जिन्होंने सबसे पहले सांभर साल्ट व झील का दौरा किया। सांभर साल्ट में स्थित नमक रिफाइनरी में नमक बनने से लेकर पैकिंग व अपशिष्ट निस्तारण की जानकारी जुटाई। साथ ही निजी नमक रिफाइनरियों का दौरा कर इनसे निकलने वाले नमक से लेकर वाश के बारे में जानकारी ली। कमेटी सदस्यों ने बताया कि सांभर झील बहुत बड़ा क्षेत्र है। इससे हजारों श्रमिकों का गुजर बसर होता है। वहीं बेजुबान परिंदों का भी झील पर अधिकार है।
एक्सपर्ट कमेटी अब सभी पहलुओं पर विचार करेगी। जिसमें मुख्य तौर पर पक्षियों की मौत ना हो इसके लिए क्या किया जा सकता है। झील में अतिक्रमण को कैसे रोका जाए और वर्तमान अतिक्रमण कैसे हटाए जाएं। अपशिष्ट के तौर पर सोडियम सल्फेट और सीवरेज को डालने से कैसे रोका जाए, झील का विकास कैसे किया जा सकता है जैसे बिंदुओं पर विचार करने के बाद कमेटी सुझावों के साथ रिपोर्ट सीलबंद लिफाफे में हाईकोर्ट को सौंपेगी।
ये थे एक्सपर्ट कमेटी में शामिल
वन विभाग के मुखिया की अध्यक्षता में गठित कमेटी में उड़ीसा की चिलिका लेक डेवलपमेंट अथॉरिटी के पूर्व चेयरमैन डॉ.अजित पटनायक, बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी के एनिमल बोटुलिस्म साइंटिस्ट डॉ. पी सतिया सेल्वम, वन विभाग के पूर्व मुखिया आरएन मेहरोत्रा विशेषज्ञ के तौर पर टी में शामिल थे। इसी के साथ प्रमुख डीसीएस जयपुर, एडीशनल डायरेक्टर इण्डस्ट्रीज डिपार्टमेंट, मेंबर सेकेट्री राजस्थान स्टेट पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड और एडिशनल डायरेक्टर पशुपालन विभाग सदस्य के तौर पर शामिल रहे।
झील में पक्षी त्रासदी के बाद राजस्थान यूनिवर्सिटी ऑफ वेटनरी एंड एनीमल साइंस के अनिल कुमार कटारिया ने पहले पक्षियों में बोट्यूलिज्म की पुष्टि की थी। वे पहले ही कह चुके थे कि ‘सांभर जैसी बड़ी त्रासदी के बाद सरकार का जो रवैया रहा है, वो निराशाजनक है। संबंधित विभागों ने जिम्मेदारी एक-दूसरे पर डालने की कोशिश की। बोट्यूलिज्म जैसे बैक्टीरिया को खत्म तो नहीं किया जा सकता, लेकिन भविष्य में यह वापस आता है तो उसकी तैयारी हमारे पास बिलकुल नहीं है।’ सांभर झील में त्रासदी पर सरकार को वन्य जीव और प्रवासी पक्षियों की सुरक्षा का एक बड़ा मौका दिया, लेकिन समय के साथ-साथ उसे सरकार गंवा रही है। राजस्थान के लगभग हर जिले में बड़ी संख्या में प्रवासी पक्षी आते हैं। इसके साथ ही करीबन 30 हजार से अधिक स्क्वायर किमी भू-भाग पर वन हैं। इतना सब होने के बाद भी हम केन्द्र की लैबों के भरोसे हैं। राज्य में लैब ही नहीं है। आपदा के वक्त में राज्य को केन्द्र की संस्थाओं के भरोसे ना रहकर आत्मनिर्भर होना चाहिए। पक्षियों की मौत का कारण जानने के लिए राजस्थान सरकार ने बरेली की भारतीय पशुचिकित्सा अनुसंधान संस्था, भोपाल की राष्ट्रीय उच्च सुरक्षा पशु रोग संस्थान, देहरादून में भारतीय वन्यजीव संस्थान और बीकानेर स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ वेटनरी एंड एनीमल साइंस में सेंपल भेजे थे। सैंपल भेजने और उसकी रिपोर्ट आने में ही कई दिन बर्बाद हो गए। ऐसे में राजस्थान में इस तरह की लैब की जरूरत महसूस हुई,ताकि सांभर जैसी आपदा के वक्त उसके कारणों की तह तक जल्दी पहुंचा जा सके।