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मुंगेली

व्यक्ति का अहंकार जब बुझता है, तब मंगल का प्रकाश जलता है- परिहार

महाकवि गोस्वामी तुलसीदास जयंती पर कार्यक्रम आयोजित

मुंगेलीAug 12, 2019 / 11:27 am

Murari Soni

When the person's ego extinguishes, then the light of Mars burns - avo

व्यक्ति का अहंकार जब बुझता है, तब मंगल का प्रकाश जलता है- परिहार

मुंगेलीञ्चपत्रिका. राष्ट्रीय कवि संगम जिला इकाई ने शासकीय प्राथमिक शाला मदनपुर में संत शिरोमणि महाकवि गोस्वामी तुलसीदास की 678वीं जयंती पर ‘मंगल भवन अमंगल हारी, द्रवहुं सुदसरथ अजिर बिहारी’ पर परिचर्चा और तुलसी साहित्य अथवा अन्य विषय पर गोष्ठी का आयोजन किया।
मुख्य अतिथि एसएस परिहार ने परिचर्चा का प्रारंभ करते हुए कहा ‘मंगल भवन’ का तात्पर्य प्रकाश होने पर अंधेरे का हट जाने से है। व्यक्ति का अहंकार जब बुझता है, तब मंगल का प्रकाश जलता है। उन्होंने रामचरित मानस को वेद पुराण और उपनिषद में छिपे ज्ञान का अमूल्य भंडार निरूपित किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए आगर साहित्य समिति के संरक्षक डॉ. प्रेमकुमार वर्मा ने संभी मंगल भावों को मानस में संग्रहीत कर तुलसी ने एक स्थान पर एकत्रित कर इसे अद्भुत और अलौकिक गं्रथ बना दिया है। विशेष अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार कृष्ण कुमार भट्ट ‘पथिक’ ने मानस के संस्कारों से नयी पीढ़ी को परिचित कराने के प्रयास पर चर्चा की तथा चित्र के स्थान पर चरित्र को अपनाने का सुझाव दिया। वरिष्ठ पत्रकार मनोज अग्रवाल ने बोध कथा के माध्यम से प्रार्थना के शब्दों की अशुद्धि की जगह अंत:करण की पवित्रता को मंगल का मूल माना। राष्ट्रीय कवि संगम के संरक्षक डॉ. अजीज रफीक ने राम स्मरण को मनुष्य जीवन की सिद्धि का मूल मंत्र कहा। जिला सचिव रोहित सिंह ठाकुर, सुधारानी शर्मा, जगदीश देवांगन व नंदराम यादव ने चर्चा में भाग लिया। समापन सत्र में काव्य गोष्ठी हुई, जिसमें प्रमुख कवियों में डॉ. प्रेमकुमार वर्मा, कृष्ण कुमार भट्ट ‘पथिक’, मनोज अग्रवाल, देवेन्द्र सिंह परिहार, देव गोस्वामी, नंदराम यादव, महेन्द्र यादव, रोहित सिंह ठाकुर, संध्या रानी शर्मा, विजय शर्मा, जगदीश प्रसाद देवांगन, खेमेश्वर पुरी गोस्वामी, प्रेमदास प्रेम, मनोहरलाल यादव, अखिलेश सिंह व अभिषेक जैन आदि ने काव्यपाठ किया। कवि गोष्ठी का संचालन डॉ. अजीज रफीक तथा आभार प्रदर्शन देवेन्द्र सिंह परिहार ने किया। आदिवासी दिवस के अवसर पर शाला के सभी आदिवासी छात्र और ग्रामीण उपस्थित रहे।

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