पदाधिकारियों और कार्यकर्ताअों से शिवसेना का मुख्यमंत्री बनाने का आह्वान करना पड़ रहा है। शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे की चिंता और तनाव यह भी है कि 24 अक्टूबर को भाजपा के पक्ष में एकपक्षीय नतीजे आ गए तो उनके सहयोग की जरुरत भी पड़ेगी या नहीं । कहीं ऐसा तो नहीं हो जाएगा कि छोटे दलों के साथ भाजपा सत्ता को हासिल कर ले। स्थिति यह हो गई है कि एक जैसी विचारधारा और वोट बैंक होने के बावजूद भाजपा राजनीति के मैदान में शिवसेना से बहुत आगे निकल गई है। किंगमेकर पार्टी शिवसेना को महाराष्ट्र की राजनीति में ये दिन देखने पड़ेंगे, इसकी कल्पना तो राजनीति के धुरंधरों ने कभी नहीं की होगी।
वजूद को बचाने का ऐसा ही संघर्ष एनसीपी प्रमुख शरद पवार को करना पड़ रहा है। बेटी सुप्रिया सुले और भतीजे अजित पवार के भरोसे पार्टी का भविष्य सौंपने की सोच रहे 78 साल के बुजुर्ग नेता ने सोचा भी नहीं होगा कि अपने आखिरी चुनाव में भी खुद के बूते पार्टी की नैय्या पार लगानी होगी। क्योंकि बेटी पार्टी काे संभालने में सक्षम नहीं बन पाईं तो महत्वाकांक्षी भतीजा भी उम्मीदों पर खरा उतर नहीं पाया। ऊपर से पार्टी के मजबूत और शीर्ष नेता भी साथ छोड़कर भाजपा और शिवसेना में चले गए। बची-कुची साख घोटालों और भ्रष्टाचार के आरोपों ने खराब कर दी। बीते तीन चुनावों की बात करें तो दोनों ही क्षेत्रीय दलों ने अपना जनाधार खोया है, तो राष्ट्रीय दल भाजपा ने ताकत के साथ बढ़ाया है।
आदित्य ठाकरे भी उतरे चुनाव मैदान में भाजपा और शिवसेना के गठबंधन, सीटों के बंटवारे और उम्मीदवारों के नामों की घोषणा भले ही नहीं हुई हो, पर शिवसेना ने पहली बार ठाकरे परिवार के सदस्य को चुनाव मैदान में उतारने का मन बना लिया है। जुलाई में भाजपा से इतर शिवसेना की जन आशीर्वाद यात्रा की कमान संभालने युवा नेता आदित्य ठाकरे ने महाराष्ट्र की जनता के बीच जाकर यह संदेश देने का काम किया कि शिवसेना के आने वाले कल की इबारत वे लिखेंगे। वहीं, पार्टी ने भी भाजपा के साथ मतदाताओं के बीच यह बात पहुंचाने की कोशिश की कि दुबारा सत्ता में लौटने पर आदित्य उप मुख्यमंत्री पद के दावेदार होंगे। यही कारण रहा कि आदित्य को सबसे सुरक्षित मुंबई की वर्ली सीट से चुनाव मैदान में उतार दिया गया है ।
कांग्रेस का तो चेहरा ही कोई नहीं बरसों तक महाराष्ट्र में सत्ता की चाबी को हाथ में लेकर रखने वाली कांग्रेस के हाल तो यह हैं कि एनसीपी प्रमुख शरद पवार को उन्हें साथ लेकर चलना पड़ रहा है। पार्टी में इतने कद्दावर नेता होने के बावजूद ऐसा कोई चेहरा नहीं दिख रहा है, जो खेवनहार बनकर कांग्रेस की नैय्या को पार करा सके।