चाइनीज लाइटो ने छीना कुंभकारों का चैन
लाडनूं. प्रकाश के पर्व दीपोत्सव को लेकर जहा चारो तरफ मार्केट सजने लगे हैं, वहीं वर्तमान में दीपावली से जुड़ा मिट्टी के दीपक का व्यापार मिट्टी में मिलता सा नजर आ रहा है।
मिट्टी की सार्थकता व पर्व की परंपरा को नजरअंदाज कर पाश्चात्य प्रभाव में रंग रहे है जिससे उनके पुश्तैनी व्यापार को काफी संघर्ष करना पड़ रहा है साथ ही पर्व की पवित्रता व सार्थकता भी प्रभावित हो रही है।
लाडनूं. प्रकाश के पर्व दीपोत्सव को लेकर जहा चारो तरफ मार्केट सजने लगे हैं, वहीं वर्तमान में दीपावली से जुड़ा मिट्टी के दीपक का व्यापार मिट्टी में मिलता सा नजर आ रहा है। जो दीप जलकर घरों को रोशन करते है आधुनिकता की हवा ने उन्हे ही संघर्ष की राह पर झोंक दिया है। बाजार में तरह तरह की चाइनीज लाइट्स व डिजाइनदार दीपकों ने मिट्टी के दीपकों की बिक्री पर ग्रहण सा लगा दिया है। स्थानीय कुम्हारों के बास में दो पीढिय़ों से चाक द्वारा मिट्टी के दीपक,कलश सहित अन्य मिट्टी के सामानो के निर्माण का कार्य कर रहे चंदन प्रजापत ने बताया कि दिनों दिन आधुनिकता के हावी होने से व चाइनीज़ लाइटों के बाजारों में पैर पसारने से लोग मिट्टी की सार्थकता व पर्व की परंपरा को नजरअंदाज कर पाश्चात्य प्रभाव में रंग रहे है जिससे उनके पुश्तैनी व्यापार को काफी संघर्ष करना पड़ रहा है साथ ही पर्व की पवित्रता व सार्थकता भी प्रभावित हो रही है। गौरतलब है कि दीपावली पर मिट्टी के दीप जलाने की पर परा प्राचीन काल से भगवान राम के अयोध्या लौटने की खुशी से जुड़ी है तो साथ ही पंचतत्वों में मिट्टी भी प्रमुख है व इसे शास्त्रो में पवित्र बताते हुए शुभ कार्य मे उपयोगितापूर्ण बताया गया है इतना ही नही दीपक के प्रकाश के जलने के पीछे वैज्ञानिक तथ्य के रूप में वातावरण के जीवाणु नष्ट होने सहित अंधकार को दूर करने की भावनाएं भी प्रासंगिक रूप से जुड़ी है। वर्तमान दौर में सस्ती व आकर्षक चाइनीज लाइट्स के कारण लोगो का रुझान कम होता जा रहा है।हालांकि हाल ही दिनों में सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे स्वेदशी अपनाने के संदेशो ने विदेशी लाइट्स की बिक्री कुछ कम जरूर की किन्तु मिट्टी के दीपक के लघु उधोग को कोई विशेष फायदा देखने को नही मिला। चंदन प्रजापत ने अपनी व्यथा सुनाते हुए बताया कि इस कार्य से उनकी आमदनी मेहनत के बराबर भी नही मिल पा रही है। मात्र शादी त्यौहार जैसे अवसरों पर साल में कुछ ही मिट्टी के सामान बिक पाते है। इन्हें बनाने के लिए मिट्टी लाने से लेकर उसको पकाने तक विभिन्न प्रकार की समस्याओ का सामना करना पड़ रहा है। आसपास से मिट्टी लाने में दिक्कत तो महंगे ईधन से पकाने में दिक्कत हो रही है। प्रजापत ने बताया कि अभी मात्र 1रुपये की प्रति लागत के प्रतिदिन 500 दीपक बनाए जा रहे हैं फिर भी इन्हें बिकने में वर्षभर लग जाएगा।
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