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मुंबई

झोपड़पट्टी की नंदा अनाथों-नेत्रहींनों का बनी सहारा

नेत्रहीनों के स्कूल के लिए दी तीन एकड़ जमीन

मुंबईNov 26, 2018 / 11:39 pm

arun Kumar

Slums of Nanda help to needy

Slums of Nanda help to needy

अरुण लाल

मुंबई. सपनों के शहर मुंबई में हर कोई सपनें बुनता है। मगर इरादे उन्हीं के पूरे होते हैं जिनके सपनों में जान होती है। ऐसे ही जज्बे से लबरेज नंदा दगड़ू मामूनकर दूसरों के लिए प्रेरणा हैं। वे विक्रोली में परिवार संग मुंबई की झोपड़पट्टी में रहती हैं। वे खुद आलीशान फ्लैट में न रहकर अनाथों और लाचारों के लिए सुंदर घर बनाना चाहती है। उन्होंने अपनी तीन एकड़ जमीन अनाथ बच्चों, बेसहारा बूढ़ों और नेत्रहीनों के लिए बचा रखी है जबकि खुद स्लम में रह रही हैं।
नंदा के जेहन में अनाथों के लिए इतनी जगह है कि कमाई का 90 प्रतिशत नेत्रहीन बच्चों की शिक्षा में दे देती है। नंदा बताती हैं, मैं कुछ नहीं करती सब ईश्वर करता है। विक्रोली में जन्मीं नंदा बेहद गरीब परिवार में पली-बढ़ी। उन्होंने कहा, मुंबई मेरी मां भी है और बच्चा भी। मां इसलिए कि मैंने इसकी गोद में जन्म लिया, खेली, जवान हुई और अब बूढ़ी हो गई। बच्चा इसलिए कि मैंने इसे बढ़ते हुए, फलते-फूलते हुए देखा है। मैंने इसके आंसू भी देखे और विकास की रफ्तार भी।
बचपन से ही कर रहीं दूसरों की मदद

नंदा बचपन से ही दूसरों का दुख देखकर द्रवित होती रहीं। 13 वर्ष की उम्र में ही उन्होंने अपने सहपाठियों की फीस के लिए नगरसेवकों, ट्रस्टों और दूसरे मददगारों के दरवाजे ठकठकाना शुरू कर दिया। देखते-ही-देखते वे “बेसहारों का सहारा” के रूप में चर्चित होने लगीं। जिसे भी कहीं कोई दिक्कत आती वह नंदा के पास पहुंच जाता।
दूसरों के लिए जीने में सुख

नंदा ने बताया कि विवाह के बाद वे ससुराल आईं तो पति समझ नहीं पा रहे थे कि झोपड़े में रहने वाले दूसरों की मदद कैसे कर सकते हैं! शुरू में बहुत-सी परेशानियां आईं। हमारे बीच कुछ समय तक अनबन रही, पर धीरे-धीरे मेरे पति को यह बात समझ में आ गई कि दूसरों के लिए जीना कितना सुखद होता है।
शेख साहब का मिला साथ

नंदा ने बताया कि एक बार परिवार आर्थिक तंगी में फंस गया। उस समय मेरे सिर पर शेख साहब ने परिवार को संभाला। वे नेत्रहीनों के लिए संस्था चलाते हैं। 2006 से मैं उनके साथ काम करने लगी। आज वे मेरे पिता हैं, मां हैं और गुरु भी। मेरे पति कारपेंटर का काम करते हैं, मैंने भी इस काम की बारीकियां सीखीं। हम कारपेंटर का ठेका लेते हैंं।

एक सपना जिसे करना है पूरा

अपने दो बेटों-बहुओं और एक पोते के साथ सुखी जीवन जीने वाली नंदा की आंखों में अब बस एक ही सपना है। वे चाहती हैं कि म्हाड मेंं एक अनाथ आश्रम, वृद्धा आश्रम और नेत्रहीनों के लिए एक स्कूल खुल जाए, जहां वे पढऩे-लिखने के साथ दूसरे कार्य सीख सकें। इसके लिए वे म्हाड के गांव दहिवड में अपनी तीन एकड़ जमीन ट्रस्ट के नाम कर चुकी हैं।

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