नागौर

नागौर में बैंक कर्मचारियों की अकर्मण्यता से किसानों को लाखों का नुकसान

खाते से प्रीमियम राशि काटने के बावजूद नहीं किया बीमा, जायल व मेड़ता क्षेत्र के किसानों के गांव तक बदल दिए

नागौरApr 10, 2021 / 09:35 am

shyam choudhary

farmers loss Millions due to inaction of bank employees

नागौर. प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में बैंक कर्मचारियों के निकम्मेपन की वजह से नागौर जिले के 100 से अधिक किसान फसल खराबा होने के बावजूद बीमा क्लेम से वंचित रह गए हैं। बैंक कर्मचारियों की अकर्मण्यता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उन्होंने किसानों के खाते से फसल बीमा प्रीमियम की राशि तो काट ली, लेकिन कम्पनी के खाते में जमा नहीं किया, जिससे बीमा नहीं हो सका। बैंक कर्मचारियों व अधिकारियों की इस लापरवाही का खमियाजा खिंयाला गांव एक या दो किसान को नहीं हुआ, बल्कि कुल 72 किसानों को दोहरा नुकसान झेलना पड़ा है। यही नहीं जायल के कमेडिय़ा गांव के 70 किसानों का बीमा करते समय ‘फसल गांव’ खेराट (डेगाना) भर दिया, जिससे सभी किसान क्लेम से वंचित हो गए। इसी प्रकार जिले में अलग-अलग बैंकों के कर्मचारियों व अधिकारियों के निकम्मेपन की वजह से सैकड़ों किसानों को नुकसान झेलना पड़ा है।
कई वर्षों से चल रहा है गड़बड़ी का यह खेल
फसल बीमा योजना में भोले-भाले किसानों का मनमर्जी से बीमा करने व अपनी मर्जी से ही फसल भरने का यह खेल बैंकों द्वारा पिछले कई वर्षों से खेला जा रहा है। हकीकत तो यह है कि 80 प्रतिशत ऋणी किसानों को इस बात जानकारी ही नहीं होती कि उनकी कौनसी फसल का बीमा किया गया है। क्लेम आया तो ठीक नहीं आया तो ब्याज के नाम पर प्रीमियम राशि भी जमा करवा देते हैं। किसानों की शिकायत पर जिला कलक्टर डॉ. जितेन्द्र कुमार सोनी ने इस मुद्दे को गंभीरता से लिया और बीमा कम्पनियों के अधिकारियों को बुलाकर बैठकें लेनी शुरू की तो एक के बाद एक करके गड़बड़ी की कई परतें खुली, जिसमें बैंकर्स की ओर से जमकर लापरवाही बरती गई हैं। खरीफ 2018 में खिंयाला के किसानों का प्रीमियम काटने के बावजूद बीमा नहीं होना सामने आया तो, खरीफ 2019 में मेड़ता के बासनी कच्छावा व हिरणखुरी गांव के किसानों का फसल गांव फालकी, लिलिया व बडग़ांव भरने के मामले भी सामने आए हैं। इसी प्रकार खरीफ 2020 में कमेडिय़ा के 70 किसानों का फसल गांव खेराट भरने का मामला भी तूल पकड़ रहा है।
किसान अपना रहे फसल चक्र, बैंकों के लिए वर्षों से एक ही फसल
किसान के्रडिट कार्ड योजना के तहत बैंकों से ऋण लेने वाले किसानों के लिए पहले जहां फसल बीमा कराना अनिवार्य था, वहीं गत वर्ष सरकार ने इसमें थोड़ा संशोधन करते हुए बीमा की अनिवार्यता हटा दी, लेकिन शर्त यह रख दी कि यदि किसान निर्धारित समय तक बैंक को लिखकर देगा तो ही उसका बीमा नहीं किया जाएगा। अन्यथा बिना पूछे बीमा कर दिया जाएगा। ऋणी किसानों के साथ बैंकर्स द्वारा सबसे बड़ा जो मजाक किया जा रहा है, वह यह है कि फसल बीमा करते समय बैंकर्स उसी फसल का बीमा करते हैं, जो ऋण लेते समय किसान ने बताई थी। हालांकि किसान हर साल अपने खेत में फसल चक्र को अपनाते हुए अलग-अलग फसल उगाता है, लेकिन बैंकर्स हर वर्ष उसी फसल का बीमा करते हैं, जिसके कारण जब क्लेम देने की बात आती है तो जिस फसल का बीमा होता है, वह खेत में नहीं मिलती, जिससे किसान को नुकसान का क्लेम ही नहीं मिलता।
हर वर्ष काट रहे निरीक्षण शुल्क, लेकिन करते नहीं
बैंकर्स द्वारा ऋणी किसानों के खातों से हर वर्ष निरीक्षण शुल्क (इंस्पेक्शन चार्ज) काटा जाता है, लेकिन एक बार भी किसान के खेत में जाकर फसल का निरीक्षण नहीं करते। अनपढ़ होने व जागरुकता के अभाव में किसान कभी इसका विरोध नहीं करते। जबकि नियमानुसार जब बैंकर्स निरीक्षण शुल्क वसूल रहे हैं तो उन्हें किसान के खेत में बोई जाने वाली फसल का ही बीमा करना चाहिए।
प्रकरण उच्चाधिकारियों को भेजे हैं
किसानों की शिकायत पर जांच करवाई तो सामने आया कि पटवार मंडल कमेडिय़ा के 70 किसानों का खरीफ-2020 का फसल बीमा करते सम्बन्धित बैंक ने ‘फसल गांव’ (क्रॉप विलेज) खेराट भर दिया। इससे सभी किसान क्लेम से वंचित हो गए। इसी प्रकार मेड़ता के भी कुछ किसानों के फसल गांव दूसरे भरने के प्रकरण सामने आए हैं। सभी प्रकरण तैयार कर जयपुर कृषि विभाग (फसल बीमा) के संयुक्त निदेशक को भेजे गए हैं।
– डॉ. शंकरराम बेड़ा, उप निदेशक, कृषि विभाग, नागौर
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