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हर ओर बिखरी है इंसानियत, आप कदम तो बढ़ाइए

मिसाल: अपनों की ठुकराई महिलाओं का सहारा बना डॉक्टर दंपती, माउली प्रतिष्ठान में रहती हैं 152 महिलाएं

मुंबईApr 19, 2019 / 06:49 pm

Nitin Bhal

मिसाल: अपनों की ठुकराई महिलाओं का सहारा बना डॉक्टर दंपती, माउली प्रतिष्ठान में रहती हैं 152 महिलाएं

मिसाल: अपनों की ठुकराई महिलाओं का सहारा बना डॉक्टर दंपती, माउली प्रतिष्ठान में रहती हैं 152 महिलाएं

अरुण लाल

मुंबई. भारत रिश्तों का देश है। दुनिया भर से लोग रिश्तों की गहराई समझने-गुनने हमारे देश आते हैं। लेकिन आधुनिकता का लबादा ओढ़े कुछ लोग आज रिश्तों को तार-तार करने में तनिक भी संकोच नहीं करते हैं। यह वे लोग हैं जो बुजुर्ग माता-पिता को घर से निकाल देते हैं, जो सडक़ों पर भटकने को मजबूर होते हैं। बावजूद इसके हमारे संस्कारशील समाज की संवेदना मरी नहीं है। हमारे ही बीच कुछ लोग ऐसे हैं, जो सडक़ों पर मारे-मारे फिरने वाली बेसहारा महिलाओं को सहारा प्रदान कर रहे हैं। मिसाल के लिए आप महाराष्ट्र के अहमदनगर के डॉ. राजेंद्र धामने और उनकी पत्नी डॉ. सुचेता धामने को ले सकते हैं, जो महिलाओं के लिए बुढ़ापे की लाठी से कम नहीं हैं। यह डॉक्टर दंपती ऐसी बुजुर्ग महिलाओं की सेवा में जुटा है, जिन्हें उनके परिवार-औलाद ने ठुकरा दिया है।
यह डॉक्टर दंपती सडक़ों पर ठोकर खाने के लिए छोड़ दी गईं महिलाओं को अपने घर माऊली प्रतिष्ठान ले आता है। जब तक यह महिलाएं जीवित रहती हैं, उनकी सेवा करते हैं। आपको यह जानकर हैरानी होगी कि इनके घर में एक-दो नहीं, कुल 152 महिलाएं रहती हैं। इनमें 70 मानसिक रूप से अस्वस्थ हैं। बाकी वक्त की मारी। इनमें से कई महिलाओं का तो रेप-गैंग रेप हो चुका होता है। इनमें से कई गर्भवती होती हैं। डॉक्टर दंपती इन महिलाओं की डिलीवरी का भी इंतजाम करते हैं। यहां ऐसे 21 बच्चे भी रहते हैं। अब तक डेढ़ सौ 150 महिलाओं का अंतिम संस्कार भी कर चुके हैं। डॉ. धामने कहते हैं-यही हमारे जीवन का मकसद है, यही हमारी सफलता है।
एक घटना ने हमें हिला दिया

डॉ. धामने बताते हैं, हम दोनों डॉक्टर हैं। तकरीबन 12 साल पहले की बात है। हम दोनों क्लीनिक से आ रहे थे। हमने देखा कि एक महिला कचरे के ढेर पर बैठी कुछ खा रही थी। हम करीब गए तो देखा कि वह अपना ही मल खा रही थी। इसके बाद उसने गटर का पानी पीया। इस घटना ने हमें हिला दिया। हमने इंसान की इतनी बुरी दशा की कल्पना नहीं की थी। हमारे भीतर एक बेचैनी थी कि हमें कुछ करना चाहिए। हमने सडक़ों पर भटकने वाली महिलाओं को घर का भोजन खिलाना शुरू किया। एक दिन हम एक जवान महिला को खाना खिला रहे थे। हमने पूछा कि आज महिलाएं घरों में असुरक्षित हैं ऐसे में आप कैसे रहती हो। उन्होंने बताया कि रात में मैं सडक़ के डिवाइडर के बीच छुप कर सोती हूं, ताकि कोई देख न सके। यह सूचना हमारे लिए भयानक थी। यह दूसरी घटना थी, जो हमारे हृदय को करुणा से भर गई।
पिता से मांगी जमीन

हम समझ गए थे कि इंसान कितना हैवान बन गया है। सडक़ों पर पागल होकर घूमने वाली महिलाओं का रेप और गैंग-रेप करने में वह पीछे नहीं है। हमने सोचा इनके लिए भी कुछ करना चाहिए। अहमदनगर-शिर्डी रोड पर मेरे पिता के पास एक जमीन थी। मैंने अपने पिताजी से वह जमीन मांगी, जो मिल गई। हमने इस जमीन पर घर बनाना शुरू किया। जब घर बन गया तो सबसे पहले एक महिला, जिन्हें मैं अक्का कहता था, उनसे मिला और कहा, अक्का चलो अब आपके लिए घर बन गया है। पर वे आने को तैयार नहीं हुईं। मैं जबर्दस्ती उन्हें यहां लाया। धीरे-धीरे वे यहां की हो गईं। महिलाएं आती गईं और कारवां बढ़ता गया। लेकिन, कई बीमारियों से ग्रसित अक्का चल बसीं।
गरीबों के इलाज के लिए अस्पताल

अक्का के निधन के बाद हमने सोचा कि ऐसा अस्पताल बनाया जाए, जिसमें गरीबों का इलाज हो सके। संसार में अच्छे लोगों की कमी नहीं है। देखते-ही-देखते लोग समाने आए और बनगांव में 600 बेड का यह अत्याधुनिक अस्पताल शुरू हो गया। हम मानते हैं कि संसार में इंसानियत बिखरी पड़ी है अगर आप कदम बढ़ाते हैं तो लोग मदद को आगे आएंगे। आप शुरू तो कीजिए।

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