गौरतलब है कि कांग्रेस और राकांपा मिलकर चुनाव लड़ने का एलान कर चुके और तीन चौथाई से ज्यादा राज्य की लोकसभा सीटों पर सहमति भी बन गई है। विपक्ष के महागठबंधन ने अभी से जबरदस्त अभियान चला रखा है और पूरी तरह मोदी लहर के खत्म होने को प्रचारित करने की मुहिम छेड़ रखी है। ऐसी स्थिति से मुकाबले के लिए भाजपा-शिवसेना का अलग-अलग लड़ना दोनों ही दलों को नुकसान पहुंचाता दिखाई दे रहा है।
सूत्रों का कहना है कि शिवसेना के सांसदों ने मिलकर चुनाव लड़ने की ही पैरवी की है। विपक्षी नेताओं का साफ कहना है कि अकेले इस बार चुनाव में गठबंधन का सामना करने का साहस न तो भाजपा के पास है और ना ही शिवसेना के पास। विपक्ष को एकजुट होता देख सत्ता पक्ष में भाजपा और शिवसेना भी एक साथ आने के हर संभव प्रयास कर रहे है। हालात को भांपते हुए शिवसेना और भाजपा ने अपने बयानों में नरमी शामिल की है। शिवसेना ने भाजपा पार्टी को निशाना बनाने के बजाय अब सरकार को टारगेट करना शुरू किया। इतना ही नहीं अब शिवसेना के मुखपत्र दैनिक अखबार सामना में भाजपा के खिलाफ कोई टीका टिपण्णी नहीं हो रही है। पिछले दो सप्ताह से शिवसेना और सामना दोनों ने भाजपा के प्रति बदलाव दिख रहा है।
उधर शिवसेना के खिलाफ बेतुके और भड़काऊ बयान देने वालों को भाजपा ने भी साइड लाइन कर दिया है। इतना ही नहीं प्रवक्ताओं को सॉफ्ट ट्रैक पर चलने का निर्देश है। शिवसेना पर आग उगलने वाले प्रवक्ता मधु चव्हाण, अवधूत वाघ और राम कदम को पार्टी की छवि ख़राब करने का हवाला देते हुए मीडिया के सामने जाने पर पाबन्दी लगा दी है। शिवसेना के लिए सबसे घातक माने जाने वाले पार्टी के वरिष्ठ नेता व पूर्व मंत्री एकनाथ खडसे को घर बैठा दिया है। तमाम आरोपों से मुक्त खडसे को पिछले डेढ़ वर्ष से पुनः सत्ता में जगह नहीं दी गई।
उद्धव से फडणवीस तथा चंद्रकांत पाटील ही जोड़ेंगे कड़ी
फडणवीस हर बार यह दावा कर रहे हैं कि उद्धव को मनाने में सक्षम है। उन्होंने स्वीकार किया है कि उद्धव के साथ उनके रिश्ते बहुत ही अच्छे है। फडणवीस ने उद्धव के राजनीतिक बयान का यह कहकर समर्थन भी किया है राजनीति में हर दल को बढ़ने का अधिकार है। यदि उद्धव शिवसेना को बढ़ा रहे है तो क्या बुराई है।
मुख्यमंत्री फडणवीस के अलावा उद्धव के सम्बन्ध भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के दूर के रिश्तेदार और आरएस एस के संगठन में महत्वपूर्ण स्थान रखने वाले वरिष्ठ मंत्री चंद्रकांत दादा पाटील से भी बेहतर है। पाटील की उद्धव से नजदीकियां एक प्रकार से उद्धव से शाह के संवाद की कड़ी है।
भाजपा -शिवसेना में 26:22 का होगा फार्मूला !
युति में सबसे बड़ी समस्या सीटों के बटवारे को लेकर है। भाजपा से 50-50 की शर्त पर शिवसेना युति को लेकर राजी हो सकती है। लेकिन भाजपा शिवसेना के इस फार्मूले पर सहमत होने की संभावना कम है। भाजपा के अधिक सांसद है शिवसेना के कम ऐसे में शिवसेना को अधिक से अधिक 22 सीटें ही भाजपा देना चाहेगी। बचे हुए दो सीटें अपने सहयोगी दल रिपाई और रासपा को देना चाहेगी। भाजपा स्वयं 24 सीटों पर लड़ना चाहती है। राज्य के 48 लोकसभा सीटों पर भाजपा के पास 22 सांसद है , शिवसेना के पास 18 सांसद है। राज्य में अपने इस 40 सीटों को बचाना ही भाजपा और शिवसेना के लिए सबसे बड़ी चुनौती है।