जिले के अधिकांश गांवों में जल स्तर 300 फिट से अधिक नीचे गिर जाने की आशंका
लापरवाही: प्रतिबंध के बावजूद ग्रामीण अंचल में कराया जा रहा है बोर खनन
जिले के अधिकांश गांवों में जल स्तर 300 फिट से अधिक नीचे गिर जाने की आशंका
मुंगेली. जिले में लगातार ग्राउंड वाटर के अधिक उपयोग से अंडर ग्राउंड वाटर लेबल अधिकांश गांवों में 300 फिट से भी नीचे चले जाने की आशंका है। यद्यपि सामान्यत: पहले 100 फिट के अंदर पानी मिल जाया करता था। पीएचई विभाग की जानकारी के अनुसार जिले के लोरमी ब्लॉक में अंडर ग्राउंड वाटर लेबल 60 से 70 फिट, मुंगेली में 100 से 120 फिट तथा पथरिया में 100 फिट से अधिक है। अंडर ग्राउड वाटर लेबल बचाने के लिए रैन वाटर हार्वेस्टिंग, केटूर ट्रेंच तथा सोख्ता गड्ढा बनाना बेहतर तरीका है ताकि बारिश के पानी को जमीन के अंदर पहुंचाया जा सके और वाटर लेबल में सुधार हो, लेकिन शासन-प्रशासन इन उपायों के प्रति उदासीन ही नजर आता है।
कुल 669 ग्रामों मेें फैले मुंगेली जिले में इस साल पानी की भीषण कमी हो गयी है। स्थिति यह हो चुकी है कि जिले के इकलौते मनियारी जलाशय के कमाण्ड क्षेत्र में आम जनता के निस्तारी के लिए 15 अप्रैल को पानी छोड़ा गया। इस वर्ष वर्तमान में 42.12 घन मीटर पानी उपलब्ध है, जो जल भराव का 16.33 प्रतिशत है। इसमें से 10 प्रतिशत पानी को वन्यप्राणियों के पीने एवं निस्तारी के लिए सुरक्षित रखा जाकर, शेष 6.33 प्रतिशत पानी को आम जनता के निस्तारी के लिए तालाबों को भरने के लिए पानी छोड़ा गया है।
ऐसी विकट स्थिति में भी दूरस्थ ग्रामीण अंचल में अभी भी प्रतिदिन अवैध बोर खनन धड़ल्ले से चल रहा है। जानकारों का मानना है कि पानी के इतने अधिक दोहन से भूमिगत जल स्रोत पूरी तरह सूख जाएगा, जिसका खामियाजा आने वाले सालों में सबको और बुरी तरह से भोगना पड़ेगा। शहर व ग्रामीण क्षेत्रों में पानी बचाने की प्रवृत्ति का अभाव, पेड़-पौधों की अधाधुंध कटाई तथा पौधारोपण न करना, तथा हर कहीं तेजी से कांक्रीट व सीमेंटीकरण का कथित विकास कार्य, इन सबके कारण विगत एक दशक में जमीन का तापमान बढ़ रहा हैै। शासन की अनेक योजनाएं स्थिति को सुधारने के लिए बनती हैं। विगत सालों में जिले में भूमिगत जल स्रोत को ऊपर लाने के लिए डबरी, कुंआ, बोरी बंधान, एनीकट, स्टाप डेम और तालाब बनानेे के लिए करोड़ों रुपए विभागों एवं पंचायतों के माध्यम से जारी किया गया है। कागजों में सब कुछ ‘आल इज वेल’ है। मगर जमीनी हकीकत इसके बिलकुल विपरीत है।
एक बोर करने वाले ने बताया कि सेंडी राक के नीचे पानी जमा रहता है। कहीं पर पानी का अधिक उपयोग होने से वहां का वाटर लेबल नीचे गिर जाता है। तब वहां पर बोर करने से पानी नहीं मिलता है। मुंगेली नगर में ही यह देखने में आया है कि एक बोर जहां पर 100-150 फिट में काफी पानी आ रहा है, उससे थोड़ी दूर पर 450-500 फिट बोर करने के बाद भी पानी या तो एकदम कम आता है या फिर बोर असफल हो जाता हैै।
