है। प्रयास होता है कि लोगों के मन से कैंसर का भय कम हो। योगा, मनोविज्ञान, न्यूट्रीशन, फिजियोथिरेपी जैसे उपायों की जानकारी दी जाती है।
कैंसर पीडि़तों के लिए 12 दिन का कोर्स

वे कैंसर पीडि़तों के लिए 12 दिन का एक कोर्स कराती हैं, जिसमें यह लोग मरीज को सिखाते हैं कि कैसे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता (इम्यूनिटी) बढ़ाई जाए। कैंसर को लेकर यूट्यूब पर 73 वीडियो उपलब्ध कराए गए हैं, जिनका मकसद लोगों को कैंसर के बारे में जानकारी देना और मरीजों का मनोबल बढ़ाना है। रूबी यहीं नहीं रुकती हैं, वह कैंसर होने से पहले युवाओं को स्वस्थ रहने के गुर भी सिखा रही हैं।
कैंसर केयर पर ठोस पहल की जरूरत

रूबी कहतीं हैं, हकीकत यह है कि सभी सुविधाएं होने बावजूद कैंसर केयर को लेकर भारत में ठोस पहल नहीं हुई है। हमें कैंसर केयर को समझना होगा। यह चुनौती बड़ी है जिसमें पैसे, दवा, रहने की व्यवस्था ही नहीं शरीर का जो अंग कट जाएगा उसे स्वीकारना, रिलेशिनशिप में आने वाली परेशानियां आदि शामिल हैं। इन मामलों से निपटते हुए आगे कैसे बढऩा है, हम लोगों को यह सिखाते हैं। हम पूरी ताकत के साथ हर मोर्चे पर उनके साथ खड़े होते हैं। हमारे पास इतने पैसे नहीं होते कि हम लोगों को सीधे पैसे की मदद कर सकें। लेकिन, हमारी टीम लोगों को सरकारी योजनाओं, ट्रस्टों, धर्मशालाओं-संस्थाओं से जोड़ कर उनकी मदद करते हैं। मैं सिर्फ इतना कहना चाहती हूं कि अगर किसी के दर्द को कम कर सकें तो जीवन सुंदर होगा।

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