आंखों में आंसू के सिवाय कुछ नहीं
बड़ीकाटू खनन क्षेत्र में वर्षों से सिलावट, मेघवाल, बावरी, रेगर, भाट, नायक, लीलगर, जाट सहित अन्य समाजों के युवा श्रमिक मजदूरी करते आ रहे हैं। असमय काळ का ग्रास होने से इनकी विधवाएं पति के वियोग में दिन काट रही हैं। खनन क्षेत्र में काम करने वाले मजदूरों की मौत के बाद पत्नियों को शादी के एक -दो वर्ष बाद वापस मायके लौटना पड़ता था आज भी करीबन हर घर में एक -दो महिलाएं विधवा मिल जाएंगी, जिन्होंने पति के साथ बिल्कुल कम समय बिताया और युवा अवस्था में विधवा हो गईं। इतना ही नहीं ठेकेदार से पति द्वारा लिया गया कर्जा भी अवैध चुकाना पड़ रहा है। पत्रिका संवाददाता ने जब इन विधवा महिलाओं से चर्चा की तो उनकी आंखों में आंसू के सिवाय कुछ नहीं झलक रहा था। काफी विधवाएं अपने गम को भूल मजदूरी करके बच्चो का पालन पोषण में लगी हैं।
आधिकारिक बोर्ड के आंकड़े
2016 – 2017 में 912 श्रमिक प्रमाणित
2018 के अगस्त तक 336 प्रमाणित
1000 करीब को सिलिकोसिस प्रमाण पत्र दिया
80 के करीब अब तक मौत
मौतों के बाद भी नहीं संभले मजदूर
खान मजदूर सिलिकोसिस व टीबी बीमारी से बचाव के लिए डस्ट मास्क का उपयोग तक नहीं करते हैं। खान श्रमिकों के स्वास्थ्य को लेकर खान धारक व खनन विभाग के अधिकारी भी लापरवाह बने हुए है । जिले की खदानों में नियमों की पालना नहीं की जा रही है। अवैध खानों में पैसें के लालच में आकर श्रमिक मौत की मजदूरी कर रहे हैं।
इसलिए शिक्षा से रह गए वंचित
करीब बीस साल पहले तक क्षेत्र शिक्षा में काफी पिछड़ा हुआ था। विधवा महिलाएं अपने पुत्रों को अच्छी शिक्षा दिलाने में असमर्थ थी, जिन महिलाओं अवैध खनन ने मांग उजाड़ी उनके एक भी पुत्र का सरकारी सेवा में चयन नहीं हुआ है। वर्तमान में कुछ सुधार हो रहा है और महिलााएं बच्चों को पढ़ाने लगी हैं।
ऐसे फैलती है सिलिकोसिस बीमारी
खनन के दौरान उडऩे वाले पत्थर के सूक्ष्म कण हवा में फैलने से श्वास के साथ व्यक्ति के शरीर में जाकर फेफड़ों में एकत्र हो जाते हैं। इससे टीबी , सिलिकोसिस सहित कई तरह की बीमारियां पनपने लगती है। यहीं रेत के कण आंखों में गिरने से आंख में जख्म हो जाते हैं। सिलिकोसिस से पीडि़त मरीज के कुछ समय बाद मौत हो जाती है.