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नागौर

राजस्थान के इस जिले में बेटियों के नाम से हैं मंदिर, लगते हैं मेले

मेड़ता की मीराबाई, कालवा की कर्माबाई, मांझवास की फूलाबाई, हरनावा की रानाबाई, खरनाल की बूंगरी माता के साथ इंदोखा की गिगाई माता, इंदर बाईसा और भादीबाई के मंदिर बने हैं।

नागौरApr 16, 2024 / 04:31 pm

जमील खान

नागौर। देशभर में नवरात्र में अष्टमी व नवमी को बेटियों (कन्या) की पूजा होती है। खास बात है कि नागौर की धरती न केवल बेटियों की पूजा होती है, उनके नाम से मंदिर भी बने हैं। निर्धारित दिवस पर उनके नाम से मेले भी भरते हैं। नागौर में मेड़ता की मीराबाई, कालवा की कर्माबाई, मांझवास की फूलाबाई, हरनावा की रानाबाई, खरनाल की बूंगरी माता के साथ इंदोखा की गिगाई माता, इंदर बाईसा और भादीबाई के मंदिर बने हैं। नागौर की इन बेटियों ने प्रभु की भक्ति एवं शक्ति का चमत्कार लोगों को दिखाया और अमर हो गईं।
विश्वभर में प्रसिद्ध है श्रीकृष्ण भक्त मीरा
मीराबाई का जन्म मेड़ता में हुआ। राव दूदा ने मेड़ता में चारभुजानाथ का मंदिर बनवाया। मीरा ने भगवान कृष्ण को पति मान लिया। उनका विवाह चित्तौडग़ढ़ के राजा भोजराज के साथ हुआ। बाद में मीरा भजन में लग गई। आज चारभुजानाथ मंदिर में मीरा की मूर्ति है।
कर्माबाई का खीचड़ा खाने आते थे श्रीकृष्ण
मकराना क्षेत्र के कालवा गांव में कर्माबाई का जन्म 20 अगस्त 1615 में जीवन राम डूडी के घर हुआ था। मान्यता है कि कर्मा के सरल व भोले स्वभाव पर भगवान श्रीकृष्ण रीझ गए और खुद करमा का खीचड़ा खाने आए। जिस मंदिर में करमा बाई ने पूजा की आज भी मौजूद है।
हरनावा की रानाबाई ने ली जीवित समाधि
हरनावा की रानाबाई राजस्थान की दूसरी मीरा के रूप में जानी जाती है। रानाबाई का जन्म हरनावा पट्टी में 1543 में चौधरी जालमसिंह धूण के घर में हुआ। ईश्वरीय भक्ति में डूबी रानाबाई का हरनावा में मंदिर बना हुआ है, जहां हर महीने मेला लगता है। मकराना क्षेत्र के कालवा गांव में कर्माबाई का जन्म 20 अगस्त 1615 में जीवन राम डूडी के घर हुआ था। मान्यता है कि कर्मा के सरल व भोले स्वभाव पर भगवान श्रीकृष्ण रीझ गए और खुद करमा का खीचड़ा खाने आए। जिस मंदिर में करमा बाई ने पूजा की आज भी मौजूद है।
रामभक्त फूलाबाई ने ली जीवित समाधि
मांझवास गांव में संतफूलाबाई का मंदिर है। चौधरी हेमाराम मांझू के घर जन्मी फूलाबाई ने विवाह न करके भगवान राम की भक्ति की। तालाब की पाल पर राम की भक्ति करते हुए 1 646 ई. में फूलाबाई ने 78 वर्ष की आयु में जीवित समाधि ली। वहां हर वर्ष मेला भरता है।

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