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मुंगेली

जल रहा जंगल, पानी के लिए तरस रहीं नदियां और पहाड़ों का अस्तित्व खतरे में

बिगड़ रहा पर्यावरण: पर्यावरण को बचाने अफसर नहीं दे रहे हैं ध्यान

मुंगेलीJun 06, 2019 / 12:40 pm

Murari Soni

Burning forest, the rivers and rivers of water for danger

जल रहा जंगल, पानी के लिए तरस रहीं नदियां और पहाड़ों का अस्तित्व खतरे में

लोरमी. पर्यावरण को संतुलित बनाये रखने के लिए मानव जीवन में जंगल, पहाड़ और नदियों का विशेष महत्व है। फिर भी इन महत्वपूर्ण चीजों का दोहन किया जा रहा है, जिसमें पर्यावरण असंतुलित तो हो ही रहा है। साथ ही मनुष्यों पर भी इसका दुष्परिणाम दिख रहा है।
गौरतलब है कि 5 जून को पूरे विश्व में पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। वहीं पर्यावरण को बचाने के लिए शासन प्रशासन द्वारा किए जा रहे कार्य महज ढकोसला साबित हो रहा है। कारण, जंगल जल रहा है तो पहाड़ों पर माफियाओं का कब्जा है। वहीं मानव जीवन के लिए महत्वपूर्ण नदी भी सकरी होते जा रही है, या यूं कहें कि जंगल, पहाड़ व नदियों का अस्तित्व खतरे में है। पर्यावरण मानव के लिए जीवनदायी है, लेकिन इसे कोई अपने जीवन में नहीं उतारना चाहता है। अचानकमार टाईगर रिजर्व जो कि लोरमी क्षेत्र के लोगों के लिए एक बड़ी सौगात भी है। प्रतिवर्ष शासन के लाखों करोड़ों खर्च होने के बाद भी लगातार उनका दोहन हो रहा है। कभी आग से हजारों हेक्टेयर जंगल जल जाते हंै तो कभी अधाधुंध कटाई हो जाती है। कुल मिलाकर जंगलों को प्राकृतिक आपदा से नुकसान हो रहा है तो मानव भी उसे खत्म करने के लिए पीछे नहीं हट रहे हंै। ज्ञात हो कि पर्यावरण को बचाने के लिए शासन द्वारा विभिन्न योजना चलायी जा रही है, जिसके माध्यम से प्रतिवर्ष करोड़ों रुपए दे कर पौधरोपण करायया जा रहा है। लेकिन अधिकारियों की उदासीनता एवं देखरेख के अभाव में योजनाएं दम तोड़ देती है।
एटीआर में प्रतिवर्ष आग लगने से जल जाते हंै हजारों हेक्टेयर जंगल
अचानकमार टाईगर रिजर्व में प्रतिवर्ष 15 फरवरी के बाद आग लगना प्रारंभ हो जाती है। ये सिलसिला जून तक चलता है। प्रतिवर्ष लगने वाली आग से हजारो हेक्टेयर जंगल जल जाता है, जिसमें लाखों पेड़ आग के गाल में समा कर अपना अस्तित्व खत्म कर देते हंै। एक आकड़ा के अनुसार विगत 5 वर्षों में एटीआर में 40 प्रतिशत से ज्यादा जगहों पर आग लगी थी। इससे उक्त जगह पर मौजूद इमारती लकड़ी जलकर खाक हो गयी। वहीं वन्य प्राणी भी इस आग के तेज में जल गये है।
तीन वर्षों से पड़ रहे सूखे के चलते नहीं बुझ रही नदी की प्यास
क्षेत्र में विगत तीन वर्षों से पड़ रहे सूखे ने नदी नाले, पोखर सहित बड़े-बड़े बांध को अपनी ही प्यास बुझाने के लिए पानी को तरसा दिया है। बारहमासी बहने वाली नदिया पूरी तरह से सूख गई हैं। नदी में मौजूद पत्थर भी चीख-चीख कर बोल रहे है कि कोई तो मुझे पानी पिला कर नहला दो। ऐसी भयांकर स्थिति आज तक क्षेत्र में नहीं निर्मित हुई है, यह सब पर्यावरण के बिगड़े संतुलन से निर्मित हो रहा है। वहीं एक बार और भी सबसे रोचक होती जा रही है कि नदी पर रेत माफियाओ का कब्जा हो चुका है भीमकाय गड्ढेे खोद-खोदकर रेत निकाला जा रहा है।
हरे भरे पहाड़ों पर भी कारोबारियों की नजर, काटे जा रहे हैं बड़े-बड़े पत्थर
क्षेत्र में बड़ी संख्या में पर्वत पहाड़ लगा हुआ है, जिसमें हरे भरे जंगली पौधे भीमकाय पत्थरों को चीरकर मानो उनको शोभा बढ़ा रहे हैं, लेकिन उनकी दुनिया उजाड़ी जा रही है। इसके लिए कारोबारी लगे हुये हैं। बड़ी मात्रा में पत्थर और मुरूम निकालकर उनका दोहन कर रहे हैं। आबादी क्षेत्रों से लगे जंगलों में लगातार अवैध रूप से पत्थर को तोड़ा जा रहा है। यही नहीं माइनिंग लगाकर पत्थरों कारोबार भी धड़ल्ले से हो रहा है। ऐसा नहीं कि इन सब के बारे में विभागीय अधिकारियों को जानकारी नहीं होती, पर वे ध्यान देना मुनासिब नहीं समझते।
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