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नागौर

VIDEO-सूखती पौध, मुरझाए पत्ते, खराब हुई ढेरियों में परेशान अन्नदाता

खेतों में फसल तो खड़ी है, लेकिन मुरझाई हई, बची हुई उपज को काटा तो कइयों की ढेरियां पानी की वजह से खराब हो गई। नुकसान काफी हो गया, मगर न तो सर्वे हुआ, और न ही अधिकारियों ने झांका।

नागौरOct 01, 2018 / 12:25 pm

Sharad Shukla

Nagaur patrika

Drying plants, dried leaves, worried food providers in damaged piles

नागौर. जिले के परबतसर, कुचामन, रियांबड़ी, डेगाना, जायल आदि क्षेत्रों में बिन मौसम की बारिश व यथासमय बारिश नहीं होने ने फसलों का पूरा भूगौल ही बिगड़ गया है। खेतों में कटे रखे बाजरा, मूंग ज्वार एवं मोठ आदि की ढेरियां बरसात ने निगल ली। पानी के कारण खराब हो गई। यही नहीं कई जहों पर ढेरियां पर पानी पड़ा तो वह अंकुरित हो गए, कई जगहों पर बारिश नहीं होने से पौध ही छोटी रह गई। समर्थन मूल्य की दरों में मूंग में सर्वाधिक राशि बढऩे के बाद उत्साहित किसानों ने जिले के तीन लाख 99 हजार 780 हेक्टेयर के एरिया में बुवाई कर डाली। अब बरसात नहीं होने से मूंग, मोठ, मूंगफली, ज्वार, चौला एवं हरी सब्जियों का उत्पादन अप्रत्याशित रूप से ज्यादा प्रभावित हुआ है। मूंग के बाद करीब तीन लाख 39 हजार 478 हेक्टेयर के एरिया में लहलहा रहे बाजरे की चमक भी कम हो गई है। फसलों की स्थिति यह है कि दाने तो आए हैं, लेकिन पानी नहीं मिलने के कारण उनके अंदर न तो अच्छी चमक है, और न ही गुणवत्ता अपेक्षा के अनुरूप है। फसलों की स्थिति जांचने के लिए अमरपुरा पहुंचे तो यहां खेतों में काम करते मिले किसानों ने कहा कि हमारी मेहनत पर पानी फिर गया। कटी हुई ढेरियां पानी की चपेट में आने के कारण खराब हो गई। इनके दानों की गुणवत्ता एवं रंग पर भी असर पड़ा है। अब तो मंडी में भी इनके समुचित दाम नहीं मिल पाएंगे।
सूखी, अविकवित पौध बता रही हकीकत
हाइवे से सटे अमरपुरा गांव पहुंचे। कच्चे रास्ते की पगडंडियों से होते हुए करीब एक किलोमीटर चलने के बाद खेतों में काम करते किसान नजर आए। फसलें सूखी व मुर्झाई होने के साथ ही अविकसित होने के कारण घुटनों से भी नीचे हो गई थी। खेतों में काम करते देवाराम से मुलाकात हुई। बातचीत के लिए कहने पर पहले तो मना कर दिया, कहा कि अभी तो काम कर रहा है, और शाम को ही बात हो पाएगी। प्रयास के बाद बमुश्किल तैयार हुआ तो बताया कि देख तो रहे हो, पानी नहीं मिलने के कारण फसलों की क्या हालत हो गई है। पौध ही विकसित नहीं हो पाई। पीली पौध के सूखे हुए पत्ते, पौध भी छोटी थी। बारिश नहीं होने के कारण इस बार तो हालत बेहद ही खराब हो गई है। बारिश नहीं होती है तो यह स्थिति सालों से होती आई है। अन्य कोई सिंचाई का संसाधन नहीं होने की वजह से हाड़तोड़ मेहनत करने के बाद भी घर का पूरा बजट बिगड़ जाता है। थोड़ी ही दूरी पर खेत में काम करते मिले किसान देवकिशन का कहना था कि बारिश समय पर हो जाती तो फिर निश्चित रूप से उत्पादन बढिय़ा होता, और फायदा भी हो जाता। बारिश नहीं होने के कारण स्थिति बेहद खराब हो गई है। पूरे गांव में कोई भी खेत ऐसा नहीं है, जिसकी फसल बढिय़ा हुई हो। जोड़-तोडकऱ जैसे-तैसे बीज लाकर बुवाई की तो बरसात ने धोखा दे दिया। बरसात नहीं होने की वजह से खेतों में खड़ी फसल का उत्पादन तो प्रभावित हुआ ही, इसके साथ ही पूरी गणित ही बिगड़ गई। फसल अच्छी हो जाती तो फिर अगली की बेहतर तैयारियां करने के साथ ही घर के और जरूरी काम भी हो जाते।
हर खेत के फसल का हाल-बेहाल
