आयोग के अध्यक्ष डॉ. श्यामसुंदर लाटा, सदस्य बलवीर खुडख़ुडिय़ा व चंद्रकला व्यास की न्यायपीठ ने दोनों पक्षों की सुनवाई के बाद निर्णय में कहा कि सामूहिक मास्टर बीमा पॉलिसी के मामले में किसी सदस्य की मृत्यु होने पर बीमा कंपनी को विलम्ब के आधार पर उसका क्लेम खारिज करने का अधिकार नहीं है। इस मामले में परिवादीगण ग्रामीण परिवेश से होकर मृतक की विधवा पत्नी व अवयस्क पुत्र-पुत्रियां है, जिनसे सदमें की परिस्थितियों में तुरंत सूचना दिये जाने की अपेक्षा नहीं की जा सकती। इसके अलावा पुलिस जांच में भी रामरतन की मृत्यु विद्युत करंट लगने से होना बताया है, करंट लगने के बाद रामरतन को जिला चिकित्सालय, नागौर में लाए जाने पर चिकित्सक ने भी विद्युत करंट से मृत्यु होना दर्शाया। इन सब स्थितियों में रामरतन की मृत्यु विद्युत करंट लगने के तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता। ऐसे में बीमा कंपनी द्वारा रामरतन की मृत्यु को संदिग्ध बताना तथा विलम्ब से सूचना देने को आधार बनाकर क्लेम खारिज करना उनकी सेवाओं में घोर त्रुटि होने के साथ-साथ विधि विरूद्ध एवं अनुचित भी है।
आयोग की पीठ ने बीमा कंपनी युनाइटेड इण्डिया इंश्योरेंस कम्पनी को आदेश दिया कि वह परिवादी राजू देवी आदि को रामरतन की व्यक्तिगत दुर्घटना जीवन बीमा क्लेम की राशि समस्त परिलाभों सहित 9 प्रतिशत ब्याज के साथ दो माह की अवधि में प्रदान करें। इसके अलावा बीमा कंपनी परिवादी आदि को शारीरिक व मानसिक वेदना की क्षतिपूर्ति के रूप में दस हजार रुपए व परिवाद व्यय के रूप में पांच हजार रुपए भी अदा करें। दो माह में राशि अदा नहीं करने पर बीमा कंपनी युनाइटेड इण्डिया इंश्योरेंस को इस राशि पर भी 9 प्रतिशत वार्षिक दर से ब्याज देना होगा।