शुक्रताल का बदल गया नाम मुजफ्फरनगर में पौराणिक तीर्थ स्थल शुक्रताल का नाम बदलकर शुकतीर्थ कर दिया गया है। गांव शुक्रताल जनपद मुजफ्फरनगर थाना क्षेत्र भोपा व तहसील जानसठ का राजस्व गांव है, जो पौराणिक तीर्थ स्थल के लिए प्रसिद्ध है। कई साल से इस गांव का नाम बदलने की मांग हो रही थी। भागवत पीठ शुक्रदेव आश्रम के पीठाधीश्वर व शिक्षा ऋषि के नाम से प्रसिद्ध वीतराग स्वामी कल्याण देव महाराज ने इस ऐतिहासिक तीर्थनगरी का नाम बदलने का बीड़ा उठाया था। मगर यह फाइल सचिवालय में धूल फांक रही थी। शुक्रताल में आने वाले तमाम राजनीतिक व शासनिक अधिकारियों के सामने यह मांग रखी जाती थी।
लोगों ने मनाई खुशी केंद्र में भाजपा सरकार बनने के बाद राज्यपाल राम नाईक 2015 में शुक्रताल आए थे। तब वह भरोसा दिलाकर गए थे कि शुक्रताल का नाम शुकतीर्थ कर दिया जाएगा। इसके बाद भागवत पीठ सुखदेव आश्रम के पीठाधीश्वर स्वामी ओमानंद सरस्वती महाराज ने तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से मिलकर भी इसी मांग को उठाया था। उसके बाद भी कोई कार्रवाई नहीं हुई थी। प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा रुचि दिखाई जाने के बाद पत्रावली आगे बढ़ाई गई और तमाम प्रक्रिया पूरी होने के बाद राज्यपाल राम नाईक ने इसकी स्वीकृति प्रदान कर दी। इसके बाद राजस्व विभाग ने अधिसूचना जारी करते हुए शुक्रताल का नाम बदलकर राजस्व अभिलेखों में शुकतीर्थ खादर व शुकतीर्थ बांगर के नाम से दर्ज करने के आदेश जारी कर दिए। इन आदेशों के बाद शुक्रताल में साधु-संतों के साथ साथ आम नागरिकों में खुशी की लहर दौड़ गई। नमामि गंगे के संयोजक वीरपाल निरवाल का कहना है कि उनकी यह मांग वर्षों पुरानी थी। शुक्रताल इसका अपभ्रंश था। इसके लिए उन्होंने मुख्यमंत्री को भी लिखा था। उन्होंने इसका नाम शुक्रतीर्थ करने की मांग थी। बाहर से आने वाले यात्री शुकदेव आश्रम भी आते हैं।
क्या है इतिहास बताया जाता है कि पांच हजार वर्ष से भी ज्यादा समय पहले संत शुकदेव ने राजा परीक्षित को जीवन-मृत्यु के मोह से मुक्त करते हुए जीते जी मोक्ष की प्राप्ति का ज्ञान दिया था। अभिमन्यु के पुत्र राजा परीक्षित एक बार जंगल में शिकार खेलने गए थे। पानी की तलाश में वह शमीक मुनि के आश्रम में पहुंचे। वहां पानी न मिलने पर उन्होंने एक मरे हुए सांप को मुनि के गले में डाल दिया था। इस पर शमीक मुनि के पुत्र श्रृंगी ऋषि ने उन्हें श्राप दे दिया था कि सातवें दिन इसी सांप (तक्षक) के काटने से उनकी मृत्यु हो जाएगी। इसके बाद राजा परीक्षित पुत्र जनमेजय को राजपाट सौंपकर हस्तिनापुर से शुकताल पहुंच गए। वहां गंगा नदी के तट पर वट वृक्ष के नीचे बैठकर राजा परीक्षित श्रीकृष्ण भगवान का ध्यान करने लगे। इस बीच वहां शुकदेव जी प्रकट हुए और उन्होंने राजा परीक्षित को भागवत कथा सुनाई।