अमरपुरा गांव में खेतों में एक भी खेत ऐसा नहीं मिला। जहां पर फसल अच्छी हुई हो। हर बाजरा, मूंग एवं ग्वार की सूखती, झुकी, मुरझाई व अविकसित पौध ही नजर आई। अब किसानों ने फसल की कटाई भी तेज कर दी है। काश्तकारों में भंवर, रामनिवास का कहना था कि कटी हुई फसल की ढेरियों को असमय हुई बारिश ने खराब कर दिया। खेतों में भी फसल इस बार बारिश के अभाव में बहुत बेहतर नहीं हुई है। हालात बेहद ही चिंताजनक है। वास्तव में एक सिरे से दूसरे सिरे तक देखने पर खेतों के फसल की हालत बेहद ही खराब मिली। इनमें काम करते परेशान काश्तकार नजर आए। इन किसानों से मुआवजे आदि पर चर्चा हुई तो कहा कि यहां पर तो सर्वे करने कोई नहीं पहुंचा, यह सब तो केवल कागजी बातें हैं। किसानों की फसल खराब होने के बाद भी प्रशासनिक अधिकारियों ने गांवों का दौरा करने की जहमत तक उठाई।
हालात खराब, सरकार करे इंतजाम
अमपुरा गांव के उदाराम के पास 10 बीघा की खेती है। उदाराम का कहना है कि समझ में नहीं आता है कि खेतों में अन्न नहीं होगा तो फिर लोग सोना-चांदी खाएंगे क्या, नहीं खा सकते तो फिर किसानों की इतनी उपेक्षा क्यों है। बारिश नहीं होने एवं असमय बारिश होने से फसलों की स्थिति बेहद खराब होने के बाद भी किसानों के पास कोई अधिकारी उनका हाल जानने नहीं पहुंचा। खराब हुई फसलों की वजह से किसानों की माली हालत भी बिगड़ चुकी है। हाड़तोड़ मेहनत करने के बाद न तो उपज का पूरा दाम मिल पाता है, और न ही मेहनत के अनुसार अब खेती से अन्न होता है। कारण कभी बारिश नहीं होने तो, कभी अन्य कारणों से 100 में से 25 प्रतिशत उपज ऐसे ही नष्ट हो जाती है। सरकार को तो ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए कि खेत में बुवाई करने वाले काश्तकार के परिवहन से लेकर मंडी तक अनाज पहुंचे और इसके दाम दिए जाने की व्यवस्था व्यवहारिक होनी चाहिए।
यह उत्पादन होना चाहिए था, बिगड़ गया आंकड़ा
फसल बुवाई
बाजरा 339478
ज्वार 32085
मूंग 399780
मोठ 58580
चौला 7283
मूंगफली 14541
तिल 4375
कपास 35958
ग्वार 105878
समय पर बारिश होने एवं असमय बारिश से कृषि विभाग की ओर से निर्धारित फसल लक्ष्य के आंकड़ों की अब तस्वीर बदल गई है। किसानों का कहना है कि न तो विभागीय अधिकारी आए, और न ही किसानों की स्थिति देखने कोई जिम्मेदार पहुंचा। हालत बेहद ही खराब हो चुकी है। इस संबंध में कृषि विस्तार उपनिदेशक हरजीराम चौधरी से बातचीत हुई तो उनका कहना था कि बारिश के अभाव एवं असमय बारिश होने से फसल उत्पादन का आंकड़ा बिगड़ गया है।
जिले के परबतसर, कुचामन, रियांबड़ी, डेगाना, जायल आदि क्षेत्रों में बिन मौसम की बारिश ने फसलों की हालत खराब कर रख दी है। खेतों में कटे रखे बाजरा, मूंग ज्वार एवं मोठ आदि की ढेरियां बरसात ने निगल ली। पानी के कारण खराब हो गई। यही नहीं कई जहों पर ढेरियां पर पानी पड़ा तो वह अंकुरित हो गए। स्थिति इतनी खराब होने के बाद भी किसानों की ओर से फोन किए जाने के बाद भी उनकी शिकायतें ब्लॉकवार कंपनी प्रतिनिधियों की ओर से अनसुना कर दिया जाने लगा है। टोल फ्री नंबरों पर कभी फोन लगता है, तो कई बार नहीं लगता। लग भी गया तो कंपनी प्रतिनिधियों की ओर से अप्लीकेशन सहित कई औपचारिकताओं का पाठ किसानों को पढ़ा दिया जाता है। किसानों में भंवरलाल, रामलाल, रामसुमेर का कहना है कि
क्या करेंगे खेती कर के, सरकार तो चिंता है ही नहीं
अमरपुरा गांव में ही किसान बुधाराम मिले। वह खेतों में अपने परिवार सहित काम करते नजर आए। उनसे राशायनिक खेती, जैविक खेती एवं गांवों में होने वाले दुग्ध उत्पादन के लिए गौधन की स्थिति पर बात हुई तो वह भडक़ उठे। उन्होंने कहा कि सरकार को हमारी चिंता है क्या, आखिरकार सरकारी कौन सी योजना से किसानों को आज तक लाभ मिला है, आपदा में खराब होने वाली बीमा राशि या मुआवजा राशि मिलने तक कई साल लग जाते हैं, और मिलता भी है बमुश्कि.ल तो बुवाई में व्यय राशि से एक तिहाई से भी कम की राशि होती है। इतनी कम राशि में कुछ हो ही नहीं सकता। किसानों पर कर्जों का बोझ लाद दिया जाता है। समझ में नहीं आता कि खेतों मेें हाड़तोड़ दिनरात मेहनत करने वाले न तो किसान को सरकार कोई सुविधा देती है, और न ही उसकी मेहनत का पूरा फल उसे मिल पाता है। ऐसे में क्या करेंगे खेती कर। इससे तो अच्छा है कि कोई दूसरा काम कर लेे।

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