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नागौर

सरकारी विद्यालयों में संकाय तीन पर व्याख्याता एक भी नहीं

हाल-ए-सरकारी स्कूल-नामांकन बढ़े तो कैसे , पिछले साल के मुकाबले करीब 23 हजार बच्चे कम, तमाम प्रयास फेल, प्रवेशोत्सव रहा फ्लॉप शो, तीन दर्जन से अधिक स्कूल ऐसे जहां विज्ञान/कॉमर्स/कला संकाय तो तीनों पर व्याख्याता गिने-चुनेपड़ताल

नागौरDec 19, 2023 / 08:46 pm

Sandeep Pandey

सरकारी विद्यालयों में नामांकन बढ़े तो आखिर कैसे?

सरकारी विद्यालयों में नामांकन बढ़े तो आखिर कैसे? हालत यह है कि नागौर (कुचामन-डीडवाना) जिलेभर के तीन दर्जन से अधिक विद्यालयों में तो विज्ञान/वाणिज्य/कला संकाय के व्याख्याता ही नहीं हैं। एक-दो विषय व्याख्याता की कमी हो तो चल भी जाए, ऐसे-ऐसे भी विद्यालय हैं जहां विज्ञान संकाय तो हैं पर इससे जुड़ा एक भी व्याख्याता यहां नियुक्त नहीं है।

नागौर. सरकारी विद्यालयों में नामांकन बढ़े तो आखिर कैसे? हालत यह है कि नागौर (कुचामन-डीडवाना) जिलेभर के तीन दर्जन से अधिक विद्यालयों में तो विज्ञान/वाणिज्य/कला संकाय के व्याख्याता ही नहीं हैं। एक-दो विषय व्याख्याता की कमी हो तो चल भी जाए, ऐसे-ऐसे भी विद्यालय हैं जहां विज्ञान संकाय तो हैं पर इससे जुड़ा एक भी व्याख्याता यहां नियुक्त नहीं है। ऐसे में कोई पेरेंट्स अपने बच्चों को क्यों सरकारी विद्यालय में दाखिल कराएगा। कई विद्यालय ऐसे हैं जहां संकाय तो तीन पर व्याख्याता इक्का-दुक्का है।सूत्रों के अनुसार सरकारी विद्यालयों के नामांकन बढ़ाने की सरकारी कवायद धरी रह गई। पत्रिका की पड़ताल में जो कुछ सामने आया वो कम गंभीर नहीं है। नागौर शहर के पास स्थित एक गांव के बारहवीं तक के विद्यालय में विज्ञान संकाय तो है, लेकिन पढ़ाने को एक भी व्याख्याता नहीं हैं। ऐसे में इस संकाय का कोई भी विद्यार्थी यहां प्रवेश क्यों लेगा? नतीजन इस स्कूल में ग्यारहवीं-बारहवीं कक्षा में नामांकन इस संकाय में बढ़ता कैसे? ये ही नहीं अकेले नागौर शहर में करीब आधा दर्जन विद्यालय ऐसे हैं जहां व्याख्याता नहीं व कम होने के कारण विद्यार्थी नहीं आ रहे।
सूत्र बताते हैं कि शहर के बड़े कहलाने वाले नामी सरकारी विद्यालय की बात हो या फिर डीडवाना-कुचामन समेत अन्य शहर व कस्बों के स्कूलों की, व्याख्याताओं का टोटा बराबर बना हुआ है। नामांकन की कमी की समीक्षा करने पर यही बात सामने आई कि शिक्षकों की कमी के कारण बच्चे को पेरेंट्स स्कूल में दाखिला कैसे कराएं। यह तो कुछ नहीं मुख्य विषय अंग्रेजी/गणित विषय की पढ़ाई के लिए भी कई स्कूलों में शिक्षक नहीं हैं।
गुहार बार-बार पर नतीजा शून्य

