ज्यादातर दो साल से बने ऐसे हालात
दो साल पहले तक आवारा पशुओं की संख्या इतनी नहीं थी और नील गाय भी घने जंगल में देखी जाती थी, लेकिन अब तो जंगलों में विचरण करने वाली नील गाय ही नहीं अन्य वन्यजीव भी गांवों में घर पीछे बाड़े तक पहुंच जाते है। कई बुजुर्ग किसान बताते है कि लगभग दो दशक पहले तक किसान खेत में बुवाई करके आराम से अपने घर पर सोते थे। दो- तीन साल से ऐसा बदलाव आया कि लोग दुध नहीं देने वाले गौवंश को लावारिस छोडऩा शुरू कर दिया। बैलों से खेती करना बंद होने के बाद इनकी संख्या इतनी बढ़ गई सडक़ों, गांवों और खेतों में कहीं भी देखो तो आपको गाय से ज्यादा सांडों की संख्या अधिक मिलेगी।
नुकसान का नहीं मिलता मुआवजा
इस साल इलाके में सिंचित और असिंचित सभी खेतों में फसल खड़ी है।अगेती फसल के पौधे 6 से 7 इंच तक बड़े हो गए है, लेकिन इन सर्द रातों में यें वन्य जीव कई बार तो फसल का बड़ा हिस्सा नष्ट कर देते है, लेकिन सरकार या वन विभाग की ओर से किसानों को नष्ट हुई फसल के लिए कोई मुआवजा नहीं दिया जाता। सरकार या वन विभाग की ओर से किसानों को संसाधन उपलब्ध कराए जाएं, इससे नील गाय आदि खेतों में प्रवेश नहीं कर पाएंगे।