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नागौर

जागरुकता का अंधेरा छंटे तो हो नेत्रदान की बढ़ोतरी का सवेरा

संदीप पाण्डेयनागौर. नेत्रदान का आधा-अधूरा इंतजाम नागौर जिले का ‘नसीबÓ बन गया है। जागरुकता की कमी और रूढि़वादी सोच के चलते नागौर अन्य जिलों की अपेक्षा इस लिहाज से काफी पीछे है।

नागौरFeb 28, 2020 / 10:25 pm

Sandeep Pandey

नेत्रदान

जिले में नेत्रदान का सालाना औसत तीन के आस-पास है।

संदीप पाण्डेय
नागौर. नेत्रदान का आधा-अधूरा इंतजाम नागौर जिले का ‘नसीबÓ बन गया है। जागरुकता की कमी और रूढि़वादी सोच के चलते नागौर अन्य जिलों की अपेक्षा इस लिहाज से काफी पीछे है। जिले में नेत्रदान का सालाना औसत तीन के आस-पास है। एक-दो बार एनजीओ की तरफ से संकल्प-पत्र भरवाए भी गए तो वो ‘रखे के रखे रह गए। अधिकांश मामलों में परिजनों ने नेत्रदान के लिए चिकित्सा टीम को इत्तला तक नहीं दी। सरकार की तरफ से इसके लिए न कोई जागरुकता अभियान है न ही जनप्रतिनिधियों का सहयोग। एक सच यह भी सामने आया कि पुरानी सोच के चलते शरीर का अंग भंग करने से भी लोग परहेज कर रहे हैं।
आंकड़ों पर एक नजर
जानकारी के मुताबिक वर्ष 2012 से 2019 तक नेत्रदान के मात्र २७ मामले नेत्रदान के पहुंचे। इन नेत्रों को बीकानेर के सरदार पटेल मेडिकल कॉलेज पहुंचाया गया। इक्का-दुक्का मामले कुचामन/मेड़ता से अजमेर के मेडिकल कॉलेज पहुंचे। इसका सालाना औसत तीन-चार का है। सर्वाधिक नेत्रदान वर्ष 2016 में हुआ, इनकी संख्या आठ थी। वर्ष 2017 में छह, वर्ष 2012 में तीन नेत्रदान हुए। बाकी वर्षों में यह संख्या मात्र दो रही। लायंस क्लब के पूर्व अध्यक्ष नरेंद्र पंवार के अकेले घर से ही तीन नेत्रदान हुए।
जागरुकता से होगी बढा़ेतरी
जेएलएन अस्पताल के नेत्र रोग विशेषज्ञ डॉ. धर्मेन्द्र डूडी का कहना है कि जागरुकता से लोग सजग हों तो इनमें बढ़ोतरी हो सकती है। सरकार की तरफ से टीवी-रेडियो पर विज्ञापन दिया जाता है। मरणोपरांत छह से छह घंटे के भीतर नेत्र निकाला जाता है, फिर बीकानेर मेडिकल कॉलेज भिजवा देते हैं, जहां नेत्रहीन लोगों के जीवन में रोशनी आती है। कुल मरने वालों का पांच फीसदी भी नेत्रदान हो तो काफी है। नेत्रहीनों की एक लंबी फेहरिस्त है। एक जने के नेत्रदान से दो लोगों का कल्याण होता है।
अवयेरनेस ‘जीरोÓ तो पुरानी सोच हीरो
जागरुकता के न पंपलेट न संकल्प पत्र । न कोई जनप्रतिनिधि की बैठक न कार्यशाला/रैली का इंतजाम।अब तक नेत्रदान को लेकर लायंस क्लब ने ही जिम्मा उठा रखा है। लायंस क्लब के पूर्व अध्यक्ष नरेंद्र पंवार का कहना है कि सड़क हादसे में जाने वाली जान अथवा अन्य आकस्मिक मौत पर परिजन/रिश्तेदार नेत्रदान को लेकर आगे आएं। जागरुकता के लिए सरकारी/ गैरसरकारी स्तर पर प्रयास होने चाहिए। इसके अभाव में भी यह बढ़ नहीं पा रहा। कुछ अन्य लोगों ने बातचीत में कहा कि दरअसल रूढिवादी सोच भी इसका बड़ा कारण है। अंग-भंग के लोग पक्ष में नहीं रहते क्योंकि वे इसे दोष मानते हैं। साथ ही अंतिम संस्कार के समय घर वालों को तो सुध ही नहीं रहती, अन्य रिश्तेदार/जानकार फिनरल जल्दी करने की सोच रखते हुए इस बारे में नहीं सोचते। इस बारे में भी अवेयरनेस लानी होगी।
आंख पाने का लंबा इंतजार

बीकानेर हो या अजमेर नेत्र प्रत्यारोपण के लिए लंबी फेहरिस्त है। इनमें से कई तो ऐसे हैं जिन्हें अपने नंबर का इंतजार करते महीनों गुजर गए। ऐसे में नेत्रदान में खासतौर से नागौर बिल्कुल फिसड्डी है। भारत में करीब 1.25 करोड़ लोग नेत्रहीन हैं, नेत्रदान द्वारा आंख का कॉर्निया ट्रांसप्लांट किया जाता है। हर साल लगभग 25-30 हजार लोग कॉर्निया खराब होने के कारण अंधता से ग्रसित हो रहे हैं। इन सबमें से लगभग 50 प्रतिशत लोग कॉर्नियल ट्रांसप्लांट से रोशनी वापस प्राप्त कर सकते हैं। हर वर्ष कम से कम 2 लाख कॉर्निया की आवश्यकता है, लेकिन 40-45 हजार ही नेत्रदान हो पाते हैं।
होती है बैठक, चलाएंगे अभियान
नेत्रदान को लेकर समस्त जनप्रतिनिधियों के साथ बैठक/कार्यशाला कर उन्हें जागरुकता फैलने के लिए कहा जाता है। चिकित्सा विभाग अपने स्तर पर जनता को भी अवेयर करता है। इसमें और तेजी लाएंगे।
डॉ. सुकुमार कश्यम, सीएमचओ नागौर
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