सूत्रों का कहना है कि जिलेभर में करीब तीन हजार से अधिक सरकारी विद्यालय हैं, तीन दर्जन से अधिक विद्यालयों में तो व्याख्याता ही नहीं हैं। कहीं रसायन/जीव विज्ञान का व्याख्याता नहीं है तो कहीं गृह विज्ञान-भूगोल का, वाणिज्य संकाय का भी हाल लगभग ऐसा ही है। पूरे जिले में तकरीबन 42 विद्यालय ऐसे हैं जहां बड़ी संख्या में व्याख्याताओं की कमी है, इक्का-दुक्का हैं भी तो उससे कोई काम नहीं चल पा रहा। कई विद्यालयों में तो किसी संकाय का एक भी व्याख्याता नहीं है। ऐसे में ग्यारहवीं-बारहवीं कक्षा में नामांकन कैसे बढ़े।
फ्लॉप-शो रहा प्रवेशोत्सव

सरकारी विद्यालयों में करीब तीन महीने चला प्रवेशोत्सव फ्लॉप शो रहा। नागौर (डीडवाना-कुचामन) के सरकारी विद्यालयों के बच्चों की संख्या करीब पांच फीसदी कम हो गई है। यह तो तब जबकि इस बार ना तो सीबीइओ को कोई लक्ष्य मिला नहीं ही प्रधानाचार्य को। बार-बार नामांकन बढ़ाने को लेकर जरूर पत्र जारी होते रहे। पिछले साल की तुलना में करीब 22 हजार बच्चे कम हो गए हैं। ना कोई लक्ष्य ना कोई दबाव, उसके बाद भी सरकारी मशीनरी पूरी तरह स्कूलों का नामांकन बढ़ाने में जुटी रही, लेकिन लोगों ने इसे सिरे से खारिज कर दिया। इस नए सत्र में औसतन हर कक्षा में पिछले साल की तुलना में बच्चे कम हो गए।
पिछले साल के मुकाबले 23 हजार कम

सूत्रों के अनुसार पिछले साल यानी वर्ष 2022-23 में 3 हजार 27 विद्यालयों का कुल नामांकन तीन लाख 68 हजार 674 था जो इस बार वर्ष 2023-24 में करीब तीन लाख 45 हजार रह गया। यानी करीब पांच प्रतिशत कम। ग्यारहवीं-बारहवीं की कक्षा के छात्र-छात्रा तक पिछले साल के मुकाबले करीब तीन हजार बच्चे कम हैं।कयास लगाए जा रहे हैं कि नामांकन पिछले साल के अनुरूप तो नहीं हुआ, लेकिन ऐसा भी क्या कि नामांकन इतना कम हो गया? कहा तो यह भी जा रहा है कि इस बार अन्य कक्षाओं में से भी टीसी कटाने वाले विद्यार्थियों की संख्या ज्यादा रही।उलझन में फंसा रहा प्रवेशोत्सव
इस बार प्रवेशोत्सव ही उलझनभरा रहा। शिक्षकों ने पहले हाउस होल्ड सर्वे किया, परिणाम उत्साहजनक नहीं रहे। इस बार सीबीइओ अथवा किसी भी जिम्मेदारों को कोई टारगेट नहीं दिया। सीधा-सीधा हाउसहोल्ड सर्वे में चिह्नित बच्चों का नामांकन पहली प्राथमिकता रखी गई । सर्वे भी पहले एप के जरिए होना था, इसके लिए शिक्षकों को प्रशिक्षित भी किया गया , हालांकि हाउस होल्ड सर्वे ऑफ लाइन ही प्रारंभ हुआ। फिर नए आदेश के तहत शिक्षा से वंचित बच्चों को ऐप के माध्यम से दर्ज करने को कहा है।
इनका कहना

कुछ विद्यालयों में व्याख्याताओं की कमी है। नागौर शहर के ही करीब आधा दर्जन स्कूल इससे प्रभावित हैं। बार-बार मुख्यालय को इस बाबत बताया जाता है। संभवतया जल्द ही ये पद भर जाएंगे।-रामनिवास जांगिड़, कार्यवाहक सीडीइओ, नागौर।

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