राजस्थान के नागौर में दस माह से रिक्त है नागौर तहसीलदार का पद,घनचक्कर बने किसान,5 साल में भी नहीं हटे शहर से अतिक्रमण।
नागौर•Feb 23, 2018 / 11:25 am•
Dharmendra gaur
Nagaur tehsildar
नागौर. पटवारियों के अतिरिक्त मंडल का कार्य नहीं करने के निर्णय के बाद अब नागौर में तहसीलदार का रिक्त पद कोढ में खाज साबित हो रहा है। विभिन्न मांगों को लेकर पटवारियों के अतिरिक्त मंडलों का सौंपने से परेशान काश्तकार तहसील कार्यालय के चक्कर काटने को मजबूर है। नागौर में गत अप्रेल से तहसीलदार का पद रिक्त है। अप्रेल 2017 में तहसीलदार सुनील कटेवा के अवकाश पर जाने के बाद उप पंजीयक हेतराम विश्नोई को कार्य भार दिया गया। वर्तमान में मूण्डवा तहसीलदार शंकरसिंह राठौड़ के पास नागौर का अतिरिक्त कार्य भार है, जो कि दोहरी जिम्मेदारी के कारण कभी कभार नागौर आ पाते हैं।
नोटिस देकर भूले तहसीलदार
नागौर शहर में तालाबों, अंगोर, गोचर व सरकारी भूमि पर अतिक्रमण को लेकर तत्कालीन तहसीलदार रामजस विश्नोई ने अतिक्रमियों की सूची तैयार कर नोटिस दिए थे, लेकिन पांच साल बाद किसी तहसीलदार ने उन अतिक्रमियों को बेदखल करने की जहमत नहीं उठाई। जिला कलक्टर की ओर से अतिक्रमियों के विरुद्ध नियमानुसार कार्रवाई करने के आदेश के बावजूद अतिक्रमियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की जा रही है। अवैध खनन को लेकर सम्पर्क पोर्टल पर दर्ज शिकायत को लेकर कलक्टर के आदेश के बावजूद कोई कार्रवाई नहीं होती।
किसानों की परेशानी बढी
नागौर तहसीलदार की स्थाई नियुक्ति नहीं होने से कार्यालय में रजिस्ट्री, काश्तकारों को भूमि प्रमाण पत्र, किसान क्रेडिट कार्ड, ओबीसी प्रमाण पत्र, सीमा ज्ञान, रास्तों के विवादों का निस्तारण, अवैध खनन रोकने की कार्रवाई, मौका रिपोर्ट समेत राजस्व से जुड़े अन्य कार्य नहीं हो पा रहे हैं। पटवार संघ ने विभिन्न मांगों को लेकर पटवारियों की ओर से अतिरिक्त पटवार मंडलों का कार्य भार (बस्ते) तहसील कार्यालयों में सौंप दिए। इधर, तहसीलदार के रिक्त पद ने किसानों की परेशानी बढ़ा दी।
तहसील के चक्कर लगा रहे पीडि़त
प्रशासनिक अमले के सबसे नीचे व महत्वपूर्ण कड़ी माने जाने वाले पटवारियों के रिक्त पद भरना तो दूर तहसीलदार का पद दस माह से रिक्त है। राजस्व कामकाज के सिलसिले में पटवार मंडल पहुंचने पर पटवार भवन के ताला देखकर काश्तकार निराश होकर लौट रहे हैं तो कहीं पटवारी मिलने के बाद भी नागौर में तहसीलदार नहीं मिलने से काम नहीं हो पाता। पटवारियों की ओर से अपनी जायज मांगों को लेकर बस्ते सौंपने व तहसीलदार का पद रिक्त होने का सबसे ज्यादा नुकसान काश्तकारों को हो रहा है।