जानकारी के अनुसार 1835 में ब्रिटिश सेनानायकों ने एक संधि के जरिये झील का कारोबार अपने जिम्मे लिया। इसके बाद अलग-अलग अवधि में जयपुर-जोधपुर रियासत और ब्रिटिश कंपनी के बीच साझा कारोबार हुआ। उसके बाद सन 1870 में अंग्रेजों ने सांभर झील पूरी तरह अपने नियंत्रण में ले ली थी। वे यहां से देश-विदेश में नमक का कारोबार करने लगे। इस दौरान उन्होंने गुढ़ा साल्ट में झील किनारे दो ऐतिहासिक पुल व कई भवन बनवाए। उन्होंने सन् 1850 में ही इस पुल का निर्माण करवाया था। झील के बीच आरपार इतने बड़े पुल का निर्माण करवाने का उद्देश्य एक मात्र जयपुर व अजमेर जिले की सीमा से नमक को गुढ़ासाल्ट रेलवे स्टेशन पर लाना था। पुल बनाने के बाद उन्होंने इस पर लाइन बिछा कर लकड़ी के डिब्बों की अनोखी रेल चलाई, जो अभी झील में दौड़ती है, लेकिन इस पुल पर 1990 के बाद रेल नहीं दौड़ी। पिछली सरकार ने दो किमी तक पुल का जीर्णोद्धार करवाया था। इसके बाद शाही टे्रन चलती है, लेकिन यह पुल नागौर साइड में तीन किमी तक बरसों से अनुपयोगी पड़ा है।
दिखता है झील का अद्भुत रूप जब झील पानी से लबालब रहती है, तब इस पुल को देखने का मजा ही कुछ और होता है। तब यह हूबहू ‘राम सेतु’ की तरह नजर आता है। पानी जब तेज हवा से लहराता हुआ दोनों तरफ डेम से टकराता है तो अद्भुत आकर्षण का केंद्र होता है। साफ पानी और झील का सौंदर्य हर किसी को आश्चर्यचकित करता है।