प्रशासन की कार्रवाई व चेतावनी के बाद भी बोर खनन पर नहीं लग रहा अंकुश
गौरतलब है कि पिछले कई सालों से जिले में औसत से कम ही वर्षा हो रही है। जिले का बड़ा भू-भाग अवर्षा के कारण लगातार सूखे की चपेट में है। वाटर लेबल लगातार नीचे गिरने तथा पानी की हो रही भयंकर परेशानी को देखते हुए मुंगेली कलेक्टर डॉ. सर्वेश्वर नरेंद्र भुरे ने जिले में बिना अनुमति के निजी बोर खनन पर प्रतिबंध लगा दिया है। मुंगेली के ग्राम सुरीघाट में 9 मई को बिना अनुमति के बोर खनन किया जाने की सूचना मिलने पर एसडीओ राजस्व मुंगेली अमित गुप्ता ने बोर वाहन क्रमांक केए 01 एमजे 3459 एवं सहायक वाहन क्रमांक टीएन 28 एवाय 9636 को जब्त कर लिया। इसी प्रकार 7 मई को मुंगेली के ग्राम बांकी में चमारी मार्ग पर बिना अनुमति के बोर खनन कर रहे वाहन क्रमांक केए 01 एमए 6539 एवं सहायक वाहन क्रमांक केए 01 एसी 9569 तथा 29 मार्च को ग्राम नवागांव (घु.) से बोर वाहन क्रमांक केए 151 एमई 4255 व केए 01 एसी 8277 एवं 11 अप्रैल को ग्राम बरेला से बोर वाहन क्रमांक केए 01 एमएफ 4698 जब्त कर कलेक्टर को उचित कार्रवाई के लिए प्रेषित किया गया था। प्रशासन की लगातार कार्रवाई एवं भविष्य में पुनरावृत्ति करने पर कड़ी कार्रवाई करने की चेतावनी देने के बाद भी बोरवेल खनन करने वालों द्वारा बेखौफ दूरस्थ ग्रामीण क्षेत्रों में लगातार बोर खनन करने की जानकारी मिल रही है।
नगरवासियों को नहीं मिल रहा पर्याप्त पानी
50 हजार से भी कम आबादी वाले जिला मुख्यालय के 22 वार्डों में 127 पावर पंप तथा 330 हेंडपंप के माध्यम से दिया जा रहा पानी अपर्याप्त हो रहा है। लोग बताते हंै कि ग्रामीण क्षेत्रों में भी पानी की मांग होने पर बोर करके हैंडपंप लगा दिया जात है। मगर सदैव से पानी की जरूरत को पूरा करने वाले कुओं को जीवित रखने, संरक्षित करने के तरीकों को कभी प्रोत्साहित नहीं किया गया। जबकि जल स्रोत के माध्यम से कुंए इंटर कनेक्शन से जुड़े होते हंै। कहीं पर भी अगर 8-10 कुंए हों तो इनका आपस में वाटर रिचार्ज होते रहता है। भू-जल का स्तर मेंटेन होते रहता है। आज की प्रणाली नए सिस्टम के कारण पुराने सिस्टम को पीछे छोड़ते जा रहे हैं। जिसके कारण यह दिक्कतें आ रही हैं। इसके अलावा अल्प वर्षा या पर्याप्त बारिश नहीं होने के कारण ग्राउंड वाटर ठीक तरह से रिचार्ज नहीं हो पा रहा है। कुल मिलाकर समस्या यही है कि बारिश के पानी को रोकने का कोई ठोस उपाय नहीं किया जा रहा है। जो पानी बारिश में स्टोर होता है, उसका अपव्यय करके गर्मी आने के पहले ही खर्च कर दिया जाता है। इसी से सारी दिनों दिन बढ़ रही है।
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