सरकार की मदद के बिना यह सब किया
गांव की मुखिया जयंती देवी ने बिना किसी सरकारी और प्रशासनिक मदद के यह अनूठा काम कर दिखाया। पाकड़ के पुराने पेड़ के नीचे ही झाडिय़ों को साफ कर रहने लायक जगह बना ली गई। पेड़ पर ही ट्यूब लाइटें लगा कर पूरे क्षेत्र को रौशन कर डाला। मुखिया ने सभी को म’छरदानी, रसोई के लिए गैस चूल्हे, सिलिंडर, और राशन उपलब्ध करा दिए। ग्रामीणों की मदद से सोने के लिए बिस्तर तथा ओढऩे को चादर उपलब्ध कराए गए। यहां रह रहे 15 मजदूर जमीन पर ही बिस्तर लगाकर क्वारेंटाइन हैं। अलबत्ता दो गज दूरी के फार्मूले का बखूबी पालन कर रहे हैं।
तेलंगाना से लौटे हैं मजदूर
यहां पिछले पांच दिनों से 15 अप्रवासी मजदूर पेड़ के नीचे बने आशियाने में रह रहे हैं। इन्हें यहां पूरे इक्कीस दिनों तक रहना है। गांव के मिडिल स्कूल में बनाए गए क्वारंटाइन सेंटर में पहले ही से तेरह मजदूरों का निवास है। सरकारी मापदंडों के अनुसार चारदीवारी के बीच ही क्वारंटाइन सेंटर चलाया जाना है। लेकिन तेलंगाना से प्रति व्यक्ति छह हजार गाड़ी कमाई का खर्च कर लौटे इन मजदूरों के आगे ऐसे खुले आसमान में रहने की विवशता भी कम विकट नहीं रह गई थी।
खुले में शौच, नहीं कोई जांच
यहां रह रहे अप्रवासी मजदूर अमृतेश कुमार का कहना है कि यहां आने के साथ केवल थर्मल स्क्रीनिंग ही हो सकी है। कोई जांच नहीं की गई। इक्कीस दिनों तक रहना ज़रूरी तो है लेकिन डर भी लगता रहता है। दूसरे मजदूर प्रणव रजवार ने कहा कि सरकारी सेंटरों पर तो दूरियां बनना मुश्किल है। मगर यहां हम सभी मेंटेन कर रहे हैं।
ग्रामीणों को लगता है डर
पीर मुहम्मदपुर गांव के ग्रामीणों को भय भी सता रहा है। सरकार की ओर से कोई जांच नहीं की गई तो बीमारी के फैलाव के खतरे बने हुए हैं। पाकड़ के नीचे बसें मजदूर खुले में शौच जाने पर विवश हैं। ग्रामीणों के बीच इसे लेकर खटका बना हुआ है। गांव के युवक समय शर्मा कहते हैं कि सरकार केवल कागजी आंकड़ा गिना रही है। अभी तक एक भी प्रशासनिक टीम यहां जांच या किसी मदद के लिए नहीं पहुंची है। यह लोगों को बड़ा ही खटक रहा है। लेकिन इस बात का सुकून भी कम नहीं कि मुखिया और उन जैसे ग्रामीणों की मदद से बेसहारा मजदूरों को राहत पहुंचाई गई।