
चौसला. तेजाजी मोहल्ले से मेगा हाइवे पर जाने वाली ग्रेवल सडक़ के पास एक खेत में फसल चट कर रहे सांड।
मवेशी कर रहे है फसलों का नुकसान
चौसला. एक सप्ताह से पड़ रही सर्दी के चलते शाम होते ही लोग रजाइयों में दुबक जाते है, वहीं रात के समय किसानों को ठिठुर कर खेतों में रबी फसल की रखवाली करनी पड़ रही है। आवारा मवेशी व वन्यजीवों का दायरा बढ़ता ही जा रहा है। ज्यादातर पिछले दो साल से किसानों के लिए सिरदर्द बने हुए है। सबसे ज्यादा परेशानी नीलगायों की है। वे रात के समय खड़ी चना व गेंहू फसल को चट करने के बाद धमाचौकड़ी मचाकर फसल को नष्ट कर देते है। किसानों ने बताया कि क्षेत्र के आस-पास के खेतों में बड़ी संख्या में नील गाय और आवारा सांड रात के समय समूह के रूप में पहुंच जाते है। कई बार अकेला किसान इसे निकाल ही नहीं पाता है। चौसला, कुणी, लोहराणा, पिपराली, लूणवां, लाखनपुरा, गोविन्दी व इनके आस-पास वाले गांवों में अबकी बार रबी की फसल अच्छी है, लेकिन इन वन्यजीवों और आवारा झूंड के रूप में घुम रहे सांडों के कारण किसानों की नींद उड़ी हुई है। फसलों को बचाने के लिए किसानों को सर्द रात में खेतों में पूरी रात जागकर रखवाली करनी पड़ती है। इसके बावजूद जरा सी चूक पर या तो नील गाय खेतों में धमक जाती है या आवारा सांड। किसानों ने बताया कि ये पशु झुण्ड के झुण्ड खेतों में प्रवेश कर फसल चट कर मेहनत पर पानी फेर रहे है।
ज्यादातर दो साल से बने ऐसे हालात
दो साल पहले तक आवारा पशुओं की संख्या इतनी नहीं थी और नील गाय भी घने जंगल में देखी जाती थी, लेकिन अब तो जंगलों में विचरण करने वाली नील गाय ही नहीं अन्य वन्यजीव भी गांवों में घर पीछे बाड़े तक पहुंच जाते है। कई बुजुर्ग किसान बताते है कि लगभग दो दशक पहले तक किसान खेत में बुवाई करके आराम से अपने घर पर सोते थे। दो- तीन साल से ऐसा बदलाव आया कि लोग दुध नहीं देने वाले गौवंश को लावारिस छोडऩा शुरू कर दिया। बैलों से खेती करना बंद होने के बाद इनकी संख्या इतनी बढ़ गई सडक़ों, गांवों और खेतों में कहीं भी देखो तो आपको गाय से ज्यादा सांडों की संख्या अधिक मिलेगी।
नुकसान का नहीं मिलता मुआवजा
इस साल इलाके में सिंचित और असिंचित सभी खेतों में फसल खड़ी है।अगेती फसल के पौधे 6 से 7 इंच तक बड़े हो गए है, लेकिन इन सर्द रातों में यें वन्य जीव कई बार तो फसल का बड़ा हिस्सा नष्ट कर देते है, लेकिन सरकार या वन विभाग की ओर से किसानों को नष्ट हुई फसल के लिए कोई मुआवजा नहीं दिया जाता। सरकार या वन विभाग की ओर से किसानों को संसाधन उपलब्ध कराए जाएं, इससे नील गाय आदि खेतों में प्रवेश नहीं कर पाएंगे।
Published on:
06 Dec 2019 07:31 pm
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