ये कहानी है मुजफ्फरनगर के शुक्रताल की। जहां बागपत निवासी वीरेंद्र राणा और उनकी पत्नी मीना बिना किसी सरकारी सहायता के 45 बच्चों का पालन पोषण कर रहे हैं। कई बार इनके सामने आर्थिक संकट भी आया। लेकिन, इन दोनों ने कभी हिम्मत नहीं हारी। मीना राणा को अपनी तो कोई संतान नहीं है, मगर वह बेघर और बेसहारा 45 बच्चों की मां जरूर हैं। मीना इन्हें खुद से ज्यादा प्यार करती हैं।
इन सभी बच्चों की पढ़ाई-लिखाई, खाना-पीना, रहना-सहना आम परिवार की तरह ही होता है। इस परिवार में 6 साल से लेकर जवान बच्चे रहते हैं। पूरे परिवार में लगभग 12 लडकियां हैं, जिनमे कई लड़कीयों ने उच्च शिक्षा ग्रहण कर ली है। मीना और उसके पति की नेक नियति देख लोग बढ़ चढ़कर अपना योगदान इस परिवार के लिए करते हैं। मुज़फ्फरनगर की धर्मनगरी शुक्रताल में आश्रम स्थापित कर ये पूरा परिवार आराम की ज़िन्दगी बसर कर रह है।
मीना का कहना है कि उसकी ज़िन्दगी खुशियों से भर गई है। उसे अपनी औलाद नहीं होने का कोई गम नहीं है। वो एक भी बच्चे को दूर होता नहीं देख सकती। ये बच्चे उसकी ज़िन्दगी है। मीना इन बच्चों को अपनी ही औलाद मानती है और सभी बच्चे मां कहकर ही बुलाते हैं। मीना हर वक्त किसी भी नए बच्चे को गोद लेने को तैयार रहती हैं।